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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत की राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति

  • 02 Nov 2017
  • 6 min read

संदर्भ

भारत एक व्यापक परिवेश का सृजन करने के लिये ‘राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति’ (national e-commerce policy) का मसौदा तैयार कर रहा है जो निर्यात को बढ़ावा देने के साथ-साथ उपभोक्ताओं के हितों का भी संरक्षण करेगी|

प्रमुख बिंदु

  • भारत सरकार का यह मानना है कि विश्व व्यापार संगठन में ई-कॉमर्स के नियमों के संदर्भ में वार्ता की शुरुआत करना इस समय उचित नहीं है क्योंकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि ये विकासशील देशों (जिनमें उनकी कंपनियाँ और उपभोक्ता शामिल हैं) को किस प्रकार लाभ पहुचाएंगे| 
  • ई-कॉमर्स, डिजिटली अवसंरचना, व्यापार नियमों और विश्व व्यापार संगठन पर एक सत्र को संबोधित करते हुए वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के संयुक्त सचिव का कहना था कि अनेक देश ई-कॉमर्स के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने के लिये बहुपक्षीय नियमों पर वार्ता करने के लिये काफी उत्साहित हैं, परन्तु ये नियम अधिकांश विकासशील राष्ट्रों (जैसे- भारत) के हितों को चोट पहुँचा सकते हैं| अतः भारत को इसका अध्ययन करने के लिये काफी समय की आवश्यकता होगी कि क्या वह उस उत्तरदायित्व सँभालने के लिये तैयार है, जिसके बाद ई-कॉमर्स क्षेत्र में इसे अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार चलना होगा| 
  • इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ई-कॉमर्स के लिये एक पेपर पर कार्य कर रहा है, जिसे शीघ्र ही सार्वजनिक कर दिया जाएगा| इस प्रकार इसमें जो भी टिप्पणियाँ की जाएंगी, वे राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति का आधार बनेंगी|
  • ई-कॉमर्स पर अंतर्राष्ट्रीय नियम बनाने के लिये लगभग 24 पेपरों को विश्व व्यापार संगठन में जमा किया गया है| भारत अपने दृष्टिकोण का समर्थन पाने के लिये अन्य विकासशील देशों के साथ भी वार्ता करेगा| 
  • अनुमानित है कि वर्तमान में वैश्विक ई-कॉमर्स बाज़ार 25 ट्रिलियन डॉलर का है, जिसमें से सीमापारीय व्यापार 5% का है|  तात्पर्य यह है कि ई-कॉमर्स में घरेलू ई-वाणिज्य व्यापार की हिस्सेदारी 95% है|
  • भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार मात्र 30 बिलियन का है| ई-कॉमर्स के लिये राष्ट्रीय नियम बनाना एक कठिन कार्य है| अतः केंद्र सरकार के विभिन्न विभाग ई-कॉमर्स पर एक राष्ट्रीय नीति का निर्माण करने के लिये अपने क्षेत्र में पड़ने वाले मुद्दों का समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं|
  • यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं की शुरुआत करने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है| अतः जिन प्रमुख क्षेत्रों में भारत को ध्यान देने की आवश्यकता है उनमें डाटा का प्रवाह, तकनीक का हस्तांतरण और टेलीकॉम अवसंरचना को अनिवार्य रूप से साझा करना शामिल है|
  • कई राष्ट्र वर्ष 1998 में स्वीकृत ई- कॉमर्स पर बनाई गई कार्ययोजना के पक्ष में हैं| भारत को विश्व व्यापार संगठन और ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी’ (Regional Comprehensive Economic Partnership - RCEP) वार्ताओं में अपने हितों को बनाए रखते हुए एक सुसंगत दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है|

ई-कॉमर्स 

  • वर्तमान में सूचना प्रौद्योगिकी और उन्नत कंप्यूटर नेटवर्कों के माध्यम से ई-कॉमर्स का उपयोग कर व्यापारिक गतिविधियों को बेहतर बनाया जा सकता है। ई-कॉमर्स इलेक्ट्रॉनिक चैनलों जैसे-इंटरनेट द्वारा की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की खरीद और बिक्री को दर्शाता है। 
  • ई-कॉमर्स की शुरुआत 1960 के दशक में की गई थी। इंटरनेट की व्यापक उपलब्धता से 1990 और 2000 के आरंभिक दशक में ऑनलाइन विक्रेताओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
  •  किसी भी डिजिटल प्रौद्योगिकी अथवा उपभोक्ता आधारित खरीद बाज़ार के समान ही ई-कॉमर्स क्षेत्र का भी निरंतर विस्तार हो रहा है। चूँकि आज मोबाइल उपकरण काफी लोकप्रिय हो गए हैं, अतः मोबाइल वाणिज्य भी एक प्रकार का बाज़ार ही बन गया है।
  • ई- कॉमर्स के बाज़ार का बदलता स्वरूप कारोबारों को उनकी प्रासंगिकता में सुधार करने तथा उनके बाज़ार का विस्तार ऑनलाइन जगत तक करने का अवसर उपलब्ध कराता है।
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