भारत मॉरिशस संबंध | 05 Dec 2019
प्रीलिम्स के लिये
मॉरिशस की भौगोलिक स्थिति एवं उससे संबंधित अन्य तथ्य
मेन्स के लिये
भारत मॉरिशस संबंधों का कूटनीतिक महत्त्व
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मॉरिशस में हुए आम चुनावों में प्रधानमंत्री प्रविंद जगनाथ को दोबारा जीत मिली तथा जीत के बाद वे भारत की यात्रा पर आने वाले हैं। ऐसे में भारत को मॉरिशस को लेकर अपनी नीतियों में परिवर्तन करने के साथ ही दोनों देशों को साथ मिलकर परस्पर विकास की नई संभावनाओं की तलाश करनी चाहिये।
मुख्य बिंदु:
- भारत ने एक लंबे समय तक मॉरिशस को भारतीय मूल के प्रवासियों (Diaspora) के संदर्भ में ही देखा है जिनकी संख्या इस देश में अधिक है।
- विगत कुछ वर्षों में भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर में बसे इस द्वीपीय देश को सामरिक दृष्टि से महत्त्व देना प्रारंभ किया है।
- वर्ष 2015 में अपनी मॉरिशस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने महत्त्वाकांक्षी नीति सागर (Security and Growth for All-SAGAR) की शुरुआत की। यह पिछले कई दशकों में भारत द्वारा हिंद महासागर में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था।
- भारत के लिये मॉरिशस में सामरिक दृष्टिकोण से अपार संभावनाएँ निहित हैं तथा दोनों देशों की साझेदारी गन्ने के बागान, वित्तीय सेवाएँ तथा तकनीकी नवाचारों से कहीं आगे जा सकती है।
- अफ्रीकी संघ (African Union), हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association) तथा हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission) का सदस्य होने के कारण इसकी भूमिका न सिर्फ सैन्य बल्कि भौगोलिक आर्थिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है।
ऐतिहासिक दृष्टि से मॉरिशस का महत्त्व
- प्रारंभिक यूरोपीय अन्वेषकों ने अफ्रीका महाद्वीप के चारों ओर होते हुए भारत जाने का रास्ता खोजा। इस यात्रा के दौरान उन्होंने इस द्वीप का नाम मॉरिशस रखा और इसे हिंद महासागर का तारा और चाबी (Star and Key of the Indian Ocean) कहा।
- हालाँकि पुर्तगाली तथा डच यहाँ पहले पहुँचे लेकिन प्रारंभिक 18वीं शताब्दी में फ्राँसीसियों ने इस पर स्थायी नियंत्रण हासिल किया।
- फ्राँसीसियों ने यहाँ गन्ने के बागान विकसित किये, जहाज़ों का निर्माण प्रारंभ किया तथा नौसैनिक अड्डा बनाया। तत्कालीन फ्राँसीसियों ने मॉरिशस को विश्व के प्रत्येक स्थान को जोड़ने वाला भौगोलिक केंद्र कहा।
- नेपोलियनकालीन युद्धों (Napoleonic Wars) के समय इस पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। इसके बाद इसे सैन्य अड्डे के रूप में विकसित किया गया जिसने अंग्रेज़ों के लिये भारत-यूरोप की संचार रेखा की रक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इस देश की भौगोलिक स्थिति की उपयोगिता इस बात से समझी जा सकती है कि डिएगो ग्रेसिया (Diego Grecia), जो एक समय में मॉरिशस का हिस्सा था, वर्तमान में विदेश में स्थित अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है।
भारत-मॉरिशस संबंधों का भविष्य:
- आगामी समय में अफ्रीका में बाज़ार तथा निवेश बढ़ने के आसार हैं। इस स्थिति में भारत की अफ्रीका में पहुँच सुनिश्चित करने में मॉरिशस की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- अभी तक भारत ने हिंद महासागर के वनिला द्वीपों (Vanilla Islands)- कोमोरोस, मेडागास्कर मॉरिशस, सेशेल्स, रीयूनियन द्वीप के साथ द्विपक्षीय आधार पर ही बातचीत की है। यदि भारत उन्हें संयुक्त रूप से एकत्रित करने की कोशिश करता है तो भारत की इस नीति में मॉरिशस की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
- मॉरिशस दक्षिण-पश्चिम हिंद महासागर में भारत की अनेकों वाणिज्यिक गतिविधियों जैसे-बैंकिंग, हवाई यातायात तथा पर्यटन आदि को बढ़ावा देने के लिये सेवा प्रदाता हो सकता है।
- भारत मॉरिशस को तकनीकी नवाचार केंद्र के रूप में विकास करने में मददगार साबित हो सकता है। अभी तक भारत ने मॉरिशस की शिक्षा तथा सूचना प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं के लिये कोई विशेष कार्य नहीं किया है।
- जलवायु परिवर्तन, सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति, ब्लू इकॉनमी (Blue Economy) तथा सामुद्रिक शोध को बढ़ावा देने के लिये मॉरिशस, भारत का एक अहम साझेदार हो सकता है।
- दक्षिण-पश्चिमी हिंद महासागर में सुरक्षा सहयोग के दृष्टिकोण से मॉरिशस की भूमिका केंद्र में होगी जिससे दोनों देश अन्य सभी द्वीपीय देशों के हितों की रक्षा करने में सहायक होंगे।