इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में भारत की मध्यस्थ की भूमिका | 23 Oct 2023
प्रिलिम्स के लिये:इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में भारत की मध्यस्थ की भूमिका, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष, महात्मा गांधी, शीत युद्ध, वेस्ट बैंक, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) मेन्स के लिये:इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष में भारत की मध्यस्थ की भूमिका, भारत से जुड़े और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह एवं समझौते, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत के कूटनीतिक रुख में पिछले कुछ वर्षों में कुछ परिवर्तन आया है, जो फिलिस्तीन के लिये इसके ऐतिहासिक समर्थन और इज़रायल के साथ इसके बढ़ते संबंधों के बीच एक संवेदनशील संतुलन को दर्शाता है।
इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत की नीति:
- पृष्ठभूमि:
- ऐतिहासिक रूप से देखें तो इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत फिलिस्तीन का समर्थक रहा है, यह रुख फिलिस्तीन में यहूदी राज्य के लिये महात्मा गांधी के विरोध, भारत की बड़ी मुस्लिम आबादी और अरब देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की आवश्यकता जैसे कारकों से प्रेरित था।
- फिलिस्तीन के संबंध में भारत के रुख पर अरब देशों, गुटनिरपेक्ष आंदोलन और संयुक्त राष्ट्र के बीच आम सहमति का प्रभाव था।
- जब फिलिस्तीन के विभाजन की योजना पर संयुक्त राष्ट्र में मतदान की चर्चा चल रही थी, तब भारत ने अरब देशों के साथ मिलकर इसके विरोध में मतदान किया था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में इज़रायल के प्रवेश का भी विरोध किया।
- भारत ने शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ का पक्ष लेते हुए अपना फिलिस्तीन समर्थक रुख बरकरार रखा, जिसने अरब राज्यों का समर्थन किया था।
- ऐतिहासिक रूप से देखें तो इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत फिलिस्तीन का समर्थक रहा है, यह रुख फिलिस्तीन में यहूदी राज्य के लिये महात्मा गांधी के विरोध, भारत की बड़ी मुस्लिम आबादी और अरब देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की आवश्यकता जैसे कारकों से प्रेरित था।
- भारत की नीति में बदलाव:
- राजनयिक संबंधों की स्थापना: वर्ष 1992 में भारत ने एक बड़ा बदलाव चिह्नित करते हुए इज़रायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किये। इसके बावजूद भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे को लेकर समर्थन जारी रखा।
- शीत युद्ध की समाप्ति के बाद ही प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने अरब देशों के साथ संभावित मतभेदों के बावजूद इज़रायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने का साहसिक कदम उठाया।
- राष्ट्रीय हित में संतुलनवादी दृष्टिकोण: भारत के राजनयिक निर्णयों का मुख्य आधार राष्ट्रीय हित रहा है, जिसके लिये इज़रायल के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखने, फिलिस्तीन का समर्थन करने तथा अरब देशों के साथ संबंध विकसित करने के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है।
- राजनयिक संबंधों की स्थापना: वर्ष 1992 में भारत ने एक बड़ा बदलाव चिह्नित करते हुए इज़रायल के साथ पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किये। इसके बावजूद भारत ने फिलिस्तीनी मुद्दे को लेकर समर्थन जारी रखा।
वर्तमान नीति और कूटनीति:
- राष्ट्रीय हित में इज़रायल के साथ संबंध:
- हालिया कुछ वर्षों में इज़रायल और भारत के संबंध काफी मज़बूत हुए हैं, जिसमें व्यापार, प्रौद्योगिकी, रक्षा और आतंकवाद रोधी सहयोग जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं।
- इज़रायल के लिये भारत के समर्थन को सीमा पार आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है, हालाँकि इज़रायल और भारत की स्थितियों में काफी भिन्नता है।
- फिलिस्तीन मुद्दे का समर्थन:
- इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने के अतिरिक्त भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे पर अपने समर्थन की पुष्टि की है।
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के बीच भारत ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र राहत एवं कार्य एजेंसी (UN Relief and Works Agency- UNRWA) को 29.53 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया गया है।
- भारत ने फिलिस्तीन के प्रभावित लोगों के लिये लगभग 6.5 टन चिकित्सा सहायता और 32 टन आपदा राहत सामग्री भी भेजी।
- इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने के अतिरिक्त भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे पर अपने समर्थन की पुष्टि की है।
- भारत द्वारा अपने रुख को संतुलित करना:
- वर्ष 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री ने पहली बार इज़रायल का दौरा किया और वर्ष 2018 में उन्होंने पहली बार फिलिस्तीन की आधिकारिक यात्रा की।
