विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मिश्रित बायो-फ्यूल के साथ भारतीय वायुसेना की पहली उड़ान
- 18 Dec 2018
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चर्चा में क्यों?
भारतीय वायुसेना (Indian Air Force) के प्रमुख परीक्षण स्थल ASTE, बंगलूरू में 17 दिसंबर, 2018 को पायलटों और इंजीनियरों ने An-32 सैनिक परिवहन विमान (transport aircraft) में पहली बार मिश्रित बायो-जेट ईंधन (blended bio-jet fuel) का इस्तेमाल करते हुए प्रायोगिक उड़ान भरी। यह परियोजना भारतीय वायुसेना, DRDO, डायरेक्टोरेट जनरल एरोनॉटिकल क्वालिटी एश्योरेंस (Directorate General Aeronautical Quality Assurance-DGAQA) और CSIR-भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (Indian Institute of Petroleum) का मिला-जुला प्रयास है।
प्रमुख बिंदु
- भारतीय वायुसेना ने ज़मीन पर बड़े पैमाने पर ईंजन परीक्षण किये। इसके बाद 10 प्रतिशत मिश्रित एटीएफ का इस्तेमाल करते हुए विमान का परीक्षण किया गया।
- इस ईंधन को छत्तीसगढ़ जैव डीज़ल विकास प्राधिकरण (Chattisgarh Biodiesel Development Authority-CBDA) से प्राप्त जट्रोफा तेल से बनाया गया है, जिसका बाद में CSIR-IIP में प्रसंस्करण किया गया है।
- भारतीय वायुसेना 26 जनवरी, 2019 को गणतंत्र दिवस पर फ्लाईपास्ट (Republic Day flypast) में बायो-जेट ईंधन का इस्तेमाल करते हुए An-32 विमान उड़ाना चाहती है।
एविएशन बायो-फ्यूल
- पौधों में मौजूद अखाद्य तेलों, लकड़ी और उसके उत्पादों, जानवरों की वसा और बायोमास से बनने वाले बायो-फ्यूल के एक हिस्से को पारंपरिक ईंधन, जैसे पेट्रोल या डीज़ल में मिलाकर एविएशन बायो-फ्यूल बनाया जाता है।
जट्रोफा से बायो-फ्यूल
- वर्तमान समय में हमारे सामने परमाणु ऊर्जा, सौर-ऊर्जा, पवन ऊर्जा एवं प्राकृतिक गैस आदि के रूप में कई विकल्प उपलब्ध हैं परंतु विकिरण से जुड़े खतरों,अत्यधिक लागत व अन्य सीमाओं के कारण इन विकल्पों पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहा जा सकता है। यही कारण है कि कुछ देशों में तिलहनों व वृक्षों से प्राप्त होने वाले बीज के तेलों को पेट्रोलियम उत्पादों के स्थान पर उपयोग में लाया जा रहा है।
- अमेरिका व यूरोप के कुछ देशों में वनस्पति से प्राप्त खाद्य तेल जैसे- सोयाबीन, सूरजमुखी, मूँगफली तथा मक्का को डीज़ल के विकल्प के रूप में उपयोग किया जा रहा हैं, परंतु भारत में खाद्य तेल की बढ़ती मांग के चलते इनके किसी अन्य उपयोग के बारे में विचार करना भी कठिन प्रतीत होता है। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों द्वारा वृक्षमूल वाले तिलहनों जैसे- नीम, तुंग, करंज व जेट्रोफा (रतनजोत) इत्यादि से प्राप्त होने वाले तेलों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने पर बल दिया जा रहा है।
- कम सिंचाई, पथरीली एवं ऊँची-नीची बंज़र भूमियों में उगने की क्षमता तथा जंगली जानवरों से कोई हानि न होने जैसी विलक्षण विशेषताओं के कारण जट्रोफा की खेती करना बहुत आसान है। जेट्रोफा के तेल से बने डीज़ल में सल्फर की मात्रा बहुत ही कम होने के कारण इसको बायो-डीज़ल की श्रेणी में रखा गया है।
जैव ईंधन के प्रमुख लाभ
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत।
- गैर-विषाक्त और बायोडिग्रेडेबल।
- इसमें कोई सल्फर नहीं होता है जो एसिड बारिश का कारण बनता है।
- पर्यावरण अनुकूल कम उत्सर्जन।
- ग्रामीण रोज़गार क्षमता।
जैव ईंधन संचालित पहली जेट उड़ान
- जेट्रोफा बीज से निर्मित तेल और विमानन टरबाइन ईंधन के मिश्रण से प्रणोदित उड़ान देश की पहली जैव ईंधन संचालित उड़ान होगी।
