भारत के प्रधानमंत्री की कुवैत यात्रा | 24 Dec 2024
प्रिलिम्स के लिये:खाड़ी राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, संयुक्त राष्ट्र, खाड़ी सहयोग परिषद, ऑर्डर ऑफ मुबारक अल-कबीर मेन्स के लिये:भारत की विदेश नीति और पश्चिम एशिया के साथ संबंध, भारत-कुवैत द्विपक्षीय संबंध, भारत की विदेश नीति में ऊर्जा कूटनीति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत और कुवैत ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की खाड़ी देश की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ा दिया है। यह वर्ष 1981 में इंदिरा गांधी की यात्रा के बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की दूसरी यात्रा है।
- यह यात्रा दोनों देशों के बीच व्यापार, रक्षा और व्यापक सहयोग के लिये नई प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
प्रधानमंत्री की कुवैत यात्रा के मुख्य बिंदु क्या हैं?
- ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर: प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने में उनके योगदान के लिये कुवैत के सर्वोच्च सम्मान 'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर' से सम्मानित किया गया।
- सामरिक साझेदारी: दोनों पक्षों ने अपने संबंधों को 'रणनीतिक साझेदारी' के स्तर तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की तथा राजनीतिक, व्यापार, रक्षा, ऊर्जा और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाया।
- रक्षा सहयोग: संयुक्त सैन्य अभ्यास, प्रशिक्षण, तटीय रक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए रक्षा सहयोग पर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
- सांस्कृतिक और खेल सहयोग: भारत और कुवैत ने वर्ष 2025-2029 के लिये सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम (CEP) तथा वर्ष 2025-2028 के लिये खेल के क्षेत्र में सहयोग पर कार्यकारी कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किये।
- संयुक्त सहयोग आयोग (JCC): द्विपक्षीय संबंधों की निगरानी के लिये दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की अध्यक्षता में JCC की स्थापना की गई।
- शिक्षा, व्यापार, निवेश, कृषि और आतंकवाद-निरोध जैसे प्रमुख क्षेत्रों में नए संयुक्त कार्य समूह (JWG) स्थापित किये गए।
- प्रौद्योगिकी और उभरते क्षेत्र: सेमीकंडक्टर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, ई-गवर्नेंस और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने में सहयोग पर ज़ोर दिया गया।
- ऊर्जा सहयोग: दोनों पक्ष ऊर्जा क्षेत्र में क्रेता-विक्रेता संबंध से आगे बढ़कर व्यापक साझेदारी की ओर बढ़ने पर सहमत हुए, जिसमें तेल, गैस, शोधन और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- बहुपक्षीय सहयोग: भारतीय पक्ष ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) का सदस्य बनने के कुवैत के फैसले का स्वागत किया।
- भारत के प्रधानमंत्री ने खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) की अध्यक्षता मिलने पर कुवैत को बधाई दी तथा भारत-GCC मुक्त व्यापार समझौते के महत्त्व पर बल दिया।
- दोनों नेताओं ने वैश्विक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र (UN) में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
'ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर'
- यह सम्मान राष्ट्राध्यक्षों, विदेशी देशों के शासकों और शाही परिवारों के सदस्यों को प्रदान किया जाता है।
- वर्ष 1974 में स्थापित यह पुरस्कार मुबारक अल सबाह को सम्मानित करता है, जिन्हें मुबारक अल-कबीर के नाम से भी जाना जाता है, जिन्होंने वर्ष 1896 से 1915 तक कुवैत पर शासन किया था।
- मुबारक अल सबाह ने कुवैत के भविष्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा उसे ओटोमन साम्राज्य स्वायत्तता दिलाई।
- ऑर्डर ऑफ मुबारक अल-कबीर के पूर्व प्राप्तकर्त्ताओं में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश और बिल क्लिंटन, सऊदी अरब के राजा सलमान और पूर्व फ्राँसीसी राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी जैसे उल्लेखनीय व्यक्ति शामिल हैं।
भारत-कुवैत संबंध कैसे हैं?
