मानव तस्करी के मामले में ज़्यादा बेहतर नहीं है भारत की स्थिति | 01 Jul 2017
समाचारों में क्यों?
हाल ही में सयुंक्त राज्य अमेरिका ने मानव तस्करी से प्रभावित देशों और इसे रोकने के लिये इन देशों में किये जा रहे प्रयासों का अवलोकन कर एक विशेष रिपोर्ट तैयार की है। गौरतलब है कि इस सूची में भारत को टियर-2 श्रेणी में रखा गया है, जिसका अभिप्राय है कि इस दिशा में किये जा रहे प्रयास तो उचित है, लेकिन पूर्णतया असरकारक साबित नहीं हो पा रहे हैं।
रिपोर्ट से संबंधित महत्त्वपूर्ण बिंदु
- अमरीका के गृह मंत्रालय द्वारा जारी इस रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार की ओर से मानव तस्करी रोकने के लिये काफी प्रयास किये गए है, लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं हैं। ये सभी प्रयास आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।
- भारत को इस दिशा में अभी और अधिक प्रयास करने होंगे। उल्लेखनीय है कि भारत में मानव तस्करी के मामले कम होने का कुछ श्रेय सरकार द्वारा लागू की गई नोटबंदी को भी दिया गया है। शोधकर्त्ताओं का मानना है कि इस फैसले से अवैध धंधे, ईंट-भट्टे तक बंद हो गए हैं।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत ने पहले से अधिक बेहतर प्रयास किये हैं। जहाँ भारत में पीडि़तों की पहचान करना, अपराधियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई और सज़ा का होना, पीड़ित महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष कार्ययोजना तैयार करना, पुनर्वास, आश्रय स्थलों और रोज़गार के इंतज़ाम के लिये बजट में बढ़ोतरी किया जाना भी शामिल है।
किन क्षेत्रों में करना होगा सुधार?
- रिपोर्ट में कहा गया है कि बंधुआ मज़दूरी भारत की सबसे बड़ी तस्करी की समस्या है, जिसमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को कर्ज़-बंधन, पिछली पीढिय़ों से विरासत में मिले ईंट-भट्टों, चावल मिलों और कारखानों में काम करने के लिये मजबूर होना पड़ता है।
- दलित, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक और समाज से बहिष्कृत परिवारों की महिलाओं और लड़कियों के तस्करी के सर्वाधिक मामले पाए गए हैं।
- अधिकांश पीडि़त लोगों को निर्माण, इस्पात, भूमिगत केबिल कार्य, खदानों, मछली फर्मों और वस्त्र उद्योग जैसे क्षेत्रों में धोखे में रखकर काम करने के लिये मज़बूर किया जाता है।
- वहीं वयस्कों और बच्चों को रोजगार के झूठे वादों के तहत ह्यूमन ट्रैफिकिंग और सेक्स रैकेट के जाल में फंसाया जाता है। इन पर भी रोक लगाई जानी चाहिये।