भारत को अपडेटेड फ्लड मैप की आवश्यकता | 14 Aug 2021
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’, बाढ़ मेन्स के लियेअपडेटेड बाढ़ मानचित्र की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुई भारी वर्षा की घटनाओं से देश भर के कई हिस्सों में बाढ़ आ गई है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि देश में बाढ़-प्रवण क्षेत्रों की संख्या ‘केंद्रीय निगरानी मानचित्र’ में उल्लिखित क्षेत्रों से कहीं अधिक है।
- बाढ़ के पैटर्न और आवृत्तियों में बदलाव के लिये जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के मानचित्र को अपडेट करने की आवश्यकता है।
NDMA के अनुसार बाढ़-प्रवण क्षेत्र
प्रमुख बिंदु
भारत में बाढ़-प्रवण क्षेत्र
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार, बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्र मुख्यतः गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी बेसिन में हिमाचल प्रदेश और पंजाब के उत्तरी राज्यों (जो उत्तर प्रदेश और बिहार को कवर करते हैं) से लेकर असम और अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं।
- ओडिशा और आंध्र प्रदेश के तटीय राज्यों, तेलंगाना और गुजरात के कुछ हिस्सों में भी बाढ़-प्रवण क्षेत्र हैं।
नए मानचित्र की आवश्यकता
- पुराना अनुमान
- वर्तमान सीमांकन चार दशक पूर्व गठित ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’ (RBA) द्वारा वर्ष 1980 के अनुमानों पर आधारित है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग को 1954 के राष्ट्रीय बाढ़ नियंत्रण कार्यक्रम के तहत शुरू की गई परियोजनाओं की विफलता के बाद वर्ष 1976 में कृषि एवं सिंचाई मंत्रालय द्वारा भारत के बाढ़ नियंत्रण उपायों का अध्ययन करने के लिये स्थापित किया गया था।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग के अनुसार, भारत में लगभग 40 मिलियन हेक्टेयर भौगोलिक क्षेत्र बाढ़ की चपेट में है।
- राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बाढ़ के लिये विशुद्ध रूप से मानवजनित कारकों को उत्तरदायी ठहराया है, न कि भारी बारिश को।
- वर्तमान सीमांकन चार दशक पूर्व गठित ‘राष्ट्रीय बाढ़ आयोग’ (RBA) द्वारा वर्ष 1980 के अनुमानों पर आधारित है।
- जलवायु परिवर्तन:
- पिछले चार दशकों से भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझ रहा है। तापमान में वैश्विक वृद्धि के कारण अत्यधिक वर्षा होने के बाद लंबे समय तक वर्षा नहीं हुई है।
- साइंस नेचर जर्नल के अनुसार, वर्ष 1950 से 2015 के बीच मध्य भारत में तीव्र वर्षा की घटनाओं में तीन गुना वृद्धि हुई।
- केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, क्लाइमेट्स चेंज एंड इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2070 से वर्ष 2100 के मध्य तापमान में वृद्धि केचलते भारत में बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि होगी।
- मूसलाधार वर्षा की मात्रा में वृद्धि:
- हाल के दिनों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की अवधि में देश के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर बाढ़ आई है।
- वर्ष 2020 में भारत के 13 राज्यों के 256 ज़िलों में अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ की सूचना मिली है।
बाढ़:
- यह भूमि पर जल का अतिप्रवाह है। भारी बारिश के दौरान उस स्थिति में बाढ़ आ सकती है, जब समुद्र की लहरें तट पर आती हैं, बर्फ जल्दी पिघलती है, या जब बाँध टूटते हैं।
- हानिकारक बाढ़ कुछ इंच ज़मीन या एक घर को छत तक ढक सकती है। बाढ़ मिनटों के भीतर या लंबी अवधि में आ सकती है और दिनों, हफ्तों या उससे अधिक समय तक यह स्थिति रह सकती है। मौसम संबंधी सभी प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे आम और व्यापक है।
- फ्लैश फ्लड सबसे खतरनाक प्रकार की बाढ़ है, क्योंकि यह बाढ़ की विनाशकारी शक्ति को अत्यधिक तीव्र गति से जोड़ती है।
- बाढ़ अचानक तब आती है जब ज़मीन की जल अवशोषित करने की क्षमता से अधिक वर्षा होती है।
- यह स्थिति तब भी होती है जब पानी सामान्य रूप से सूखी खाड़ियों या नालों को भर देता है या पर्याप्त पानी जमा हो जाता है जिससे धाराएँ अपने किनारों को पार कर जाती हैं, जिससे कम समय में पानी का बहाव तेज़ी से बढ़ता है।
- यह वर्षा के कुछ मिनटों के भीतर हो सकता है जिसके कारण जनता को चेतावनी देने और उनकी सुरक्षा के लिये समय नहीं मिल पाता है।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण
परिचय:
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है। इसका औपचारिक रूप से गठन सितंबर 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष के रूप में) और नौ अन्य सदस्य होते हैं और इनमें से एक सदस्य को उपाध्यक्ष बनाया जाता है।
अधिदेश:
- प्राकृतिक या मानव निर्मित आपदाओं के दौरान प्रतिक्रियाओं में समन्वय कायम करना और आपदा से निपटने (आपदाओं में लचीली रणनीति) व संकटकालीन प्रतिक्रिया हेतु क्षमता निर्माण करना है।
- आपदाओं के प्रति समय पर प्रभावी प्रतिक्रिया के लिये आपदा प्रबंधन हेतु नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश तैयार करने का यह एक शीर्ष निकाय है।
विज़न:
- एक समग्र, अग्रसक्रिय तकनीक संचालित और संवहनीय विकास रणनीति द्वारा सुरक्षित और आपदा-प्रत्यास्थ भारत बनाना, जिसमें सभी हितधारकों की मौजूदगी हो तथा जो रोकथाम, तैयारी और शमन की संस्कृति का पालन करती हो।