नई औषधियों के विनियमन के लिये भारत के पास सीखने का अवसर | 11 Apr 2018
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में एक अध्ययन “प्रीक्लिनिकल एफिकेसी स्टडीज़ इन इन्वेस्टिगेटर ब्रोशर: डू दे इनेबल रिस्क-बेनिफिट असेसमेंट” के अनुसार औषध निर्माताओं द्वारा पशुओं पर किये जा रहे परीक्षणों के गलत आँकड़ें प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
- किसी औषधि के नैदानिक परीक्षण से पूर्व जानवरों पर उनका परीक्षण किया जाता है। यदि औषधियों को अनुमोदित करवाने के लिये कंपनियाँ केवल ऐसे चुनिन्दा आँकडें प्रस्तुत करती है जो सकारात्मक हैं, तो नैदानिक परीक्षण में सम्मिलित मानवों पर खतरा बना रहता है।
‘Schedule H’ औषध एवं प्रसाधन नियम, 1945 के अंतर्गत सूचीबद्ध औषधियों की एक श्रेणी है जिन्हें बिना चिकित्सीय परामर्श के नहीं खरीदा जा सकता है। |
भारत में औषधियों के अनुमोदन की प्रक्रिया तथा संस्थाएँ
- CDSCO (सेंट्रल ड्रग स्टैण्डर्ड कण्ट्रोल आर्गेनाइज़ेशन) भारत की राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण है जिसके द्वारा औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम, 1940 के तहत नई औषधियों के आयात/विनिर्माण, अनुमोदन, नैदानिक परीक्षण तथा DCC एवं DTAB की बैठकों का नियामक नियंत्रण किया जाता है।DCGI (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया), CDSCO के अधीन एक नियामक एजेंसी है जिसके द्वारा भारत में तथा विशिष्ट श्रेणी की औषधियों (रक्त एवं रक्त उत्पाद, I।V फ्लुइड्स, वैक्सीन एवं सेरा) हेतु लाइसेंस प्रदान किये जाते हैं तथा औषधियों के विनिर्माण, विक्रय आदि हेतु मानक तय किये जाते हैं।
- इसके साथ ही, यह राज्य औषधि नियामक प्राधिकरणों के साथ मिलकर औषधियों का विक्रय तथा वितरण प्रशासित करती है।
- DTAB (ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड) द्वारा औषधियों से संबंधित तकनीकी मुद्दों पर परामर्श प्रदान किये जाते हैं।
- किसी भी औषधि के विक्रय की अनुमति लेने के लिये उसकी रासायनिक तथा औषधीय जानकारी, पशुओं तथा इंसानों पर उनके चरणबद्ध परीक्षण के आँकड़ें, अन्य देशों में उसका नियामक दर्जा समेत विस्तृत जानकारी प्रदान किया जाना आवश्यक है।
भारत में संबंधित मुद्दे
- हाल ही में, DTAB के परामर्श से भारत में Schedule H श्रेणी के अंतर्गत सम्मिलित स्टेरॉयड्स एवं एंटीबायोटिक्स घटक वाली 14 क्रीमों को प्रतिबंधित किया गया है।
- कई चर्म-चिकित्सकों द्वारा यह शिकायत की जा रही थी कि भारत में इन औषधियों को बिना चिकित्सीय परामर्श के बेचा जा रहा है।
- इसके अतिरिक्त, “ब्रिटिश जर्नल ऑफ क्लिनिकल फार्माकोलोजी” में प्रकशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में CDSCO के अनुमोदन के बिना कई निश्चित मात्रा सहयोजन (फिक्स्ड डोज़ कॉम्बिनेशन: FDC) औषधियों को बेचा जा रहा है जो सूक्ष्मजीवी-प्रतिरोधकता नियंत्रण के लिये एक खतरा है।
आगे की राह
- जर्मनी से सीख लेते हुए भारत में भी नियामक प्राधिकरणों द्वारा औषध कंपनी के माध्यम से किये जाने वाले नैदानिक तथा पूर्व-नैदानिक परीक्षणों के आँकड़ों का सत्यापन किया जाना अत्यावश्यक है, जिससे परीक्षण में शामिल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
- इसके अतिरिक्त सूक्ष्मजीवियों की प्रतिरोधकता में वृद्धि न होने देने के लिये यह आवश्यक है कि औषधियों के अनुमोदन एवं विक्रय हेतु एक पारदर्शी तथा सख्त नियामक प्रक्रिया अपनाई जाए तथा औषधियों की ओवर-द-काउंटर बिक्री की निगरानी की जाए।