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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत में विश्व के 31% गरीब बच्चे निवास करते हैं

  • 03 Jun 2017
  • 3 min read

संदर्भ
ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (OPHI) की “ग्लोबल मल्टी-डायमेंशनल पावर्टी इंडेक्स (MPI) -2017” नामक नई रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के "बहुआयामी गरीबी” के शिकार बच्चों में से करीब 31% बच्चे भारत में निवास करते हैं। 

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यह अध्ययन 103 देशों में किये गए एक सर्वेक्षण के आधार पर किया गया है। इन देशों के संदर्भ में देखा जाए तो विश्व के 689 मिलियन गरीब बच्चों में से 31% बच्चे भारत में निवास करते हैं, इसके बाद नाइजीरिया में 8%, इथियोपिया में 7% और पाकिस्तान में 6% बच्चे ऐसी स्थिति में जीवन-यापन करते है।
  • ‘बहुआयामी गरीबी’ से पीड़ित बच्चा वह होता है जिसमें तीन आयामों (स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर) में समूहीकृत किये गए दस संकेतकों में से कम-से-कम एक-तिहाई का अभाव हो। इसमें ‘स्वास्थ्य’ आयाम में पोषण व शिशु मृत्यु दर शामिल हैं, तो ‘जीवन स्तर’ में खाना पकाने के लिये ईंधन, बेहतर स्वच्छता, सुरक्षित पेयजल, बिजली इत्यादि शामिल हैं।
  • कुल जनसंख्या के अनुपात के रूप में ऐसे ‘बहुसंख्यक गरीब’ बच्चों की संख्या के संदर्भ में भारत 103 देशों में 37वें स्थान पर है। देश के कुल 21.7 करोड़ बच्चों में से 49.9% बहुआयामी रूप से गरीब हैं। यह सर्वेक्षण 2011-2012 के ‘भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण’ पर आधारित है।
  • रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनिया के 103 देशों में लगभग 50% लोग बहुआयामी गरीबी से पीड़ित हैं, इनमें 48% बच्चे शामिल हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, बहुआयामी गरीबी से पीड़ित 87% बच्चे तो केवल दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में निवास करते हैं।

भारत के लिये चिंता का विषय क्यों?

  • अगर पूर्ण संख्या के संदर्भ में बात करें तो भारत सर्वाधिक  ‘बहु-आयामी गरीब’ लोगों की जनसंख्या वाला देश है।
  • दुर्भाग्य से, देश में 52.8 करोड़ से अधिक गरीब लोग निवास करते हैं, जो सब-सहारा अफ्रीका में रहने वाले सभी गरीब लोगों की तुलना में अधिक है। 

 बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI)

  • MPI को ऑक्सफोर्ड गरीबी और मानव विकास पहल (ओपीएचआई) तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा 2010 में विकसित किया गया था।
  • इस सूचकांक द्वारा गरीबी निर्धारण में आय आधारित सूचकांको के अलावा विभिन्न कारकों को शामिल किया गया है।
  • इसे पहले के सभी ‘मानव गरीबी सूचकांकों’ के स्थान पर विकसित किया गया है।
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