शीघ्र ही होगा भारत का प्रथम गर्भाशय प्रत्यारोपण | 13 May 2017

संदर्भ
पुणे और बंगलुरु के दो चिकित्सा केंद्रों द्वारा देश का प्रथम गर्भाशय प्रत्यारोपण किया जाएगा| वस्तुतः चिकित्सा के क्षेत्र में देश भर में इस विषय पर एक लंबी बहस छिड़ी थी कि एक महिला को माँ बनने के लिये कितने समय तक प्रतीक्षा करनी चाहिये?  

प्रमुख बिंदु

  • गर्भाशय प्रत्यारोपण एक अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है जिसके कारण ‘अनुपस्थित’ व ‘खराब’ गर्भाशय वाली महिलाएँ किसी अन्य महिला के गर्भ प्रत्यारोपण के माध्यम से माँ बन सकती हैं| 
  • भारत में प्रत्येक 4,000 महिलाओं में से एक महिला में गर्भाशय अनुपस्थित होता है| विश्व में लगभग 4 लाख महिलाएँ ऐसी हैं जिनमें गर्भाशय जन्म से ही नहीं पाया गया है| इस प्रकार, गर्भाशय विहीन महिलाओं के लिये गर्भ धारण करना एक स्वपन बन जाता है| अतः इस प्रक्रिया से उन्हें लाभ मिलेगा| फिलहाल इस प्रक्रिया का परीक्षण दो महिलाओं पर ही किया जाएगा, जबकि 31 महिलाएँ ऐसी भी हैं जिन्हें गर्भ प्रत्यारोपण कराना है| चिकित्सकों का यह मानना है कि जब उनके पास तकनीक उपलब्ध है तो उसका उपयोग अवश्य किया जाना चाहिये|
  • हालाँकि, प्रसूति विशेषज्ञ यह महसूस करते हैं कि यदि गर्भ प्रत्यारोपण सफल होता है तो यह विज्ञान की विजय होगी तथा इससे चिकित्सकीय इतिहास में यह सिद्ध होगा कि भारतीय चिकिसक ऐसा करने में समर्थ हैं परन्तु वास्तविकता में यह शल्य चिकित्सा व्यावहारिक नहीं है|
  • भारत में ये दोनों शल्य चिकित्साएँ पुणे में 18 व 19 मई को की जाएंगी|

क्या है प्रक्रिया?

  • सबसे पहले गर्भाशय को हटाने के लिये गर्भाशय दाता की शल्य चिकित्सा की जाती है| अन्य शल्य चिकित्सों के विपरीत गर्भाशय के चारों ओर की रक्त वाहिकाओं और संवहनी पैडीकल्स (vascular pedicels) को सुरक्षित कर लिया जाता है तथा इसके बाद इन्हें पुनः गर्भाशय प्राप्तकर्ता से संबद्ध कर दिया जाता है| 
  • इस प्रत्यारोपण के पश्चात गर्भाशय प्राप्तकर्ता को ऐसी दवा दी जाती है जिससे उसका शरीर इस अंग को अस्वीकार न करे| विदित हो कि इस प्रक्रिया के पश्चात भी महिला को इन विट्रो निषेचन (In Vitro Fertility –IVF) प्रक्रिया के माध्यम से गर्भधारण करने के लिये कम से कम एक साल की प्रतीक्षा करनी होती है|

क्या यह प्रक्रिया व्यवहार्य है?

  • प्रत्यारोपण से कुछ समय पूर्व महिला के अंडाणुओं को निकाल लिया जाता है तथा उसके पति के शुक्राणुओं के साथ उनका निषेचन कराकर भ्रूण का निर्माण किया जाता है| यही यह इन-विट्रो निषेचन सफल होता है तो महिला गर्भधारण कर सकती है| 
  • इस प्रक्रिया में प्रसव को एक सी-सेक्शन (C-section) के माध्यम से कराया जाता है तथा प्रसव के पश्चात प्रत्यारोपित गर्भाशय को हटा लिया जाता है ताकि महिला को इससे किसी अन्य समस्या का सामना न करना पड़े| 
  • हालाँकि, ऐसे मामलों में इन-विट्रो निषेचन की सफलता दर मात्र 40% ही है तथा इस स्थित में महिलाओं में गर्भपात तथा समय से पूर्व प्रसव होने का खतरा भी बना रहता है|

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • विश्व में सर्वप्रथम गर्भ प्रत्यारोपण वर्ष 2002 में सऊदी अरब में किया गया था, जबकि दूसरा प्रत्यारोपण वर्ष 2011 में तुर्की में किया गया था| ये दोनों ही प्रत्यारोपण शवों पर किये गए थे जहाँ मृत रोगी का गर्भाशय लिया गया था| हालाँकि, ये दोनों ही प्रत्यारोपण असफल हो गए थे| 
  • वर्ष 2014 में स्वीडन में पहला सफल जीवित गर्भ प्रत्यारोपण किया गया था और तब से आज तक केवल स्वीडन ही एक ऐसा देश है जहाँ सफलतापूर्वक गर्भ प्रत्यारोपण किया गया है| अन्य अंगों के प्रत्यारोपण से जीवन की रक्षा की जाती है  परन्तु गर्भ प्रत्यारोपण मानो एक ‘शल्य चिकित्सकीय करतब’(surgical feat) है|
  • भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में ऐसी प्रक्रियाओं की सफलता का निर्धारण केवल इसमें लगने वाली समयावधि के माध्यम से ही किया जाएगा|
  • इस गर्भ प्रत्यारोपण का उद्देश्य अच्छा प्रतीत होता है परन्तु ऐसी प्रक्रियाओं की व्यवहार्यता और लागत का भी अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है|