- उल्लेखनीय है कि यह उड़ान सेवा दिल्ली से देहरादून के बीच संचालित हुई, जिसमें 43 मिनट का समय लगा। यह सेवा स्पाइस जेट (Bombardier Q-400) द्वारा मुहैया कराई गई। इस उड़ान में चालक दल के पाँच सदस्यों सहित कुल 25 व्यक्ति सवार थे।
- विमान के ईंधन में जैव-ईंधन और विमानन टरबाइन ईंधन का अनुपात 25:75 था। ध्यातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, विमानन टरबाइन ईंधन के साथ 50% की दर से जैव ईंधन मिश्रित करने की अनुमति प्राप्त है।
- उल्लेखनीय है कि देहरादून स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद के साथ भारतीय पेट्रोलियम संस्थान को स्वदेशी रूप से ईंधन के निर्माण में आठ वर्ष का समय लग गया।
- ध्यातव्य है कि 2008 में वर्जिन अटलांटिक द्वारा वैश्विक स्तर पर पहली टेस्ट उड़ान के बाद ही संस्थान ने जैव ईंधन पर अपना प्रयोग कार्य शुरू किया था।
विश्व जैव-ईंधन दिवस
- 10 अगस्त, 2018 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में विश्व जैव-ईंधन दिवस का आयोजन किया गया।
- परंपरागत जीवाश्म ईंधनों के विकल्प के तौर पर गैर-जीवाश्म ईंधनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने और सरकार द्वारा जैव-ईंधन के क्षेत्र में की गई पहलों को दर्शाने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 अगस्त को विश्व जैव-ईंधन दिवस आयोजित किया जाता है।
- पिछले तीन वर्षों से तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय विश्व जैव-ईंधन दिवस का आयोजन कर रहा है।
- सर रुदाल्फ डीज़ल (डीज़ल इंजन के आविष्कारक) ने 10 अगस्त, 1893 को पहली बार मूँगफली के तेल से यांत्रिक इंजन को चलाने में सफलता हासिल की थी।
जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति, 2018
- इस नीति के द्वारा गन्ने का रस, चीनी युक्त सामग्री, स्टार्च युक्त सामग्री तथा क्षतिग्रस्त अनाज, जैसे- गेहूँ, टूटे चावल और सड़े हुए आलू का उपयोग करके एथेनॉल उत्पादन हेतु कच्चे माल के दायरे का विस्तार किया गया है।
- नीति में जैव-ईंधनों को ‘आधारभूत जैव-ईंधनों’ यानी पहली पीढ़ी (1जी) के बायो-एथेनॉल और बायो-डीज़ल तथा ‘विकसित जैव-ईंधनों’ यानी दूसरी पीढ़ी (2जी) के एथेनॉल, निगम के ठोस कचरे (एमएसडब्ल्यू) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, बायो-सीएनजी आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन बढ़ाया जा सके।
- अतिरिक्त उत्पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस नीति में राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंज़ूरी से एथेनॉल उत्पादन के लिये (पेट्रोल के साथ उसे मिलाने हेतु) अधिशेष अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है।
- जैव-ईंधनों के लिये नीति में 2जी एथेनॉल जैव रिफाइनरी को 1जी जैव-ईंधनों की तुलना में अतिरिक्त कर प्रोत्साहन, उच्च खरीद मूल्य आदि के अलावा 6 वर्षों में 5000 करोड़ रुपए की निधियन योजना हेतु वायबिलिटी गैप फंडिंग का संकेत दिया गया है।
राजस्थान, केंद्र सरकार द्वारा मई 2018 में प्रस्तुत की गई जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति को लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। राजस्थान अब तेल बीजों के उत्पादन में वृद्धि करने पर ध्यान केंद्रित करेगा तथा वैकल्पिक ईंधन और ऊर्जा संसाधनों के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये उदयपुर में एक उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करेगा। जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति किसानों को उनके अधिशेष उत्पादन का आर्थिक लाभ प्रदान करने और देश की तेल आयात निर्भरता को कम करने में सहायक होगी।