भारत-रूस सैन्य संबंध | 02 Mar 2022
प्रिलिम्स के लिये:रूस-यूक्रेन संघर्ष, ऑपरेशन गंगा, भारत द्वारा रूस से खरीदे गए विभिन्न रक्षा उपकरण, प्रोजेक्ट 75-I मेन्स के लिये:रक्षा प्रौद्योगिकी, द्विपक्षीय समूह एवं समझौते, रूस के साथ भारत के रणनीतिक संबंध, रूस-यूक्रेन संघर्ष |
चर्चा में क्यों?
यूक्रेन में हज़ारों भारतीय छात्रों की निकासी का अभियान (ऑपरेशन गंगा) भारत पर यूक्रेन-रूस युद्ध का सबसे तात्कालिक प्रभाव है। हालाँकि रूस-यूक्रेन संघर्ष के दीर्घकालिक निहितार्थ अभी सामने आने शेष हैं।
- उदाहरण के लिये एक तरफ संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखना और दूसरी तरफ रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से गहरे एवं रणनीतिक संबंधों को बनाए रखना।
- इसका भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रक्षा व्यापार पर सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
भारत-रूस रक्षा संबंधों का इतिहास:
- भारत स्वतंत्रता के तुरंत बाद अपने हथियारों के आयात के लिये लगभग पूरी तरह से ब्रिटिश और अन्य पश्चिमी देशों पर निर्भर था।
- हालाँकि समय के साथ यह निर्भरता कम हो गई और 1970 के दशक के बाद से भारत USSR (अब रूस) से कई हथियार प्रणालियों का आयात कर रहा था, जिससे यह दशकों तक देश का सबसे बड़ा रक्षा आयातक बन गया।
- रूस ने भारत को कुछ सबसे संवेदनशील और महत्त्वपूर्ण हथियार प्रदान किये हैं, जिनकी भारत को समय-समय पर आवश्यकता पड़ती रहती है, इसमें परमाणु पनडुब्बी, विमान वाहक, टैंक, बंदूकें, लड़ाकू जेट और मिसाइल शामिल हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बलों में रूसी मूल के हथियारों और प्लेटफाॅर्मों की हिस्सेदारी 85% तक है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा हथियार निर्यातक है।
- हथियारों के हस्तांतरण के मामले में रूस के लिये भारत सबसे बड़ा आयातक है।
- वर्ष 2000 और वर्ष 2020 के बीच रूस, भारत को हथियारों के आयात के 66.5% हिस्से के लिये उत्तरदायी था।
- वर्ष 2016 और वर्ष 2020 के बीच भारत को हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी लगभग 50% तक कम हो गई थी, लेकिन यह अभी भी सबसे बड़ा एकल आयातक बना हुआ है।
भारत, रूस से कौन-से रक्षा उपकरण खरीदता है?
- पनडुब्बियाँ: भारत को अपनी पहली पनडुब्बी भी सोवियत संघ से ही प्राप्त हुई थी।
- USSR से खरीदी गई पहली फॉक्सट्रॉट क्लास पनडुब्बी ने वर्ष 1967 में आईएनएस कलवरी के रूप में भारतीय सेना में प्रवेश किया था।
- भारतीय नौसेना के पास कुल 16 पारंपरिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों में से आठ सोवियत मूल की किलो श्रेणी की हैं।
- भारत के पास चार में से एक स्वदेश निर्मित परमाणु बैलिस्टिक पनडुब्बी (आईएनएस अरिहंत) है, हालाँकि जिन्हें विकसित किया जा रहा है उनमें से कई रूसी तकनीकी पर आधारित हैं।
- फ्रिगेट और गाइडेड-मिसाइल डिस्ट्रॉयर: नौसेना के 10 गाइडेड-मिसाइल विध्वंसक में से चार रूसी काशीन श्रेणी के हैं और इसके 17 युद्धपोतों में से छह रूसी तलवार श्रेणी के हैं।
- विमान वाहक: भारत की सेवा में एकमात्र विमान वाहक आईएनएस विक्रमादित्य एक सोवियत निर्मित कीव-श्रेणी का पोत है जो वर्ष 2013 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था।
- मिसाइल कार्यक्रम: भारत का महत्त्वपूर्ण मिसाइल कार्यक्रम रूस या सोवियत संघ की मदद से विकसित किया गया था।
- भारत जल्द ही जिस ब्रह्मोस मिसाइल का निर्यात शुरू करेगा, उसे रूस के साथ संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
- लड़ाकू विमान: भारतीय वायुसेना का 667-विमान फाइटर ग्राउंड अटैक (FGA) बेड़ा 71% रूसी मूल (39% Su-30s (सुखोई), 22% MiG-21s, 9% MiG-29s) का है। सेवा में शामिल सभी छह एयर टैंकर रूस निर्मित IL-78s हैं।
