अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-चीन-श्रीलंका ट्रायंगल
- 12 Jan 2022
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन के विदेश मंत्री (CFM) ने श्रीलंका का दौरा किया है।
- इस बैठक के दौरान चीन के विदेश मंत्री ने हिंद महासागर द्वीपीय राष्ट्रों के लिये एक मंच का प्रस्ताव रखा और यह भी कहा कि किसी भी ‘तृतीय पक्ष’ को चीन-श्रीलंका संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिये।
- यद्यपि ‘तृतीय-पक्ष’ के नाम का खुलासा नहीं किया गया, किंतु कई जानकार मानते हैं कि यह भारत के लिये कहा गया था।
प्रमुख बिंदु
- श्रीलंका यात्रा की मुख्य विशेषताएँ
- चीन के विदेश मंत्री की यात्रा में ऐतिहासिक ‘रबर-राइस पैक्ट’ (1952) की 70वीं वर्षगांँठ और चीन एवं श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वर्षगांँठ के अवसर पर समारोह शुरू करने की परिकल्पना की गई थी।
- रबर-राइस पैक्ट के तहत चीन ने रबड़ और अन्य आपूर्तियों के आयात हेतु प्रतिबद्धता ज़ाहिर की थी, क्योंकि श्रीलंका, जो कि रबड़ का एक प्रमुख निर्यातक है, चावल की कीमत में वृद्धि और रबड़ की कीमत में गिरावट का सामना कर रहा था।
- चीन के विदेश मंत्री द्वारा कोलंबो में कोलंबो पोर्ट सिटी और हंबनटोटा पोर्ट (श्रीलंका में) का जिक्र करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि दोनों पक्षों को इनका सही से उपयोग करना चाहिये।
- उन्होंने श्रीलंका से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) की संभावनाओं पर विचार करने और मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया।
- सर्वसम्मति और तालमेल बनाने तथा विकास को बढ़ावा देने के लिये "हिंद महासागर द्वीप देशों के विकास पर एक मंच" भी प्रस्तावित किया गया था।
- चीन के विदेश मंत्री की यात्रा में ऐतिहासिक ‘रबर-राइस पैक्ट’ (1952) की 70वीं वर्षगांँठ और चीन एवं श्रीलंका के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 65वीं वर्षगांँठ के अवसर पर समारोह शुरू करने की परिकल्पना की गई थी।
- चीन-श्रीलंका संबंधों के बारे में:
- श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता: चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
- श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र को चीन द्वारा प्रदत्त ऋण केंद्र सरकार के विदेशी ऋण का लगभग 15% है।
- श्रीलंका अपने विदेशी ऋण के बोझ को दूर करने के लिये चीनी ऋण पर बहुत अधिक निर्भर है।
- अवसंरचना परियोजनाओं में निवेश: चीन ने वर्ष 2006-19 के बीच श्रीलंका की बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं में लगभग 12 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है।
- छोटे राष्ट्रों के हितों में बदलाव: श्रीलंका का आर्थिक संकट इसे अपनी नीतियों को बीजिंग के हितों के साथ संरेखित करने के लिये आगे और बाध्य कर सकता है।
- हिंद महासागर में चीन का प्रभाव: चीन का दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में दक्षिण पूर्व एशिया तथा प्रशांत क्षेत्र की तुलना में अधिक प्रभाव है।
- चीन को ताइवान के विरोध में, दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया में क्षेत्रीय विवादों व अमेरिका एवं ऑस्ट्रेलिया के साथ असंख्य संघर्षों का सामना करना पड़ रहा है।
- श्रीलंका का सबसे बड़ा ऋणदाता: चीन श्रीलंका का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता है।
- भारत की चिंताएँ:
- सागर पहल का विरोध: प्रस्तावित हिंद महासागर द्वीपीय देशों के मंच ने भारत के प्रधानमंत्री की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल के विरोध में आवाज उठाई।
- हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की रणनीतिक भूमिका है।
- विकास से संबंधित मुद्दे: 99 वर्ष के पट्टे के हिस्से के रूप में चीन का श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर औपचारिक नियंत्रण है।
- श्रीलंका ने कोलंबो बंदरगाह शहर के चारों ओर एक विशेष आर्थिक क्षेत्र और चीन द्वारा वित्तपोषित एक नया आर्थिक आयोग स्थापित करने का निर्णय लिया है।
- भारत के ट्रांस-शिपमेंट कार्गो का 60% कार्य कोलंबो बंदरगाह से होता है।
- हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट सिटी परियोजना को पट्टे पर देने से चीनी नौसेना की लिये हिंद महासागर में स्थायी उपस्थिति लगभग तय हो गई है जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये चिंताजनक है।
- भारत को घेरने की चीनी रणनीति को स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स स्ट्रैटेजी कहा गया है।
- भारत के पड़ोसियों पर प्रभाव: बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव जैसे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये चीन की ओर रुख कर रहे हैं।
- सागर पहल का विरोध: प्रस्तावित हिंद महासागर द्वीपीय देशों के मंच ने भारत के प्रधानमंत्री की ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) पहल के विरोध में आवाज उठाई।
आगे की राह
- सामरिक हितों का संरक्षण: श्रीलंका के साथ नेबरहुड फर्स्ट की नीति को पोषित करना भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- क्षेत्रीय मंचों का लाभ उठाना: बिम्सटेक, सार्क, सागर और आईओआरए जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग प्रौद्योगिकी संचालित कृषि, समुद्री क्षेत्र के विकास, आईटी एवं संचार बुनियादी ढाँचे आदि जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है।
- चीन के विस्तार को रोकना: भारत को ज़ाफना में कांकेसंतुराई बंदरगाह और त्रिंकोमाली में तेल टैंक फार्म परियोजना पर काम करना जारी रखना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि चीन श्रीलंका में आगे कोई पैठ नहीं बना सके।
- दोनों देश आर्थिक लचीलापन पैदा करने के लिये निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाने में भी सहयोग कर सकते हैं।
- भारत की सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना: प्रौद्योगिकी क्षेत्र में भारत अपनी आईटी कंपनियों की उपस्थिति का विस्तार करके श्रीलंका में रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है।
- ये संगठन हजारों प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार पैदा कर सकते हैं तथा द्वीपीय राष्ट्र की सेवा अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं।