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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WTO में ‘ब्यूनस आयर्स घोषणा-पत्र’ का भारत ने किया विरोध

  • 14 Dec 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटीना) में चल रहे विश्व व्यापार संगठन के 11वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के दौरान व्यापार में महिलाओं की भागीदारी पर एक संयुक्त घोषणा-पत्र जारी किया गया, जिसे WTO के 119 सदस्य राष्ट्रों का अनुमोदन प्राप्त हुआ। इसे ‘महिलाओं और व्यापार पर ब्यूनस आयर्स घोषणा-पत्र’ नाम दिया गया। भारत ने इस घोषणा-पत्र का विरोध किया है।

क्या होगा इस घोषणा पत्र का प्रभाव?

  • कहा जा रहा है कि इस घोषणा पत्र में शामिल प्रावधानों के पालन से दुनिया में महिलाओं को बेहतर वेतन वाली नौकरियाँ मिलेंगी।
  • इससे संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायता मिलेगी।
  • साथ ही लैंगिक समानता पर आधारित सतत् विकास लक्ष्य की ओर किये जा रहे प्रयासों को भी बल मिलेगा।
  • व्यापार गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी से 2025 तक वैश्विक GDP में 28 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि होने की संभावना है। 

भारत द्वारा इसका विरोध करने के पीछे तर्क

भारत का कहना है कि यह घोषणा-पत्र एक लैंगिक मुद्दे को WTO से जोड़ता है, जबकि लैंगिक मुद्दे का व्यापार से कोई लेना-देना नहीं है।

  • यदि आज WTO में किसी लैंगिक मुद्दे को जगह दी जाती है, तो भविष्य में श्रम और पर्यावरणीय मानकों जैसे मुद्दे भी इस मंच पर जगह पाना चाहेंगे। एक कोर व्यापारिक संगठन होने के नाते WTO को स्वयं को सिर्फ व्यापारिक मुद्दों तक सीमित रखना चाहिये।
  • उन्नत देश महिला-व्यापार संबंधी नीतियों में उच्च मानकों का उपयोग कर विकासशील देशों के निर्यात को प्रभावित कर सकते हैं और इससे विकासशील देशों में महिलाओं को मिलने वाले इंसेंटिव या प्रोत्साहन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। 

विभिन्न महिला संगठनों का रुख

  • विश्व के लगभग 160 से अधिक महिला संगठनों ने इस घोषणा पत्र पर आपत्ति जताई है। उनके अनुसार WTO के नियमों के महिलाओं पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से निपटने की कोई व्यवस्था नहीं है।
  • यह घोषणा-पत्र लैंगिक भेद-भाव और शोषण को रोकने की WTO की नीतियों को ढकने का प्रयास है।
  • WTO की मुक्त व्यापार नीतियों का नुकसान सीमांत किसानों खासकर महिला किसानों को उठाना पड़ा है।
  • साथ ही व्यापार शुल्क और आयात-सीमा पर छूट का नुकसान भी महिलाओं को सबसे ज्यादा हुआ है, क्योंकि इन नीतियों से विभिन्न विकासशील देशों की सरकारों का राजस्व घटा, जिससे वहाँ शिक्षा, ऊर्जा, सामाजिक सुरक्षा आदि का बजट घटा है, जिसका सीधा असर महिलाओं पर पड़ा है। 

भारत सदैव महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और समानता का प्रखर समर्थक रहा है। लेकिन ब्यूनस आयर्स घोषणा पत्र पर भारत की चिंताएँ सभी विकासशील देशों की चिंताओं का प्रतिनिधित्त्व करती हैं। साथ ही महिला संगठनों का इस घोषणा पत्र को लेकर किया जा रहा विरोध भी प्रासंगिक है।

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