स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रतिभा पलायन | 20 May 2021

चर्चा में क्यों?

भारत खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों, यूरोप और अन्य अंग्रेज़ी भाषी देशों के लिये स्वास्थ्यकर्मियों का एक प्रमुख निर्यातक रहा है।

  • स्वास्थ्य क्षेत्र में हो रहे प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन को वर्तमान महामारी के दौरान डॉक्टरों और नर्सों की मौज़ूदा कमी का कारण माना जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

प्रतिभा पलायन

  • प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन का आशय व्यक्तियों खासतौर पर शिक्षित युवाओं के पर्याप्त उत्प्रवास या प्रवास से होता है।
    • प्रतिभा पलायन के प्रमुख कारणों में एक राष्ट्र के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल, अन्य देशों में अनुकूल पेशेवर अवसरों की मौजूदगी और उच्च जीवन स्तर एवं बेहतर अवसरों की तलाश आदि शामिल हो सकता है।
  • अधिकांश पलायन विकासशील देशों से विकसित देशों में होता है। विकासशील देशों में स्वास्थ्य प्रणालियों पर इसके प्रभाव के कारण यह दुनिया भर में एक महत्त्वपूर्ण विषय है।
  • आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के आँकड़ों की मानें तो वर्ष 2017 में लगभग 69,000 भारतीय प्रशिक्षित डॉक्टरों ने ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में कार्य किया था। इन चार देशों में इसी अवधि में लगभग 56,000 प्रशिक्षित भारतीय नर्सें कार्य कर रही थीं।
  • खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) में शामिल देशों में भी भारतीय स्वास्थ्यकर्मियों का व्यापक पैमाने पर प्रवासन होता है, किंतु इन देशों में ऐसे श्रमिकों के उत्प्रवास या प्रवास से संबंधित विश्वसनीय आँकड़ों की कमी है।
    • इसके अलावा कम कुशल और अर्द्ध-कुशल प्रवास के मामलों के विपरीत भारत से उच्च कुशल प्रवास पर कोई वास्तविक समय डेटा मौजूद नहीं है।

कारण

  • महामारी के दौरान आवश्यकता
    • महामारी की शुरुआत के साथ ही दुनिया भर में विशेष रूप से विकसित देशों में स्वास्थ्यकर्मियों की मांग तेज़ी से बढ़ गई है।
    • स्वास्थ्यकर्मियों को बेहतर सुविधाएँ प्रदान करने और उन्हें देश में बनाए रखने के लिये प्रवासी-अनुकूल नीतियाँ अपनाई गई हैं।
      • ब्रिटेन ने उन योग्य विदेशी स्वास्थ्यकर्मियों और उनके आश्रितों को एक वर्ष के लिये मुफ्त वीज़ा विस्तार प्रदान किया है, जिनकी वीज़ा अवधि अक्तूबर 2021 से पहले समाप्त होने वाली थी।
      • फ्रांँस ने महामारी के दौरान फ्रंटलाइन प्रवासी स्वास्थ्यकर्मियों को नागरिकता देने की पेशकश की है।
  • उच्च वेतन और बेहतर अवसर
    • गंतव्य देशों में उच्च वेतन और बेहतर अवसर स्वास्थ्यकर्मियों के प्रवास से संबंधित सबसे प्रमुख कारक माने जा सकते हैं।
  • कम मज़दूरी और भारत में निवेश की कमी
    • प्रतिभा पलायन/ब्रेन ड्रेन को रोकने के लिये सरकार की नीतियाँ प्रतिबंधात्मक प्रकृति की हैं और समस्या का वास्तविक दीर्घकालिक समाधान नहीं देती हैं।
    • वर्ष 2014 में भारत ने अमेरिका में प्रवास करने वाले डॉक्टरों को ‘भारत वापसी अनापत्ति प्रमाण-पत्र’ जारी करना बंद कर दिया था।
      • ‘भारत वापसी अनापत्ति प्रमाण-पत्र’ उन डॉक्टरों के लिये एक अनिवार्य दस्तावेज़ है, जो J1 वीज़ा पर अमेरिका में प्रवास करते हैं और अपने प्रवास को तीन वर्ष से आगे बढ़ाना चाहते हैं।
    • वहीं सरकार ने नर्सों को ‘इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड’ (ECR) श्रेणी में शामिल किया है। यह कदम नर्सिंग भर्ती में पारदर्शिता लाने और गंतव्य देशों में नर्सों के शोषण को कम करने के लिये उठाया गया है।

भारतीय स्वास्थ्य क्षेत्र संबंधी चिंताएँ

  • मानव संसाधन का अभाव
    • भारत में प्रति 1,000 जनसंख्या पर 1.7 नर्स हैं और डॉक्टर- रोगी अनुपात लगभग 1:1,404 है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के प्रति 1,000 जनसंख्या पर तीन नर्सों के मानदंड और 1:1,100 के डॉक्टर-रोगी अनुपात से काफी नीचे है।
  • असमान वितरण
    • भारत के विभिन्न क्षेत्रों में डॉक्टरों और नर्सों की मौजूदगी काफी विषम है। कुछ शहरी क्षेत्रों में डॉक्टरों और नर्सों की संख्या काफी अधिक है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह संख्या काफी कम है।
  • स्वास्थ्य अवसंरचना का अभाव
    • मानव विकास रिपोर्ट-2020 के मुताबिक, भारत में प्रति 10,000 लोगों पर केवल पाँच हॉस्पिटल बेड ही उपलब्ध हैं, जो कि विश्व में सबसे कम है। 

आगे की राह

  • स्वास्थ्य सेवा में विशेष रूप से सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना वर्तमान समय में काफी महत्त्वपूर्ण है। इससे स्वास्थ्यकर्मियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
  • भारत को एक समग्र वातावरण के निर्माण के लिये व्यवस्थित परिवर्तनों की आवश्यकता है, जो स्वास्थ्यकर्मियों के लिये फायदेमंद साबित हों और उन्हें देश में रहने के लिये प्रेरित कर सकें।
  • सरकार को ऐसी नीतियाँ बनाने पर ध्यान देना चाहिये जो ‘रिवर्स माइग्रेशन’ को बढ़ावा दें, ऐसी नीतियाँ जो स्वास्थ्यकर्मियों को उनके प्रशिक्षण या अध्ययन के पूरा होने के बाद घर लौटने के लिये प्रोत्साहित कर सकें।
  • भारत ऐसे द्विपक्षीय समझौतों की दिशा में भी काम कर सकता है जो ‘ब्रेन-शेयर’ की नीति को आकार देने में मदद कर सकें।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस