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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जी.एस.टी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कटौती में मददगार साबित होगी

  • 14 Nov 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?

ग्लोबल कार्बन बजट रिपोर्ट (Global Carbon Budget report) 2017 के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में पिछले एक दशक की तुलना में औसतन काफी कम वृद्धि हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि वस्तु और सेवा कर की शुरुआत और विमुद्रीकरण ने इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

प्रमुख बिंदु

  • हाल ही में नेचर क्लाइमेट चेंज, एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स एवं अर्थ सिस्टम साइंस डेटा डिस्कशन्स में प्रकाशित ‘वैश्विक कार्बन बजट रिपोर्ट’, 2017 में कहा गया है कि इस वर्ष के अंत तक जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक उपयोग के कारण वैश्विक कार्बन-डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में पिछले वर्ष की तुलना में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है।
  • विश्व में चीन ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जक देश है। इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और भारत का स्थान आता है।
  • आने वाले समय में औद्योगिक उत्पादन में अधिक वृद्धि और कम वर्षा के कारण निम्न जल विद्युत उत्पादन के चलते चीन में मुख्य ईंधन के रूप में कोयले का उपयोग 3 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
  • रिपोर्ट में यद्यपि 2017 में भारत की उत्सर्जन दर में भी वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है, तो भी यह वृद्धि पिछले साल की तुलना में केवल 2 प्रतिशत रहने की संभावना है। 
  • पिछले एक दशक में, भारत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में प्रतिवर्ष लगभग छह प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पिछले साल भी भारत की कार्बन उत्सर्जन दर में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज़ की गई। 

India's emissions slow down

  • इस रिपोर्ट में भारत में सौर ऊर्जा की स्थापना में तेज़ी से प्रगति हो रही है। हालाँकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसकी निम्नतर विकास दर के चलते अर्थव्यवस्था में मंदी भी आ सकती है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हालाँकि 2016 में भारत की सौर क्षमता में वृद्धि दर्ज़ की गई, तथापि इस संबंध में चालू वर्ष की विकास दर में आई कमी ने बहुत से कारकों को प्रभावित किया है।
  • इससे न केवल निर्यात में कमी आई है बल्कि सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक और कृषि उत्पादन में भी गिरावट दर्ज़ की गई है। इसके अतिरिक्त इसके कारण उपभोक्ताओं की मांग में भी कमी देखी गई है। 
  • 2016 में अचानक लिये गए विमुद्रीकरण के फैसले एवं वर्ष 2017 में जी.एस.टी. के लागू होने से इस क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है।
  • यदि भारतीय अर्थव्यवस्था उपरोक्त अवरोधों को पार करने में सफल साबित हो जाती है तो वर्ष 2018 में एक बार फिर से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में सालाना वृद्धि 5% से अधिक होने की संभावना व्यक्त की गई है।  
  • जहाँ एक ओर जीवाश्म ईंधन के जलने और औद्योगिक उपयोग के कारण भारत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2.5 गीगाटन (carbon dioxide equivalent) है। 
  • वहीं दूसरी ओर वर्ष 2017 में जीवाश्म ईंधन और औद्योगिक उपयोग के कारण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 36.8 गीगाटन (carbon dioxide equivalent) के बराबर आँका गया। 
  • इसमें योगदान करने वाले देशों में चीन (10.5 गीगाटन), संयुक्त राज्य अमेरिका (5.3 गीगाटन) और यूरोपीय संघ (3.5 गीगाटन) का प्रमुख स्थान है। इसके इतर इसके अंतर्गत संपूर्ण विश्व का योगदान मात्र 15.1 गीगाटन (carbon dioxide equivalent) है।
  • वस्तुतः मानव गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित कार्बन-डाइऑक्साइड का लगभग 80 प्रतिशत उत्सर्जन जीवाश्म ईंधनों एवं औद्योगिक उपयोग से होता है। इसके पश्चात् इसमें सबसे अधिक योगदान भूमि के का है। उदाहरण के लिये कार्बन उत्सर्जन में वनों की कटाई का एक अहम् योगदान होता है। 

स्पष्ट है कि प्रमुख उत्सर्जनकर्त्ताओं के आर्थिक अनुमानों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, वर्ष 2018 में भी कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि जारी रहने की संभावना है। इसका जलवायु परिवर्तन पर भी काफी गंभीर असर होगा। इतना ही नहीं यह पेरिस समझौते में वर्णीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न करेगा।

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