- वर्ष 2017 में भारत ने एकतरफा ही पूरे यरूशलम को इज़रायल की राजधानी घोषित करने के प्रयास के लिये अमेरिका और इज़रायल के खिलाफ मतदान किया।
- भारत की नीति स्पष्ट है, वह आतंकवाद की निंदा करता है किंतु अंधाधुंध प्रतिशोधात्मक बमबारी का समर्थन नहीं करता है।
- भारत का आधिकारिक रुख:
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत के आधिकारिक रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है, भारत इज़रायल और फिलिस्तीन को अच्छे पड़ोसी देश के रूप में मानते हुए टू-स्टेट साॅल्यूशन (इसका अर्थ है दो समुदायों के लोगों के लिये दो राज्यों की स्थापना करना, यानी यहूदी लोगों के लिये इज़रायल और फिलिस्तीनी लोगों के लिये फिलिस्तीन) की वकालत कर रहा है।
- अमेरिका की मध्यस्थता के बाद ही वर्ष 1991 के मैड्रिड शांति सम्मेलन में इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को हल करने के लिये टू-स्टेट साॅल्यूशन पर सहमति बनी थी।
- वर्ष 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री की वेस्ट बैंक में रामल्ला की यात्रा इसका प्रमाण है।
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष पर भारत के आधिकारिक रुख में कोई परिवर्तन नहीं आया है, भारत इज़रायल और फिलिस्तीन को अच्छे पड़ोसी देश के रूप में मानते हुए टू-स्टेट साॅल्यूशन (इसका अर्थ है दो समुदायों के लोगों के लिये दो राज्यों की स्थापना करना, यानी यहूदी लोगों के लिये इज़रायल और फिलिस्तीनी लोगों के लिये फिलिस्तीन) की वकालत कर रहा है।
इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का भारत पर संभावित प्रभाव:
- इज़रायल के साथ रक्षा सौदे पर प्रभाव:
- रक्षा उपकरण खरीद और प्रौद्योगिकी सहयोग के रूप से भारत का इज़रायल के साथ महत्त्वपूर्ण रक्षा संबंध है। इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान इस बात की संभावना है कि इज़रायल अपनी सुरक्षा ज़रूरतों को अधिक प्राथमिकता दे सकता है, जिसका इन दोनों के बीच संबंधों पर भी प्रभाव पड़ सकता है।
- इज़रायल भारत का सबसे अधिक सैन्य उपकरण आपूर्तिकर्त्ता है, दोनों देशों के बीच लगभग 2.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर का सैन्य कारोबार होता है।
- ऊर्जा सुरक्षा:
- भारत कच्चे तेल के आयात के लिये मध्य पूर्व पर निर्भर है और इस क्षेत्र में कोई भी संघर्ष इनकी कीमतों तथा परिणामतः भारत की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।
- चूँकि विश्व की सभी अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं, इसलिये अगर सऊदी अरब और ईरान जैसे देश इज़रायल-फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष में शामिल होते हैं तो निश्चित रूप से भारत की ऊर्जा आपूर्ति, अर्थव्यवस्था तथा निवेश पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
- भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे पर प्रभाव:
- भारत ने हाल ही में एक महत्त्वाकांक्षी बुनियादी ढाँचा परियोजना के रूप में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) पर हस्ताक्षर किये, जिसका उद्देश्य शिपिंग और रेल नेटवर्क सहित विभिन्न परिवहन साधनों के माध्यम से भारत, मध्य-पूर्व तथा यूरोप को जोड़ना है।
- इस क्षेत्र में कसी भी प्रकार की अस्थिरता सुरक्षा संबंधी चुनौतियों को जन्म दे सकती है, और IMEC के सुचारु संचालन को भी प्रभावित कर सकती है।
- इस संघर्ष में भारत के लिये रणनीतिक महत्त्व वाले क्षेत्र- मध्य-पूर्व की स्थिरता को प्रभावित करने की क्षमता है।
- संघर्ष बढ़ने तथा स्थिति के और खराब होने से इस क्षेत्र में भारत के हितों पर प्रभाव पड़ सकता है।
आगे की राह
- इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष की तीव्रता व गंभीरता को देखते हुए भारत टू-स्टेट साॅल्यूशन के आधार पर शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा दे सकता है।
- भारत को अपने कूटनीतिक प्रयास जारी रखने के साथ ही अपने अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव का उपयोग करके इज़रायल और फिलिस्तीन दोनों को बातचीत के ज़रिये मुद्दे का समाधान निकालने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- भारत को मध्यस्थता करने के प्रयास को जारी रखना चाहिये और साथ ही फिलिस्तीनी लोगों की तत्काल आवश्यकताओं को पूरा करने तथा संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में मानवीय सहायता प्रदान करनी चाहिये।
- आपसी समझ और विश्वास को बढ़ावा देने के लिये इज़रायल तथा फिलिस्तीनी नागरिक समाज समूहों, शिक्षाविदों एवं युवाओं के बीच संवाद को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. ‘आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन- रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।’ अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर ‘इज़रायल विरोधी पूर्वाग्रह’ होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये।’ (2019) प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल में एक ऐसी गहराई एवं विविधता प्राप्त कर ली है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018) |