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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इंडियाज़ पाथ टू पावर: विदेश नीति

  • 06 Oct 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संघ, भारत-प्रशांत क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारतीय विदेश नीति की नवीन चुनौतियाँ और दृष्टिकोण   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में "इंडियाज़ पाथ टू पावर: स्ट्रैटेजी इन ए वर्ल्ड एड्रिफ्ट" शीर्षक वाली एक रिपोर्ट ने वर्तमान संदर्भ में भारत के लिये कई पूर्व नीति सिफारिशों पर प्रकाश डाला।

इसने रेखांकित किया कि रणनीतिक स्वायत्तता, खुलापन और समावेशी आर्थिक विकास प्रमुख मार्गदर्शक सिद्धांत हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • वैश्विक अर्थव्यवस्था का बदलाव: चीन और भारत के उदय तथा यूरोपीय संघ एवं  अमेरिका के आधिपत्य की समानांतर गिरावट के साथ शक्ति का वैश्विक संतुलन एशिया की ओर बढ़ रहा है।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था को सुदृढ़ करना: एशिया और विश्व में बहुध्रुवीयता की ओर रुझान बढ़ रहा है। इस प्रवृत्ति को सुदृढ़ करना भारत के हित में है।
    • इस संदर्भ में भारत को अपनी विदेश नीति को उन विकासशील देशों और उभरती अर्थव्यवस्थाओं की दिशा में फिर से उन्मुख करना चाहिये, जिनके साथ उसके अभिसरण हित हैं।
    • इस तरह के हितों को बहुपक्षीय संस्थाओं और प्रक्रियाओं को मज़बूत करके आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
  • सामरिक स्वायत्तता बनाए रखना: अमेरिका, जापान तथा यूरोप के साथ सामरिक स्वायत्तता की साझेदारी को और मज़बूत करने पर ध्यान दिया जाना चाहिये, जो भारत की सुरक्षा चिंताओं और विकास संभावनाओं को साझा करते हैं।
    • साथ ही इस क्षेत्र में मुद्दों से निपटने और वैश्विक चुनौतियों का जवाब देने हेतु भारत-रूस संबंध को प्रासंगिक बनाए रखना होगा।
  • वैश्वीकरण का समर्थन: भले ही कुछ मामलों में वैश्वीकरण प्रभावित हुआ है लेकिन अतीत और आने वाले भविष्य में यह तेज़ी से तकनीकी प्रगति से प्रेरित होगा।
    • इसलिये अपनी आर्थिक संभावनाओं को बढ़ाने और लोगों के कल्याण में सुधार के लिये भारत को अपनी अर्थव्यवस्था का एक बाहरी अभिविन्यास बनाए रखना चाहिये।
  • पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध: यदि भारत एक विस्तारित क्षेत्रीय और वैश्विक भूमिका निभाना चाहता है और एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता (Net Security Provider) बनना चाहता है, तो उसे पड़ोसी देशों से उत्पन्न होने वाले खतरों और अवसरों का बेहतर प्रबंधन करने की आवश्यकता है।
    • ऐसे में भारत को चीन की चुनौती से निपटना होगा।
      • ऐसा इसलिये है क्योंकि चीन यह स्वीकार करता है कि भारत ही ऐसा देश है, जिसके पास बराबर क्षेत्रफल, जनसंख्या, इतिहास, जनशक्ति और वैज्ञानिक एवं तकनीकी क्षमताएँ हैं, जो इससे आगे निकल सकता है।
    • इसने यह भी कहा कि चीन-पाकिस्तान की मिलीभगत से भारत को राजनीतिक रूप से निर्देशित रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
  • विदेश नीति को प्रभावित करने वाली घरेलू राजनीति को रोकना: ऐसे अनेक उदाहरण हैं जहाँ कई देशों ने भारत की विभिन्न घरेलू नीतियों के लिये आरक्षण का हवाला दिया है। नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 इसका उदाहरण है।
    • इस संदर्भ में घरेलू नीतियों में समावेशिता, असमानताओं को कम करना और अपने सभी नागरिकों को स्वास्थ्य, शिक्षा तथा  सार्वजनिक सुरक्षा की मुख्य जिम्मेदारियाँ प्रदान करना शामिल होना चाहिये।
    • साथ ही यह महसूस करने की आवश्यकता है कि भारत का जन्मजात सर्वदेशीयवाद इसकी असाधारण विविधता से उत्पन्न हुआ है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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