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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का वस्त्र उद्योग

  • 06 Mar 2025
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मानव निर्मित फाइबर, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, PM MITRA पार्क, गुणवत्ता नियंत्रण आदेश

मेन्स के लिये:

भारत का वस्त्र उद्योग, संभावनाएँ और चुनौतियाँ, संवृद्धि एवं विकास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

बढ़ते घरेलू बाज़ार तथा बढ़ती वैश्विक रुचि के कारण भारत के वस्त्र उद्योग में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनने की क्षमता है।

  • हालाँकि इसमें उच्च उत्पादन लागत, अनियमित आपूर्ति शृंखला तथा स्थिरता संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

भारत के वस्त्र उद्योग के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • आर्थिक योगदान: भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वस्त्र उद्योग का 2.3% का योगदान है, जिसके वर्ष 2030 तक 5% तक पहुँचने का अनुमान है। 
  • वित्त वर्ष 24 तक इसकी औद्योगिक उत्पादन में 13% तथा निर्यात में 12% की हिस्सेदारी है और इसमें 4.5 करोड़ श्रमिक कार्यरत हैं। 
  • वित्त वर्ष 2024 में इस क्षेत्र का निर्यात 35.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा जिसमें अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त अरब अमीरात प्रमुख बाज़ार थे।
  • वैश्विक वस्त्र व्यापार में स्थिति: भारत के पास विश्व स्तर पर दूसरी सबसे बड़ी वस्त्र विनिर्माण क्षमता है और वर्ष 2023 में यह वस्त्र तथा परिधान का छठा सबसे बड़ा निर्यातक रहा (वैश्विक व्यापार में 3.9% हिस्सेदारी)।
  • भारत, विश्व में कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है (वैश्विक कपास उत्पादन का 23.83%), जिसका उत्पादन वर्ष 2030 तक 7.2 मिलियन टन तक पहुँचने का अनुमान है।
    • भारत, विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है और पॉलिस्टर, विस्कोस, नायलॉन एवं ऐक्रेलिक सहित मानव निर्मित फाइबर (MMF) का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।

भारत के वस्त्र उद्योग के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन सी हैं?

  • व्यापार समझौतों का अभाव: प्रमुख बाज़ारों के साथ वियतनाम और चीन जैसे देशों के मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) से उनके निर्यात अधिक प्रतिस्पर्द्धी हो जाते हैं। 
    • अमेरिका जैसे प्रमुख वस्त्र-उपभोग वाले क्षेत्रों के साथ भारत के इस प्रकार के FTA का अभाव है।
  • स्थिर विकास और घटता निर्यात: वस्त्र क्षेत्र में प्रतिवर्ष 1.8% की गिरावट आई (वित्त वर्ष 20-वित्त वर्ष 24) जबकि परिधान क्षेत्र में प्रतिवर्ष 8.2% की गिरावट आई।
    • परिधान निर्यात वित्त वर्ष 20 के 15.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर वित्त वर्ष 24 में 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया।
  • कच्चे माल का महँगा होना: सरकार द्वारा लगाए गए गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (QCO) से पॉलिस्टर और विस्कोस का आयात प्रतिबंधित होता है, जिससे घरेलू धागा निर्माताओं को महँगे स्थानीय विकल्पों पर निर्भर रहना पड़ता है।
    • भारत में पॉलिएस्टर फाइबर की कीमत चीन की तुलना में 33-36% अधिक है, जबकि विस्कोस फाइबर 14-16% अधिक महँगा है।
  • निम्न निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: उच्च श्रम लागत के कारण भारत में निर्मित वस्त्रों का निर्यात चीन और वियतनाम की तुलना में महँगा है।
    • चीन में ऊर्ध्वाधर एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं (कंपनी आपूर्तिकर्त्ताओं का स्वामित्व लेती है) के विपरीत, भारत की राज्यों में विस्तृत खंडित आपूर्ति शृंखला और जटिल सीमा शुल्क के कारण रसद लागत बढ़ जाती है और प्रतिस्पर्द्धा कम हो जाती है।
    • इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश, एक अल्प विकसित देश (LDC) के रूप में, शुल्क मुक्त निर्यात का लाभ उठाता है, तथा अधिमान्य व्यापार नीतियों के कारण कई बाज़ारों में भारत की तुलना में लागत लाभ प्राप्त करता है।
  • संधारणीयता संबंधी दबाव: वैश्विक ब्रांड पर्यावरण संबंधी सख्त मानदंड क्रियान्वित कर रहे हैं, जिसके तहत नवीकरणीय ऊर्जा का अधिक उपयोग, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और कच्चे माल की ट्रेसबिलिटी की आवश्यकता होती है।
    • यूरोपीय संघ ने फैशन उद्योग को शामिल करते हुए अनेक नियमों (2021-2024) का प्रवर्तन किया है, जिससे भारत के वस्त्र निर्यात का लगभग 20% प्रभावित हुआ।