- ऐतिहासिक संबंध: भारत और कुवैत के बीच दीर्घकालिक संबंध हैं, जो तेल के आगमन से पहले के समय से चले आ रहे हैं, जब समुद्री व्यापार कुवैत की अर्थव्यवस्था की नींव था।
- भारतीय रुपया वर्ष 1961 तक कुवैत में वैध मुद्रा था, जो उनके मज़बूत आर्थिक संबंधों को दर्शाता है।
- ऐतिहासिक रूप से, कुवैत भारत के साथ खजूर, मोती और अरबी घोड़ों जैसी वस्तुओं का व्यापार करता था। हालाँकि, तेल की खोज के बाद, कुवैत की अर्थव्यवस्था बदल गई, अब तेल राज्य की आय का लगभग 94% योगदान देता है।
- आर्थिक साझेदारी: कुवैत भारत के शीर्ष व्यापारिक साझेदारों में से एक है, जिसका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023-24 में 10.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- कुवैत भारत का छठा सबसे बड़ा कच्चा तेल आपूर्तिकर्त्ता है, जो देश की ऊर्जा आवश्यकताओं का 3% पूरा करता है।
- कुवैत को भारतीय निर्यात पहली बार 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जो बढ़ते व्यापारिक संबंधों को दर्शाता है।
- भारत में कुवैत निवेश प्राधिकरण का निवेश 10 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- कुवैत में प्रवासी भारतीय: लगभग 1 मिलियन की आबादी के साथ, भारतीय समुदाय कुवैत में सबसे बड़ा प्रवासी समूह है।
- यह समुदाय कुवैती अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, इंजीनियरिंग, खुदरा और व्यापार जैसे क्षेत्रों में।
पश्चिम एशिया में भारत की विदेश नीति में कुवैत का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक योगदान: कुवैत में भारतीय प्रवासियों द्वारा प्रेषित धनराशि भारतीय अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का निवेश करती है, जो आर्थिक स्थिरता और विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आर्थिक सहयोग: कुवैत का विजन 2035, जिसका उद्देश्य तेल से परे अपनी अर्थव्यवस्था में विविधता लाना है, भारत के लिये नवीकरणीय ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी जैसे उभरते क्षेत्रों में सहयोग करने के अवसर प्रस्तुत करता है।
- यह भारत के विकास लक्ष्यों, विशेषकर विकसित भारत 2047 के अनुरूप है।
- इसके अतिरिक्त, कुवैत से ऊर्जा सुरक्षा भारत के औद्योगिक विकास और घरेलू जरूरतों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- भू-राजनीतिक प्रभाव: मध्य पूर्व में कुवैत का स्थिति और GCC में इसकी भूमिका इसे क्षेत्रीय राजनीति में एक प्रमुख अभिकर्त्ता बनाती है।
- कुवैत के साथ भारत के जुड़ाव से उसे पश्चिम एशिया में संतुलित और प्रभावशाली उपस्थिति बनाए रखने में मदद मिलती है।
- श्रम और कौशल विकास: कुवैत के विजन 2035 के तहत कुशल कार्यबल की मांग, कौशल विकास में भारत की ताकत के अनुरूप है, जिससे अधिक भारतीय श्रमिकों को स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढाँचे जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कुवैत के विकास में योगदान करने का अवसर मिलेगा।
खाड़ी सहयोग परिषद क्या है?
- परिचय: वर्ष 1981 में स्थापित GCC एक क्षेत्रीय राजनीतिक और आर्थिक संगठन है, जिसमें छह अरब राज्य शामिल हैं: बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात।
- GCC की स्थापना क्षेत्रीय तनावों, विशेष रूप से ईरानी क्रांति (1979) और इराक-ईरान युद्ध (1980-1988) के जवाब में की गई थी।
- इसका उद्देश्य खाड़ी क्षेत्र में एकता को बढ़ावा देना और साझा चुनौतियों का समाधान करना है।
- GCC की स्थापना क्षेत्रीय तनावों, विशेष रूप से ईरानी क्रांति (1979) और इराक-ईरान युद्ध (1980-1988) के जवाब में की गई थी।
- संगठनात्मक संरचना: सर्वोच्च परिषद GCC का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है, जिसमें प्रत्येक सदस्य देश के राष्ट्राध्यक्ष शामिल होते हैं।
- सर्वोच्च परिषद की अध्यक्षता सदस्य देशों के वर्णमाला क्रम के आधार पर प्रतिवर्ष बदलती रहती है।
- मुख्यालय: रियाद, सऊदी अरब।
- GCC के साथ भारत के संबंध: GCC भारत का एक प्रमुख व्यापारिक और निवेश साझेदार है, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब से महत्त्वपूर्ण निवेश प्राप्त है।
- संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में भारत-GCC द्विपक्षीय व्यापार 161.59 बिलियन अमरीकी डॉलर रहा। भारत का निर्यात 56.3 बिलियन अमरीकी डॉलर और भारत का आयात 105.3 बिलियन अमरीकी डॉलर था।
- GCC तेल सहित भारत के निर्यात के लिये एक प्रमुख बाज़ार बना हुआ है, तथा वहाँ बड़ी संख्या में भारतीय कार्यबल मौजूद है।
- खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) में लगभग 8.9 मिलियन भारतीय प्रवासी धन प्रेषण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जो हाल में आई गिरावट के बावजूद भारत के लिये आय का प्रमुख स्रोत बना हुआ है।
- संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत-कुवैत द्विपक्षीय संबंध किस प्रकार खाड़ी क्षेत्र में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्रभावित करते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर: (a) मेन्स:Q. भारत की ऊर्जा सुरक्षा का प्रश्न भारत की आर्थिक प्रगति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भाग है। पश्चिम एशियाई देशों के साथ भारत के ऊर्जा नीति सहयोग का विश्लेषण कीजिये। (2017) |