वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की स्थिति | 08 May 2017

संदर्भ

भारत को वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 136वाँ स्थान प्राप्त हुआ है। पिछले वर्ष की तुलना में इसकी श्रेणी में तीन अंकों की गिरावट आई है। 180 राष्ट्रों की सूची में नॉर्वे प्रथम स्थान पर है जबकि उत्तर कोरिया को मध्यम श्रेणी प्राप्त हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर’(Reporters Without Borders) द्वारा वार्षिक रूप से जारी किये जाने वाले इस सूचकांक में 180 देशों को उनके पत्रकारों को उपलब्ध स्वतंत्रता के स्तर के अनुसार श्रेणी प्रदान की जाती है।
  • इस सूचकांक से यह पता चलता है विश्व पत्रकारों के लिये खतरनाक बन चुका है। प्रेस की स्वतंत्रता के मानचित्र में 21 देशों को काले रंग से दर्शाया गया है क्योंकि उन देशों की स्थिति बहुत खराब है, 51 देशों को लाल रंग से दर्शाया गया जिसका अर्थ यह है कि इन देशों की स्थिति खराब है। इस सूचकांक के 180 देशों में से करीब दो तिहाई (62.2%) देशों की स्थिति बहुत खराब है।
  • पिछले वर्ष भारत को 133वाँ स्थान प्राप्त हुआ था। भारत की श्रेणी में हुई इस गिरावट का कारण हिंदू राष्ट्रवादियों को बताया जा रहा है। हिंदू राष्ट्रवादी राष्ट्रीय वाद-विवादों से  राष्ट्रवाद विरोधी अभिव्यक्तियों को हटाने का प्रयास करते हैं।
  • अधिकांश कट्टरपंथी राष्ट्रवादियों द्वारा पत्रकारों को निशाना बनाया जाता रहा है। कट्टरपंथी राष्ट्रवादी पत्रकारों का तिरस्कार करते हैं और उन्हें शारीरिक प्रताड़नाओं का भी सामना करना पड़ता है। हालाँकि इस रिपोर्ट में पत्रकारों पर लगाए गए राजद्रोह के आरोपों का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार,पत्रकारों के लिये संवेदनशील क्षेत्रों जैसे कश्मीर(जहाँ प्रायः संघर्षों के दौरान इंटरनेट कनेक्टिविटी बाधित हो जाती है पत्रकारों पर हमला किया जाता है) में पत्रकारिता करना काफी कठिन है। 

वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक क्या है?

  • यह देशों की वार्षिक रैंकिंग है तथा इसे ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर’ द्वारा जारी किया जाता है।
  • यह प्रेस की स्वतंत्रता के आधार पर रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर द्वारा देशों का किया गया स्वमूल्यांकन है। इसका उद्देश्य प्रत्येक देश के समाचार संगठनों, पत्रकारों की स्वतंत्रता तथा अधिकारियों द्वारा इस स्वतंत्रता का सम्मान करने हेतु किये गए प्रयासों का मूल्यांकन करना है। 
  • रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर केवल प्रेस की स्वतंत्रता से संबंधित मामलों को ही संज्ञान में लेती है तथा पत्रकारिता की गुणवत्ता की जाँच नहीं करती है।