नोट: वैश्विक वस्त्र और परिधान क्षेत्र का वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में 6-8% का योगदान है (~ 1.7 बिलियन टन/वर्ष)।

  • वस्त्र उत्पादन, रंगाई और परिष्करण का कुल वैश्विक जल प्रदूषण में 20% का योगदान है और वस्त्र  उद्योग वर्ष 2020 में जल क्षरण और भूमि उपयोग का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत था।

आगे की राह

  • आपूर्ति शृंखला का सुदृढ़ीकरण: फाइबर से लेकर तैयार परिधान तक उत्पादन के संपूर्ण चक्र को शामिल करते हुए उर्द्धवाधर रूप से एकीकृत वस्त्र पार्क विकसित किये जाने की आवश्यकता है, जिससे रसद और उत्पादन लागत कम हो जाती है।
    • नियंत्रित आयात और कम घरेलू लागत हेतु पॉलिएस्टर और विस्कोस फाइबर पर QCO का पुनः आकलन करने की आवश्यकता है।
    • विखंडन और रसद लागत को कम करने के लिये "फाइबर-टू-फैशन" केंद्र विकसित किये जाने चाहिये।
  • श्रम समूह का पूर्णतम उपयोग: उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में अधिक पीएम मित्र पार्क स्थापित किये जाने चाहिए, जहाँ रोज़गार की मांग अधिक है।
    • चीन के मॉडल के समान कारखानों के निकट आवास बनाने से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है, तथा निवल वेतन में सुधार हो सकता है एवं नौकरी छोड़ने की दर में कमी लाई जा सकती है।
  • नीतिगत सुधार: प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये यूरोपीय संघ, अमेरिका और प्रमुख बाज़ारों के साथ अधिमान्य व्यापार समझौते सुनिश्चित करना।
  • MMF को बढ़ावा देना: MMF आधारित वस्त्र उत्पादन के लिये प्रोत्साहन देकर उच्च घरेलू MMF खपत को प्रोत्साहित करना।
  • संधारणीयता: MSME को सतत् विनिर्माण और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
    • अनुमानित रूप से फास्ट फैशन अपशिष्ट 2030 तक 148 मिलियन टन हो जाएगा, जिससे पुनर्नवीनीकृत वस्त्रों की मांग बढ़ेगी, यह एक ऐसा बाज़ार है जहाँ भारत के पास महत्त्वपूर्ण संभावनाएँ हैं और अपशिष्ट प्रबंधन बुनियादी ढाँचे का सुदृढ़ीकरण सतत् विकास के लिये महत्वपूर्ण होगा।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वस्त्र उद्योग भारत की आर्थिक वृद्धि में किस प्रकार योगदान देता है तथा इसे विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत् वृद्धि हुई है।
  2. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में “कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों” का व्यापार प्रमुख है।
  3. पिछले पाँच वर्षों में, दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में अत्यधिक विकेंद्रीकृत सूती वस्त्र उद्योग के कारकों का विश्लेषण कीजिये। (2013)

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