जैव विविधता और पर्यावरण
मृदा अपरदन से वर्ष 1990-2016 के दौरान भारत की एक तिहाई तट रेखा का विनाश
- 16 Aug 2018
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चर्चा में क्यों?
नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1990 से 2016 के बीच मिट्टी के कटाव के कारण भारत की 6,632 किलोमीटर की लंबी तटरेखा का लगभग एक-तिहाई हिस्सा नष्ट हो चुका है।
प्रमुख बिंदु
- पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने भी हाल ही में संसद को बताया था कि पश्चिमी तट (काफी हद तक स्थिर रहा) की तुलना में पिछले तीन दशकों में बंगाल की खाड़ी से लगातार चक्रवाती गतिविधियों के कारण पूर्वी तट में अधिक कटाव हुआ है
- रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल (63%) और पुद्दुचेरी मृदा क्षरण के प्रति अधिक संवेदनशील हैं, इसके बाद केरल और तमिलनाडु में मृदा क्षरण क्रमश: 45% और 41% रहा।
- उल्लेखनीय है कि पूर्वी तट पर ओडिशा एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ तटीय मृदा क्षरण में 50% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- दरअसल, तटीय कटाव आबादी के लिये एक खतरा बन गया है और यदि हम तत्काल कदम नहीं उठाते हैं, तो समुद्र के साथ अधिकांश भूमि और बुनियादी ढाँचे को खो देंगे, साथ ही इस प्रकार का नुकसान अपूरणीय होगा।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की मुख्य भूमि जो समुद्र से संलग्न है, का लगभग 234.25 वर्ग किमी. क्षेत्र वर्ष 1990-2016 के दौरान नष्ट हो गया है। जलवायु परिवर्तन और बढ़ते समुद्री जलस्तर ने इस समस्या को और बढ़ा दिया है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह के विश्लेषण से तूफान और सुनामी जैसे तटीय खतरों का सामना करने के लिये की जाने वाली तैयारी में सुधार करने में मदद मिलेगी।
- तटरेखाओं में बदलाव तटीय आधारभूत संरचना के लिये खतरा तो है ही साथ ही, यह आशंका है कि अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाने सहित मछली पकड़ने के उद्योग को भी प्रभावित कर सकता है।
- यह विश्लेषण एनसीसीआर के शोधकर्ताओं द्वारा नौ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के साथ संलग्न 6,632 किलोमीटर लंबी तटरेखा का उपग्रहीय मानचित्रण तैयार क्र किया गया है।