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भारत एवं चीन अफगान राजनयिकों को प्रशिक्षण देंगे

  • 16 Oct 2018
  • 3 min read

चर्चा में क्यों

हाल ही में भारत और चीन ने संयुक्त रूप से नई दिल्ली में अफगान राजनयिकों के लिये एक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की। यह एक ऐसा कदम है जो भारत-चीन के क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देगा। गौरतलब है कि यह फैसला भारत के प्रधानमंत्री तथा चीन के राष्ट्रपति की वुहान में सम्मलेन के दौरान अप्रैल 2018 में लिया गया था।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • भारत में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने सुझाव दिया है कि पड़ोसी ईरान, नेपाल और म्याँमार जैसे अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाएँ।
  • अफगानिस्तान के संबंध में भारत-चीन सहयोग को ऐसे दो पड़ोसियों के बीच के तनाव को कम करने हेतु एक कदम के रूप में देखा जा रहा है जो 1962 के सीमा विवाद के साथ-साथ अन्य मुद्दों की वज़ह से खराब हो चुके हैं।
  • ऐसे कार्यक्रम की शुरुआत संबंधों को सुधारने की कड़ी में महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
  • भारत और चीन ने अफगानिस्तान को प्राथमिक भागीदार के रूप में चिह्नित किया और अफगान राजनयिकों को संयुक्त रूप से प्रशिक्षण देने हेतु सहमति व्यक्त की।
  • यह कार्यक्रम क्षेत्रीय मामलों पर दोनों देशों के बीच समन्वय और सहयोग को दर्शाता है तथा चीन-भारत संबंधों में सकारात्मक विकास का प्रतिबिंब है।
  • क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में योगदान देने हेतु चीन और भारत का यह प्रयास सराहनीय है।
  • चीन-भारत का यह सहयोग कार्यक्रम अफगानिस्तान से नेपाल, भूटान, मालदीव, ईरान और म्याँमार जैसे अन्य देशों तक बढ़ाया जाना चाहिये।
  • चीन और भारत दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC), बहुक्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) और क्षेत्रीय सहयोग के लिये बांग्लादेश, चीन, भारत और म्याँमार फोरम (BCIM) तंत्र के तहत भी क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने हेतु एक साथ आ सकते हैं।
  • हाल ही के वर्षों में म्याँमार, नेपाल, भूटान और मालदीव जैसे देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर भारत चिंतित रहा है। गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में इन देशों को भारत के प्रभाव क्षेत्र में माना जाता रहा है।
  • पूर्व में नई दिल्ली ने मालदीव और नेपाल जैसे देशों के चीन को सार्क में शामिल करने के सुझावों का विरोध किया है।
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