अफगान शांति प्रक्रिया और भारत | 10 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान में शांति के लिये भविष्य की राह निर्धारित करने हेतु एक नई शांति योजना की परिकल्पना की है।

  • योजना के तहत अमेरिका के तत्त्वावधान में एक क्षेत्रीय सम्मेलन का प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान के विदेश मंत्रियों के साथ अफगानिस्तान पर ‘एकीकृत’ दृष्टिकोण के माध्यम से चर्चा की जाएगी।

प्रमुख बिंदु 

अमेरिकी राष्ट्रपति की नई शांति योजना

  • सैन्य वापसी में विलंब: इस शांति योजना ने इस संभावना को प्रबल कर दिया है कि वर्तमान में अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिक लंबे समय तक अफगानिस्तान में रह सकते हैं।
    • इससे पूर्व अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत अमेरिका ने मई 2021 तक सभी सैनिकों को वापस अमेरिका लाने का वादा किया था।
  • तत्काल कार्रवाई: अमेरिका, तालिबान पर कम-से-कम 90 दिनों तक हिंसा कम करने संबंधी तात्कालिक समझौते को स्वीकार करने हेतु दबाव बना रहा है, ताकि शांति स्थापित करने के लिये एक नया मार्ग बनाया जा सके।
  • समावेशी प्रक्रिया: अमेरिका अफगानी पक्षों पर किसी भी प्रकार की ‘शर्त’ लागू नहीं करेगा, बल्कि अमेरिका एक समावेशी अंतरिम सरकार, नई राजनीतिक व्यवस्था के लिये ‘मूलभूत सिद्धांतों’ पर आधारित एक समझौता और एक ‘स्थायी एवं व्यापक युद्ध विराम’ की व्यवस्था प्रदान करेगा। 
  • तुर्की की भूमिका: अमेरिका, तुर्की को काबुल (अफगानिस्तान की राजधानी) में हो रहे शांति समझौते में तुर्की को शामिल करने और इस समझौते को अंतिम रूप देने में सहायता करने पर ज़ोर दे रहा है।
  • एकीकृत दृष्टिकोण: अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र से कहा कि वह अफगानिस्तान में शांति के लिये ‘एकीकृत दृष्टिकोण’ विकसित करने हेतु चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की वार्ता आयोजित करे। 

‘एकीकृत दृष्टिकोण’ के माध्यम से शांति प्रक्रिया में भारत की भूमिका

  • शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में भारत काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है और अमेरिका ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है।
  • भारत, अफगानिस्तान में शांति और सुलह के लिये सभी प्रयासों का समर्थन करता है, जो कि समावेशी और अफगान-नेतृत्व एवं अफगान-नियंत्रित होगा। 
  • भारत ने अवसंरचना के विकास, सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करने और आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति करने में भारी निवेश किया है। 
  • अफगानिस्तान की स्थिरता भारत के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसने अफगानिस्तान के विकास के संदर्भ में काफी निवेश किया है।
  • भारत विशेष तौर पर आतंकवाद, हिंसा, महिला अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों से संबंधित मानकों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 

Helping-Hand

अफगानिस्तान में भारत के हित

  • आर्थिक और सामरिक हित: अफगानिस्तान तेल एवं खनिज संपन्न मध्य एशियाई गणराज्यों के लिये प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
    • अफगानिस्तान की सत्ता ही भारत को मध्य एशिया (अफगानिस्तान के माध्यम से) से जोड़ने वाले भूमि मार्गों को नियंत्रित करती है।
  • विकास परियोजनाएँ: अफगानिस्तान में व्यापक स्तर पर पुनर्निर्माण की योजनाएँ, भारतीय कंपनियों के लिये कई विशिष्ट अवसर पैदा करेंगी।
    • इन प्रमुख परियोजनाओं में अफगान संसद, डेलारम-जरंज राजमार्ग और अफगानिस्तान-भारत मैत्री बाँध (सलमा बाँध) आदि शामिल हैं।
    • इसके अलावा 3 बिलियन डॉलर से अधिक की भारत की सहायता और सैकड़ों छोटी विकास परियोजनाएँ (जैसे- स्कूल, अस्पताल और जल परियोजना) आदि ने अफगानिस्तान में भारत की स्थिति काफी मज़बूत की है।
  • सुरक्षा संबंधी हित: भारत, पाकिस्तान समर्थित राज्य प्रायोजित आतंकवाद से प्रभावित है, जो इस क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी समूहों (जैसे- हक्कानी नेटवर्क आदि) का समर्थन करता है। अतः अफगानिस्तान में एक मैत्रीपूर्ण सरकार स्थापित करने से पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद से निपटने में मदद मिल सकती है।

चुनौतियाँ

  • अफगान सरकार और तालिबान दोनों ही किसी भी प्रकार से सत्ता के बँटवारे के लिये तैयार नहीं हैं।
    • तालेबान, पाकिस्तान में अपने शरणस्थलों को छोड़ने को तैयार नहीं है और न ही वह अफगानिस्तान में सख्त इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर होने देना चाहता है। 
  • इसके अलावा स्वयं तालिबान भी आंतरिक रूप से काफी विभाजित है। यह विभिन्न क्षेत्रीय और आदिवासी समूहों से मिलकर बना है जो अर्द्ध-स्वायत्तता के साथ काम करता है।
    • अतः यह संभव है कि उनमें से कुछ हिंसक गतिविधियों को जारी रखें, जिससे शांति और संवाद प्रक्रिया प्रभावित होगी।

आगे की राह

  • इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिये एक स्वतंत्र, संप्रभु, लोकतांत्रिक, बहुलवादी और समावेशी अफगानिस्तान काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये अफगान शांति प्रक्रिया का अफगान नेतृत्त्व, अफगान स्वामित्व और अफगान नियंत्रित होना आवश्यक है। 
  • साथ ही वैश्विक समुदाय का आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दे के विरुद्ध भी एकजुट होना आवश्यक है। ऐसे में यह समय ‘अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय’ (CCIT) को लागू करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकता है, जिसे भारत द्वारा वर्ष 1996 में संयुक्त राष्ट्र में प्रस्तावित किया गया था।
  • यद्यपि अमेरिका द्वारा की जा रही नई पहल एक महत्त्वपूर्ण कदम है, किंतु आगे की राह काफी चुनौतीपूर्ण होगी। अफगानिस्तान में स्थायी शांति स्थापित करने के लिये सभी पक्षों को धैर्य के साथ मध्यमार्ग अपनाने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस