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भारत के सामने RCEP के प्रति वचनबद्धता के संदर्भ में बड़ी चुनौती

  • 09 Aug 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

भारत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नवंबर में सिंगापुर में आयोजित होने जा रहे आरसीईपी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) शिखर सम्मेलन में भाग लेने से पहले यह निर्धारित करना होगा कि वह आरसीईपी, जिसके अंतर्गत  चीन सहित 16 देशों के बीच बातचीत जारी है, का हिस्सा बने रहना चाहता है या नहीं।

प्रमुख बिंदु 

  • यह संभव है कि आरसीईपी समझौता नवंबर तक हस्ताक्षरित होने की स्थिति में न हो, लेकिन अधिकांश सदस्य यह चाहते हैं कि तब तक समझौते के सदस्य देशों द्वारा महत्त्वपूर्ण प्रतिबद्धताओं का निर्धारण कर लिया जाए। 
  • भारत को भी इस संदर्भ में इसी माह के अंत में होने वाली आरसीईपी के सदस्य देशों के व्यापार मंत्रियों की बैठक से पहले अपनी स्थिति स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
  • चार मंत्रियों के समूह, जिसमें सुरेश प्रभु, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण और हरदीप पुरी शामिल हैं, को प्रमुख मंत्रालयों और विभागों के साथ बातचीत को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
  • वाणिज्य मंत्रालय ने कृषि, इस्पात, भारी उद्योग, आर्थिक मामलों, राजस्व और वस्त्र समेत अन्य मंत्रालयों और विभागों के साथ चर्चा शुरू कर दी है। इस संदर्भ में मंत्रियों और सचिवों के साथ 10 अगस्त को होने वाली बैठक आरसीईपी में भारत के रुख पर मार्गदर्शन प्रदान करेगी।
  • आरसीईपी में आसियान समूह के देशों के अलावा भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान, न्यूज़ीलैंड और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं।

क्या हैं भारत की चिंताएँ?

  • जहाँ एक ओर भारत के लिये विश्व के सबसे बड़े मुक्त व्यापार क्षेत्र में शामिल होना एक महत्त्वपूर्ण सामरिक कदम हो सकता है, वहीं दूसरी ओर,  इसके सदस्य देशों की उच्च आकांक्षाओं का भारतीय उद्योग जगत पर बड़ा प्रभाव पड़ सकता है। इस वज़ह से वार्ताकार आगे बढ़ने में हिचक रहे हैं।
  • उदाहरणस्वरूप, चीनी वस्तुओं से टैरिफ प्रतिबंधों की समाप्ति भारतीय उद्योग जगत को बहुत अधिक नुकसान पहुँचा सकती है। अतः हमारे वार्ताकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि चीन के संदर्भ में कितना उदारीकरण किया जाए, जिससे भारतीय हित प्रभावित न हों।
  • साथ ही, आसियान देशों द्वारा 90-92 प्रतिशत उत्पादों से टैरिफ की समाप्ति और अन्य 7 प्रतिशत उत्पादों पर टैरिफ को घटाकर 5 प्रतिशत से कम कराने का प्रयास भी भारत के लिये चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि इससे कृषि और डेयरी उत्पाद, ऑटोमोबाइल और स्टील उत्पाद जैसी संवेदनशील मदें भी टैरिफ कटौती के दायरे में आ जाएंगी।
  • निवेश मामले के अंतर्गत नकारात्मक सूची (जिसमें विशेष रूप से उल्लिखित वस्तुओं को छोड़कर सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है) के आधार पर उदारीकरण और निवेशक-राज्य विवाद निपटान तंत्र के समावेशन संबंधी मामले में भी चिंताएँ विद्यमान हैं, क्योंकि इनसे देश खर्चीले कानूनी मुकदमों में उलझ सकता है।
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