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डेली अपडेट्स


भारतीय अर्थव्यवस्था

आर्थिक वृद्धि के लिये आवश्यक सुधार

  • 27 Aug 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये

आर्थिक विकास और रोज़गार संबंधी महत्त्वपूर्ण तथ्य

मेन्स के लिये

भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति और इस संबंध में आवश्यक सुझाव

चर्चा में क्यों?

मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (McKinsey Global Institute-MGI) के अनुसार, कोरोना वायरस (COVID-19) काल के पश्चात् आर्थिक वृद्धि के नए अवसरों का निर्माण करने के लिये भारत को अगले एक दशक में अपनी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ाने की आवश्यकता है और यदि ऐसा नहीं होता है तो भारत आय स्थिरता के चक्र में फँस जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (MGI) ने भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में जारी अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि भारत को अगले एक दशक में अपनी GDP 8-8.5 प्रतिशत की दर से बढ़ाने के लिये कम-से-कम 90 मिलियन (9 करोड़) नए गैर-कृषि रोज़गार का सृजन करना होगा।
  • अनुमान के अनुसार, भारतीय GDP में वित्त वर्ष 2020-21 में 3 से 9 प्रतिशत के बीच संकुचन हो सकता है।मौजूद वित्तीय वर्ष अर्थव्यवस्था का संकुचन पूर्णतः सरकार द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) संक्रमण को रोकने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावशीलता पर निर्भर करता है।
  • यदि भारत सरकार कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी और उसके कारण उत्पन्न हुए आर्थिक संकट को सही ढंग से प्रबंधित करने में असमर्थ रहती है, तो वर्ष 2023 से वर्ष 2030 तक भारत भारत की आर्थिक वृद्धि दर 5.5 से 6.0 प्रतिशत के बीच ही रहेगी।
  • रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि वायरस के कारण उत्पन्न हुआ आर्थिक आघात देश की बैंकिंग प्रणाली को तनाव में डाल सकता है। यदि आम नागरिकों, छोटे व्यवसायियों और निगमों पर वित्तीय तनाव को कम नहीं किया गया तो वित्तीय वर्ष 2020-21 में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में 7-14 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण के परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक गैर-कृषि रोज़गार की तलाश कर रहे 90 मिलियन लोगों का कार्यबल मौजूद होगा।
    • इस दौरान भारत को गैर-कृषि रोज़गार की सृजन की दर को तिगुना करना होगा। गौरतलब है कि वर्ष 2013 से वर्ष 2018 की अवधि के बीच भारत में प्रतिवर्ष 4 मिलियन गैर-कृषि रोज़गार का सृजन किया गया था।
  • ध्यातव्य है कि भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस संक्रमण से पूर्व ही संरचनात्मक चुनौतियों का सामना कर रही थी, जिससे देश की GDP वृद्धि वित्त वर्ष 2020 में घटकर 4.2 प्रतिशत रह गई थी।

कोरोना महामारी और बेरोज़गारी की समस्या

  • बीते दिनों सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (Centre for Monitoring Indian Economy-CMIE) ने लॉकडाउन अवधि (अप्रैल-जुलाई 2020) के दौरान रोज़गार से संबंधित आँकड़े जारी किये थे, जिसमें सामने आया था कि अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान वेतनभोगी श्रेणी के कुल 18.9 मिलियन लोगों को रोज़गार के नुकसान का सामना करना पड़ा था।
  • शहरी वेतनभोगी नौकरियों की हानि से अर्थव्यवस्था पर विशेष रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है, इसके अलावा मध्यम वर्गीय परिवारों को भी वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (MGI) ने ऐसे समय में अपनी रिपोर्ट जारी की है जब देश बेरोज़गारी दर लगातार बढ़ती जा रही है, और तमाम आर्थिक विश्लेषण बता रहे हैं कि चालू वित्तीय वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर नकारात्मक रह सकती है।

सुझाव

  • भारत को उत्पादकता बढ़ाने और नए रोज़गार सृजित करने हेतु आगामी 12-18 महीनों में कई महत्त्वपूर्ण सुधार करने होंगे, इस रिपोर्ट में ऐसे कुल 6 क्षेत्रों को भी चिन्हित किया गया है, जिनमें सुधार कर अर्थव्यवस्था में उत्पादकता और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाया जा सकता है।
    • मैक्किंज़े ग्लोबल इंस्टीट्यूट (MGI) ने अपनी रिपोर्ट में मुख्यतः विनिर्माण, रियल एस्टेट, कृषि, स्वास्थ्य और खुदरा क्षेत्रों पर ध्यान देने की वकालत की है।
  • रिपोर्ट में 30 से अधिक राज्य के स्वामित्त्व वाले उद्यमों का निजीकरण करने और पूंजी बाज़ार में अधिक घरेलू बचत को शामिल करने का भी सुझाव दिया गया है।
  • इसके अलावा रिपोर्ट में लचीले श्रम बाज़ार का निर्माण करने और कुशल बिजली वितरण को सक्षम बनाने का भी सुझाव दिया गया है।
  • वित्तीय क्षेत्र के दृष्टिकोण से इस रिपोर्ट में ‘बैड बैंक’ के निर्माण की भी बात की गई है।

‘बैड बैंक’ की अवधारणा

  • बैड बैंक एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है। ये बैड बैंक कर्ज़ में फंसी बैंकों की राशि को खरीद लेते हैं और उससे निपटने का काम भी इन्ही का ही होता है।
  • जब किसी बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सीमा से अधिक हो जाती हैं, तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिये धारण कर लेता है।

स्रोत: द हिंदू

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