भारत एवं ग्लोबल साउथ | 10 Dec 2022
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल साउथ, ग्लोबल नॉर्थ, G20, UNSC, BRI, हरित ऊर्जा कोष। मेन्स के लिये:भारत की G20 अध्यक्षता संबंधी चुनौतियाँ और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
भारत द्वारा G20 की अध्यक्षता प्राप्त करने के साथ ही, भारत के विदेश मंत्री ने "वैश्विक दक्षिणी देशों की आवाज़" के रूप में भारत की भूमिका पर बल दिया, जिसका वैश्विक मंचों पर प्रतिनिधित्त्व कम है।
ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ:
- 'ग्लोबल नॉर्थ' से तात्पर्य मोटे तौर पर अमेरिका, कनाडा, यूरोप, रूस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड जैसे देशों है, जबकि 'ग्लोबल साउथ' के अंतर्गत एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देश शामिल हैं।
- यह वर्गीकरण अधिक सटीक है क्योंकि इन देशों में , शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के संकेतक आदि के संदर्भ में काफी समानताएँ हैं।
- भारत और चीन जैसे कुछ दक्षिणी देश पिछले कुछ दशकों में आर्थिक रूप से विकसित हुए हैं।
- कई एशियाई देशों द्वारा हासिल की गई प्रगति को इस विचार को चुनौती देने के रूप में भी देखा जाता है कि उत्तरी देश हीं आदर्श है।
पहले उपयोग की गई वर्गीकरण प्रणाली:
- प्रथम विश्व, द्वितीय विश्व और तृतीय विश्व के देश:
- प्रथम, द्वितीय और तृतीय विश्व के देश शीत युद्ध-कालीन अमेरिका, सोवियत संघ के सहायक देशों और गुट-निरपेक्ष देशों को संदर्भित करते हैं।
- विश्व प्रणाली दृष्टिकोण:
- यह विश्व राजनीति को देखने/समझने के परस्पर नज़रिये पर ज़ोर देता है। उत्पादन के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं: कोर, पेरिफेरल और सेमी- पेरिफेरल ।
- अमेरिका या जापान जैसे देशों में अत्याधुनिक तकनीकों की बहुतायत होने के कारण कोर क्षेत्र में अधिक लाभ होता है।
- दूसरी ओर, पेरिफेरल क्षेत्र, कम परिष्कृत उत्पादन में संलग्न हैं जो मूलतः श्रम प्रधान होता है।
- सेमी-पेरिफेरल ज़ोन इन दोनों के बीच में है जिसमें भारत और ब्राज़ील जैसे देश शामिल हैं।
- पूर्वी और पश्चिमी देश:
- पश्चिमी देश आम तौर पर अपने लोगों के बीच आर्थिक विकास और समृद्धि के उच्च स्तर को दर्शाते हैं, और पूर्वी देशों को विकास की इसी संक्रमण की प्रक्रिया में माना जाता है।
ग्लोबल उत्तर और ग्लोबल दक्षिण के उद्भव का कारण:
पूर्व वर्गीकरण की गैर-व्यवहार्यता:
- शीत युद्ध के बाद के विश्व में, प्रथम विश्व/तीसरा विश्व वर्गीकरण व्यवहार्य नहीं रह गया था, क्योंकि जब वर्ष 1991 में कम्युनिस्ट सोवियत संघ का विघटन हुआ तो अधिकांश देशों के पास पूंजीवादी अमेरिका के साथ किसी स्तर पर सहयोग करने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं था, जो उस समय एकमात्र वैश्विक महाशक्ति थी।
- पूर्व/पश्चिम देशों को अक्सर अफ्रीकी और एशियाई देशों के विषय में रूढ़िवादी सोच बनाए रखने वालो के रूप में देखा जाता था।
- विभिन्न देशों को एक ही श्रेणी में वर्गीकृत करना अत्यधिक सरल माना जा रहा था।
वैश्विक दक्षिण देशों में समानताएँ:
- अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों का उपनिवेश बनने का इतिहास रहा है। UNSC की स्थायी सदस्यता से बहिष्करण के कारण अंतर्राष्ट्रीय मंचों में इन देशों का प्रतिनिधित्त्व बहुत ही कम रहा है।
- अधिकांश वैश्विक दक्षिणी देशों के आज भी विकासशील रहने/कम विकसित होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह बहिष्करण भी रहा है।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये की गई पहल:
- वैश्विक:
- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका (BRICS) मंच
- भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका (IBSA) मंच
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस:
- मूल रूप से 19 दिसंबर को दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र दिवस की तारीख को वर्ष 2011 में 12 सितंबर को स्थानांतरित कर दिया गया था।
- यह उस तारीख को याद करता है जब संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने विकासशील देशों के बीच तकनीकी सहयोग को बढ़ावा देने और लागू करने के लिये वर्ष 1978 में एक कार्य योजना अपनाई थी।
- भारतीय:
- ट्रिप्स छूट पर प्रस्ताव (Proposal on TRIPS Waiver):
- बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) में छूट जिसे पहली बार वर्ष 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा प्रस्तावित किया गया था, में कोविड-19 टीकों और उपचारों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPRs) की अस्थायी वैश्विक आसानी शामिल होगी, ताकि उन्हें वैश्विक स्वास्थ्य का समर्थन करने और महामारी से बाहर निकलने का रास्ता मिल सके। कोविड-19 टीकों, दवाओं, चिकित्सीय और संबंधित प्रौद्योगिकियों पर समझौता।
- वैक्सीन मैत्री अभियान:
- वर्ष 2021 में भारत ने "वैक्सीन मैत्री" पहल नामक अपना ऐतिहासिक अभियान शुरू किया जो ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ (Neighbourhood first policy) के अनुसार है।
- ट्रिप्स छूट पर प्रस्ताव (Proposal on TRIPS Waiver):
ग्लोबल साउथ के विकास हेतु बाधाएँ:
- हरित ऊर्जा कोष जारी करना:
- वैश्विक उत्सर्जन के प्रति ग्लोबल नॉर्थ देशों के उच्च योगदान के बावजूद, वे हरित ऊर्जा के वित्तपोषण के लिये भुगतान की उपेक्षा कर रहे हैं, जिसके लिये अंतिम पीड़ित सबसे कम उत्सर्जक हैं - कम विकसित देश।
रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव:
- रूस-यूक्रेन युद्ध ने सबसे कम विकसित देशों (LDCs) को गंभीर रूप से प्रभावित किया जिससे खाद्य, ऊर्जा और वित्त से संबंधित चिंताएँ बढ़ गईं तथा LDCs की विकास संभावनाओं को खतरा उत्पन्न हो गया।
- चीन का हस्तक्षेप:
- चीन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से पैठ बना रहा है।
- हालाँकि, यह अभी भी संदेहास्पद है कि क्या BRI दोनों पक्षों के लिये लाभदायक होगा या यह केवल चीन के लाभ पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- चीन बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के माध्यम से ग्लोबल साउथ में तेज़ी से पैठ बना रहा है।
अमेरिकी आधिपत्य:
- विश्व को अब कई लोगों द्वारा बहुध्रुवीय माना जाता है लेकिन यह अकेला अमेरिका है जो अन्तराष्ट्रीय मामलों पर हावी है।।
- संसाधनों तक अपर्याप्त पहुँच:
- महत्त्वपूर्ण विकासात्मक परिणामों के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुँच में ग्लोबल नॉर्थ- साउथ विचलन ऐतिहासिक रूप से प्रमुख अंतरालों की विशेषता रही है।
- उदाहरण के लिये, औद्योगीकरण, वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत से उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के पक्ष में झुका हुआ है और इस संबंध में वैश्विक अभिसरण का कोई बड़ा प्रमाण नहीं मिला।
- महत्त्वपूर्ण विकासात्मक परिणामों के लिये आवश्यक संसाधनों तक पहुँच में ग्लोबल नॉर्थ- साउथ विचलन ऐतिहासिक रूप से प्रमुख अंतरालों की विशेषता रही है।
- कोविड-19 का प्रभाव:
- कोविड-19 महामारी ने पहले से मौजूद अंतराल को बढ़ा दिया है।
- महामारी के शुरुआती चरणों से निपटने में न केवल देशों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, बल्कि आज जिन सामाजिक और व्यापक आर्थिक प्रभावों का सामना करना पड़ रहा है, वे ग्लोबल साउथ के लिये अधिक खराब रहे हैं।
- घरेलू अर्थव्यवस्थाओं की भेद्यता अब अर्जेंटीना और मिस्र से लेकर पाकिस्तान और श्रीलंका तक के देशों में कहीं अधिक स्पष्ट है।
- कोविड-19 महामारी ने पहले से मौजूद अंतराल को बढ़ा दिया है।
भारत ग्लोबल साउथ कीआवाज़ कैसे बन सकता है?
- वर्तमान समय में ग्लोबल साउथ को अग्रणी बनाने के लिये विकासशील देशों के बीच निंदनीय क्षेत्रीय राजनीति पर अंकुश लगाने हेतु भारत को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
- भारत को इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि ग्लोबल साउथ एक सुसंगत समूह नहीं है और न ही इसका कोई साझा एजेंडा है। धन, शक्ति, व क्षमताओं के मामले में आज ग्लोबल साउथ में बहुत अंतर है।
- यह विकासशील देशों के विभिन्न क्षेत्रों और समूहों के अनुरूप सक्रिय भारतीय भूमिका की आवश्यकता है।
- भारत पुरानी वैचारिक लड़ाइयों पर लौटने के बजाय व्यावहारिक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करके उत्तर और दक्षिण के बीच एक पुल बनने के लिये उत्सुक है।
- यदि भारत इस महत्वाकांक्षा को प्रभावी नीति में बदल सकता है, तो सार्वभौमिक और विशेष लक्ष्यों की प्राप्ति आसानी से की जा सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. निम्नलिखित में से किस समूह में सभी चार देश G20 के सदस्य हैं? (2020) (A) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की उत्तर: A व्याख्या:
मेन्स:प्रश्न."डब्ल्यूटीओ के व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन और बढ़ावा देना है। लेकिन विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेदों के कारण दोहा दौर की वार्ता व्यर्थ हो गई है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में चर्चा करें। (2016) |