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सामाजिक न्याय

भारत में लिंगानुपात में सुधार की आवश्यकता

  • 19 Oct 2020
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में लिंगानुपात, कुल प्रजनन दर, प्रतिस्थापन TFR

मेन्स के लिये:

भारत में लिंगानुपात

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के पूर्व अध्यक्ष सी. रंगराजन ने युवा लोगों तक प्रजनन स्वास्थ्य शिक्षा के साथ-साथ ‘लैंगिक समता मानदंडों’ की तत्काल पहुँच की आवश्यकता पर बल दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • पिछले कुछ समय से भारत में प्रजनन क्षमता घट रही है। 'सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम' (SRS) सांख्यिकीय रिपोर्ट में वर्ष 2018 में  'कुल प्रजनन दर' (Total Fertility Rate- TFR) 2.2 रहने का अनुमान लगाया गया था।
    • SRS देश का सबसे बड़ा जनसांख्यिकीय नमूना सर्वेक्षण है। यह सर्वेक्षण रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा किया गया है।

भारत में TFR:

  • देश में प्रजनन क्षमता में गिरावट जारी रहने की संभावना है और अनुमान है कि 2.1 का प्रतिस्थापन TFR को जल्द ही प्राप्त कर लिया जाएगा।
    • कुल प्रजनन दर (TFR), सरल शब्दों में कहा जाए तो एक महिला के उसके जीवन में जन्म लेने वाले या जन्म लेने की संभावना वाले कुल बच्चों की संख्या को संदर्भित करता है।
    • प्रति महिला लगभग 2.1 बच्चों के कुल प्रजनन दर (TFR) को ‘प्रतिस्थापन’ (Replacement) TFR कहा जाता है।

प्रतिस्थापन TFR का महत्त्व:

  • यदि प्रतिस्थापन दर पर TFR लंबे समय तक बनी रहती है, तो प्रत्येक पीढ़ी अपने आप को अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन के बिना अपने देश की जनसंख्या को संतुलित कर देगी।
  • बहुत से लोगों का मानना है कि एक बार प्रतिस्थापन दर पर TFR पहुँच जाने के बाद देश की जनसंख्या कुछ वर्षों में स्थिर हो जाएगी या कम होने लगेगी।

भारत में प्रतिस्थापन TFR के कारण:

  • इसका कारण 'पापुलेशन मोमेंटम इफेक्ट' (Population Momentum Effect) न होकर बड़ी जनसंख्या का 15-49 वर्ष के प्रजनन आयु समूह में प्रवेश करना है।
    • ‘पापुलेशन मोमेंटम इफेक्ट’ का तात्पर्य जन्म और मृत्यु दर में कमी अथवा वृद्धि द्वारा जनसंख्या वृद्धि की प्राकृतिक दर का प्रभावित होना है।
  • उदाहरण के लिये केरल राज्य ने प्रतिस्थापन TFR का स्तर वर्ष 1990 के आसपास प्राप्त कर लिया था, लेकिन इसकी वार्षिक जनसंख्या वृद्धि दर वर्ष 2018 में लगभग 30 साल बाद भी 0.7% थी।

चुनौतियाँ:

प्रतिगामी मानसिकता: 

  • केरल और छत्तीसगढ़ के अलावा संभवतः सभी राज्यों में बेटियों की तुलना में बेटे को प्राथमिकता दी जाती है। यह लोगों के प्रतिगामी मानसिकता को दर्शाता है। उदाहणतः लोग लड़कियों को दहेज से जोड़ते हैं।

प्रौद्योगिकी का दुरुपयोग: 

  • अल्ट्रासाउंड जैसी सस्ती तकनीक का उपयोग लिंग चयन में करना।

कानून के कार्यान्वयन में विफलता: 

  • 'गर्भधारण पूर्व और प्रसव पूर्व निदान-तकनीक (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनियम’ (Pre-Conception and Pre-natal Diagnostic Techniques- PCPNDT), 1994 लिंग चयन को नियंत्रित करने में विफल रहा है।

निरक्षरता: 

  • 15-49 वर्ष की प्रजनन आयु समूह की साक्षर महिलाओं की तुलना में निरक्षर महिलाओं की प्रजनन दर अधिक होती है।

लैंगिक सुधार के लिये सुझाव:

  • महिला शिक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि आर्थिक स्थिति में बदलाव से लिंगानुपात सुधारने में मदद मिलेगी।
  • युवा लोगों तक सरकारी लैंगिक सुधार कार्यक्रमों की पहुँच से जनसंख्या वृद्धि को कम करने तथा  जन्म के समय लिंग-अनुपात सुधारने में मदद मिलेगी।
  • महिलाओं और बच्चों के प्रति संवेदनशीलता पर रोलआउट अभियान, महिला सुरक्षा सेल बनाना, सार्वजनिक परिवहन सुविधाओं में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना, साइबर-क्राइम सेल बनाना आदि पहलों को व्यापक स्तर पर लागू करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष:

  • अनेक नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने के बावजूद भारत में महिलाओं और बालिकाओं का स्वास्थ्य लगातार निम्न स्तर का बना हुआ है। अत: महिलाओं और बच्चों से संबंधित नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन तथा स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच से लैंगिक अंतर को कम करने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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