अंतर्राष्ट्रीय संबंध
मानव विकास सूचकांक में भारत एक स्थान फिसला
- 04 Apr 2017
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हाल ही में 21 मार्च को प्रकाशित हुई यूएनडीपी (United Nations Development Programme - UNDP) की मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report - HDR) में भारत का स्थान पिछले वर्ष की तुलना में एक स्थान नीचे खिसक गया है। 188 देशों से संबद्ध इस रिपोर्ट में भारत पिछले वर्ष के 130वें स्थान से खिसककर 131वें पर आ गया है।
- ध्यातव्य है कि मानव विकास सूचकांक के अंतर्गत भारत को 0.624 अंक प्राप्त हुए है जिसके तहत भारत को ‘मध्यम मानव विकास’ (medium human development) की श्रेणी में कांगो, नामीबिया तथा पाकिस्तान जैसे देशों के साथ शामिल किया गया है।
- हालाँकि, सार्क देशों में इसे श्रीलंका (73) एवं मालदीव (105) के बाद तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है। ध्यातव्य है कि इन दोनों देशों को ‘उच्च मानव विकास’ की श्रेणी में शामिल किया गया है।
- गौरतलब इस है कि एचडीआई (human development index) के अंतर्गत नॉर्वे को प्रथम, ऑस्ट्रेलिया को द्वितीय तथा स्विट्ज़रलैंड को तीसरा स्थान प्राप्त हुआ है।
एचडीआई क्या है
- एचडीआई मानव विकास के तीन बुनियादी आयामों (लंबा एवं स्वस्थ जीवन, ज्ञान तक पहुँच तथा जीवन जीने का एक सभ्य स्तर) में प्रगति का आकलन करने का एक वैश्विक मानक है।
आमजन की खर्च करने की क्षमता
- रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि वैश्विक स्तर पर तकरीबन 1.5 मिलियन लोग बहुआयामी गरीबी में जीवन जीने करने को मज़बूर है, जिसका लगभग 54 प्रतिशत हिस्सा दक्षिण एशिया में निवास करता है।
- हालाँकि इस समस्त क्षेत्र में वर्ष 1990 से 2015 के मध्य गरीबी के स्तर में व्यापक गिरावट देखने को मिली है तथापि इन समयावधि में इस क्षेत्र में जीवन यापन क स्तर एवं आय-व्यय में भारी असमानता दृष्टिगत हुई है।
- उल्लेखनीय है कि संपूर्ण विश्व में दक्षिण एशिया में कुपोषण का स्तर काफी उच्च (38%) है। वस्तुतः यहाँ सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय (Public Health Expenditure) पर होने वाला खर्च भी सम्पूर्ण विश्व की तुलना में काफी न्यून (इसकी जीडीपी का मात्र 1.6%) है।
भारत की स्थिति
- ध्यान देने योग्य बात यह है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में होने वाले व्यय में भारत सरकार की भागीदारी और भी कम है। भारत में जीडीपी का मात्र 1.4% भाग ही इस क्षेत्र में खर्च किया जाता है।
- हालाँकि इस क्षेत्र में भारत में वर्ष 1990 से 2015 के मध्य कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार भी देखने को मिले है। इस समयावधि में देश में जीवन प्रत्याशा दर में 10.4 वर्षों की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
- इसके अतिरिक्त वर्ष 2015 से न केवल बाल कुपोषण की दर में 10 अंकों की कमी दर्ज की गई है बल्कि शिशु एवं पाँच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर में मामूली सुधार भी देखने को मिला है।
भारतीय सरकार द्वारा संचालित पहलों की सराहना
- उक्त रिपोर्ट में भारत की आरक्षण नीति की यह कहते हुए सराहना की गई है कि इस नीति के कारण देश में कमज़ोर वर्ग के लोगों को बहिष्कार एवं उपेक्षा का शिकार होने से बचाया गया है, जिसके कारण वस्तुतः लोगों के जीवन यापन के स्तर में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिला है।
- रिपोर्ट में निहित एक उदाहरण के अनुसार बर्ष 1965 में वरिष्ठ लोक सेवा के पदों पर आसीन दलित लोगों की प्रतिशतता मात्र 2% थी जबकि वर्ष 2001 में यह प्रतिशतता बढ़कर 11% हो गई है, जो कि एक प्रशंसनीय प्रयास है।
- इसके साथ-साथ उक्त रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कार्यक्रम (National Rural Employment Guarantee Programme) की भी प्रशंसा की गई है। ध्यातव्य है कि इस कार्यक्रम के माध्यम से देश के गरीब तबके को उचित रोज़गार के अवसर प्रदान करके उन्हें सामाजिक संरक्षण प्रदान किया गया है।
- इसके अतिरिक्त इस रिपोर्ट में भारत सरकार द्वारा प्रदत्त सूचना के अधिकार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिकार तथा शिक्षा के अधिकार जैसे प्रगतिशाली कानूनों की भी प्रशंसा की गई है।
लिंग असमानता
- गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं से संबद्ध एचडीआई का स्तर काफी कम पाया गया है।
- वस्तुतः इस संबंध में भी सबसे निचला स्थान दक्षिण एशियाई क्षेत्र को ही प्राप्त हुआ है जहाँ पुरुषों की तुलना में महिलाओं के एचडीआई मूल्य को 20 फीसदी कम आँका गया है।
- दक्षिण एशिया में उद्यमशीलता एवं श्रम शक्ति भागीदारी में व्याप्त लिंग असमानता के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की अनुमानित आय में 19 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
- हालाँकि वर्ष 1990 से वर्ष 2015 तक भारत की मानव विकास दर में 0.428 की तुलना में 0.624 की वृद्धि दर्ज की गई है तथापि इसका स्थान अभी भी सार्क देशों की तुलना में काफी न्यून है।
- यह और बात है कि एचडीआई के संबंध में इसकी औसत वार्षिक वृद्धि मध्यम मानव विकास वाले देशों की तुलना में काफी उच्च है।