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शासन व्यवस्था

भारत की तीन प्रस्तावित नदी जोड़ो परियोजनाएँ

  • 19 Jun 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

  • नदियों को जोड़ने के लिये बनाई गई विशेष समिति ने हाल ही में जुलाई 2016 से मार्च 2018 तक किये गए कार्यों की प्रगति रिपोर्ट सरकार को सौंप दी और केंद्रीय कैबिनेट ने इस रिपोर्ट को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया।
  • एक जल संपन्न नदी घाटी से जल की कमी वाली दूसरी नदी घाटी को जोड़ने की परियोजना का विचार भारत में पिछले चार दशकों से चर्चा में है।

पृष्ठभूमि

  • सिंचाई व्यवस्था को सुधारने,पेयजल की उपलब्धता को बढ़ाने तथा सूखा और बाढ़ के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से नदियों को जोड़ने का विचार आया ताकि जल की अधिकता वाले क्षेत्रों से जल की अतिरिक्त मात्रा को जल की कमी वाले क्षेत्रों तक पहुँचाया जा सके।
  • नदियों के संजाल को लेकर दायर 2012 की एक याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशानुसार एक विशेष समिति का गठन किया गया जिसे उस समय उप समितियों का गठन करना था। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस विशेष समिति को योजना की स्थिति और प्रगति पर एक द्विवार्षिक रिपोर्ट केंद्र को सौंपने के लिये निर्देशित किया गया और केंद्र को उस पर उचित निर्णय लेने को कहा गया।
  • स्थिति रिपोर्ट से आशय भावी राष्ट्रीय योजना से समरूपता है। यह योजना 1980 में अंतर-घाटी स्थानांतरण मामले के लिये सिंचाई मंत्रालय (अब जल संसाधन मंत्रालय) द्वारा बनाई गई थी जिसके दो मुख्य घटक – प्रायद्वीपीय नदी विकास और हिमालयी नदी विकास थे।
  • भारत में 1982 में गठित एक राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी भी है जो सर्वेक्षण कराती है और यह  देखती है कि नदी जोड़ो परियोजनाओं के प्रस्ताव कितने व्यवहार्य हैं।

प्रमुख बिंदु

  • केन-बेतवा, दमनगंगा-पिंजल और पार-तापी-नर्मदा, इन तीन परियोजनाओं की स्थिति रिपोर्ट कैबिनेट के साथ साझा की गई और 2015 में कैबिनेट द्वारा इनके लिये विस्तृत योजना रिपोर्ट तैयार की गई।
  • केन–बेतवा परियोजना के अंतर्गत केन (बुंदेलखंड क्षेत्र में)और बेतवा को जोड़ना प्रस्तावित है जो कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से बहती हैं। इस योजना के तहत केन नदी पर बांध बनाकर उसके अतिरिक्त जल को नहर के माध्यम से बेतवा नदी तक पहुँचाया जाएगा।
  • प्रारंभिक विकास स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के माध्यम से दोनों राज्यों में पहले चरण में 6.35 लाख हेक्टेयर तथा दूसरे चरण में मध्य प्रदेश में 0.99 लाख  हेक्टेयर वार्षिक सिंचाई का लाभ प्राप्त होगा। पहले चरण के लिये प्रारंभिक लागत अनुमान 18000 करोड़ रुपए तथा दूसरे चरण के लिये  8000 करोड़ रुपए है।
  • दमनगंगा-पिंजल नदियों को जोड़ने का मुख्य उद्देश्य पश्चिम भारत में नदियों के अतिरिक्त जल का उपयोग कर वृहद् मुंबई की घरेलू और औद्योगिक आवश्यकताओं को पूरा करना है। इस परियोजना के अंतर्गत दमनगंगा पर प्रस्तावित भुगड़ जलाशय और वाघ (दमनगंगा की सहायक)पर प्रस्तावित खारगिहिल जलाशय के अतिरिक्त जल को दाबित सुरंग के माध्यम से पिंजल जलाशय में स्थानांतरित किया जाएगा।
  • दमनगंगा-पिंजल परियोजना की विस्तृत रिपोर्ट मार्च 2014 में पूरी करके महाराष्ट्र और गुजरात की सरकारों को सौंप दी गई। इस रिपोर्ट के अनुसार वृहद् मुंबई क्षेत्र को 895 मिलियन क्यूबिक मीटर जल का लाभ प्राप्त होगा।
  • पार-तापी-नर्मदा परियोजना के अंतर्गत उत्तरी महाराष्ट्र और दक्षिणी गुजरात में प्रस्तावित 7 जलाशयों के माध्यम से अतिरिक्त जल को पश्चिमी घाट से सौराष्ट्र और कच्छ के जल की कमी वाले क्षेत्रों की ओर ले जाया जाएगा।
  • इस परियोजना के तहत 7 बांधों, 3 दिशा परिवर्तन करने वाले बांधों, 2 सुरंगों (5 किमी. और 0.5 किमी.), 395 किमी. की नहर (पार-तापी विस्तार में सहायक नहरों सहित 205 किमी. और तापी-नर्मदा में 190 किमी.), 6 उर्जा-गृहों और बड़ी संख्या में पार-जल निकासी व्यवस्था का कार्य आदि निर्माण प्रस्तावित हैं।

प्रमुख चिंताएँ

  • प्रत्येक नदी की अपनी अलग पारिस्थितिकी होती है, विशेषज्ञ इस बात से चिंतित हैं कि दो नदियों को मिलाने से जैव विविधता प्रभावित होगी।
  • चूँकि इस कार्यक्रम के तहत बड़े स्तर पर नहरों का जाल और बाँधों का निर्माण प्रस्तावित है, अतः इससे बड़े स्तर पर लोगों का विस्थापन होगा एवं कृषि पद्धत्तियों में बदलाव होगा और आजीविका प्रभावित होगी।
  • 2001 में हिमालयी और प्रायद्वीपीय नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना की कुल लागत (राहत और पुनर्वास तथा अन्य खर्चों जैसे कुछ क्षेत्रों में जलमग्नता से निपटने के उपाय आदि को छोड़कर) 5,60,000 करोड़ रुपए अनुमानित थी। दो वर्ष पूर्व मंत्रालय की एक समिति ने सुझाव दिया कि यह लागत वास्तव में बहुत ज़्यादा है और लागत-लाभ अनुपात की दृष्टि से बहुत हितकारी नहीं है।
  • एक अन्य आपत्ति यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा प्रतिरूप में बदलाव हो रहा है, इसलिये  जिस घाटी क्षेत्र में इस समय जल आधिक्य है कुछ वर्षों में वहाँ जल की अधिकता में कमी आ सकती है।
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