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भारत ने डीएनए परीक्षणों पर यू.के. प्रस्ताव को खारिज़ किया

  • 14 Aug 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों?

भारत ने गोपनीयता के मुद्दों का हवाला देते हुए अवैध प्रवासियों की राष्ट्रीयता स्थापित करने के लिये डीएनए नमूनों का उपयोग करने के यू. के. प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • यद्यपि अवैध प्रवासियों की वापसी पर समझौता ज्ञापन प्रक्रिया जनवरी में केंद्रीय के गृह राज्य मंत्री किरन रिजूजू द्वारा मंज़ूरी के बाद शुरू की गई थी। लेकिन भारत ने अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
  • मूल समझौता ज्ञापन के मुताबिक, भारत में सुरक्षा एजेंसियों को ब्रिटेन में रह रहे बिना दस्तावेज़ वाले अवैध  प्रवासियों के पूर्वजों की पहचान 72 दिनों में करनी थी, जबकि दस्तावेज़ के साथ  रह रहे अवैध प्रवासियों की पहचान 15 दिनों में करनी थी। किंतु बाद में भारत ने निर्धारित समय सीमा से खुद को बाहर कर लिया।
  • इसके अनुसार, यदि निर्धारित समय-सीमा के भीतर कोई रिपोर्ट नहीं दी जाती तो अवैध प्रवासी को स्वतः ही निर्वासित कर दिया जाएगा।
  • यू.के. के अधिकारियों ने सुझाव दिया कि दस्तावेज़ रहित अवैध प्रवासियों के भारतीय होने का संदेह है जिन्हें यहाँ रहने वाले उनके परिवारों के डीएनए नमूने से मिलान कर जाँचा जा सकता है।
  • इस संदर्भ में भारत का पक्ष है कि हम यह कैसे स्थापित कर सकते हैं कि बिना दस्तावेज़ वाले लोग भारतीय हैं। इस तरह यह निजता के उल्लंघन के साथ अनैतिक भी है।
  • ब्रिटिश सरकार के अनुमानों के अनुसार, यू. के.  में वीज़ा समाप्ति के बाद भी लगभग 1,00,000 भारतीय निवास कर रहे हैं। जबकि भारत सरकार ने इस आँकड़े को विवादास्पद बताया और कहा कि यह संख्या 2000 से अधिक नहीं है।
  • अप्रैल के बाद यू.के. के कम-से-कम दो उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों ने इस मुद्दे को भारत के साथ उठाया है।
  • गौरतलब है कि नवंबर 2016 में अपनी पहली यात्रा के दौरान ब्रिटिश प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा कि यदि ब्रिटेन में अनधिकृत रूप से रहने वाले भारतीयों की वापसी तेज़ी से होती है तो हम एक बेहतर वीज़ा सौदों पर विचार कर सकते हैं।
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