- हथियार और गोला-बारूद: इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेटेजिक स्टडीज़ (IISS) के अनुसार, भारत का वर्तमान सैन्य शस्त्रागार रूस द्वारा निर्मित या डिज़ाइन किये गए उपकरणों से भरा हुआ है।
- भारतीय सेना का मुख्य युद्धक टैंक मुख्य रूप से रूसी T-72M1 (66%) और T-90S (30%) से बना है।
- भारत के लिये अनुकूल रूसी सैन्य निर्यात: भारत में रूस का अधिकांश प्रभाव हथियार प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों को प्रदान करने की उसकी सम्मति के कारण है जिसे कोई अन्य देश भारत को निर्यात नहीं करेगा।
- अमेरिका केवल गैर-घातक रक्षा तकनीक प्रदान करता है जैसे सी-130जे सुपर हरक्यूलिस, सी-13 ग्लोबमास्टर, पी-8आई पोसीडॉन आदि।
- जबकि रूस ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल, एस-400 एंटी-मिसाइल सिस्टम जैसी उच्च तकनीक मुहैया कराता है।
- रूस भी अपेक्षाकृत आकर्षक दरों पर उन्नत हथियारो की पेशकश जारी रखता है।
सैन्य आपूर्ति पर रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव
- फिलहाल भारत और रूस के बीच दो बड़े रक्षा सौदे हैं जिन पर मौज़ूदा संकट का प्रभाव पड़ सकता है।
- S-400 ट्रायम्फ एयर-डिफेंस सिस्टम डील:
- यह सौदा अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण खतरे में है, यहाँ तक कि अमेरिका ने अभी तक इस पर फैसला नहीं लिया है।
- हालाँकि रूस पर नए दौर के प्रतिबंध इस सौदे को ख़तरे में डाल सकते हैं।
- संयुक्त पनडुब्बी के विकास की योजना: रूस चार अन्य अंतर्राष्ट्रीय बोलीदाताओं के साथ प्रोजेक्ट-75-I के तहत नौसेना हेतु छह एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP- संचालित) पारंपरिक पनडुब्बियों को बनाने के लिये भी प्रयासरत है।
- भारत दो परमाणु-बैलिस्टिक पनडुब्बियों- चक्र 3 (Chakra 3) और चक्र 4 (Chakra 4) को पट्टे पर देने हेतु रूस के साथ बातचीत कर रहा है, जिनमें से पहली पनडुब्बी की आपूर्ति वर्ष 2025 तक होने की उम्मीद है।
हथियारों के आयात में विविधता लाने के लिये भारत की योजनाएंँ:
- भारत द्वारा पिछले कुछ वर्षों में न केवल अन्य देशों में बल्कि घरेलू स्तर पर भी अपने हथियार प्लेटफॉर्म बेस का विस्तार करने के लिये प्रयास किया गया है।
- स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने पिछले वर्ष अपनी अंतर्राष्ट्रीय हथियार हस्तांतरण प्रवृत्ति रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि भारत द्वारा वर्ष 2011-15 और वर्ष 2016-20 के बीच हथियारों के आयात में 33% की कमी आई है।
- वर्ष 2011-15 तक संयुक्त राज्य अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता देश था, लेकिन वर्ष 2016-20 के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका से भारत को किये गए हथियारों का आयात पिछले पांँच साल की अवधि की तुलना में 46% कम था जिससे वर्ष 2016-20 में यूएसए भारत का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता देश बन गया।
- वर्ष 2016-20 तक फ्रांँस और इज़रायल भारत के लिये दूसरे और तीसरे सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्त्ता देश थे।
आगे की राह
- जैसा कि पाकिस्तान और चीन को भारत बढ़ते खतरे के रूप में देखता है, साथ ही भारत की स्वयं की प्रमुख हथियारों का उत्पादन करने की महत्त्वाकांक्षी योजनाएंँ हैं, इसलिये भारत हथियारों के आयात को कम करने हेतु बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों की योजना बना रहा है।
- आने वाले पांँच वर्षों में लड़ाकू विमानों, वायु रक्षा प्रणालियों, जहाज़ों और पनडुब्बियों की उत्कृष्ट डिलीवरी के कारण भारत के हथियारों के निर्यात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- इसलिये भारत के लिये यह महत्त्वपूर्ण है कि वह अपने आधार में विविधता लाए, किसी एक राष्ट्र पर बहुत अधिक निर्भर न हो, क्योंकि यह एक ऐसा लेवरिज (Leverage) निर्मित कर सकता है जिसका हथियार आयातक देश द्वारा भारत का शोषण किया जा सकता है।