अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और पाकिस्तान के विशेष दूतों ने तालिबान के साथ वार्ता में भाग लिया
- 17 Jun 2023
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प्रिलिम्स के लिये:ओस्लो समझौता, वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी मेन्स के लिये:भारत-अफगानिस्तान संबंध: महत्त्व और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
नॉर्वे सरकार द्वारा ओस्लो शांति सम्मेलन के अवसर पर वार्ता में गतिरोध को समाप्त करने के प्रयास में तालिबान के प्रतिनिधियों ने इस सप्ताह भारतीय और पाकिस्तानी विशेष दूतों एवं अधिकारियों के साथ-साथ अन्य अंतर्राष्ट्रीय राजनयिकों से मुलाकात की।
ओस्लो समझौता:
- ओस्लो समझौता इज़रायल और फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (PLO) के बीच समझौते की एक कड़ी है जो ओस्लो प्रक्रिया की शुरुआत को चिह्नित करती है। यह एक शांति प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य इज़रायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को हल करना है।
- ओस्लो प्रक्रिया-ओस्लो, नॉर्वे में गुप्त वार्ताओं के बाद प्रारंभ हुई, जिसके परिणामस्वरूप PLO द्वारा इज़रायल की मान्यता और फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिनिधि के रूप में इज़रायल द्वारा मान्यता और द्विपक्षीय वार्ताओं में भागीदार के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।
- ओस्लो प्रथम समझौता (1993):
- वाशिंगटन, डीसी में हस्ताक्षर किये गए।
- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी में फिलिस्तीन के अंतरिम स्वशासन व्यवस्था के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत की और आगे की वार्ताओं के लिये एक समय सारिणी भी निर्धारित की गई।
- ओस्लो द्वितीय समझौता (1995):
- वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी पर अंतरिम समझौते को आमतौर पर ओस्लो द्वितीय समझौता के रूप में जाना जाता है।
भारत के लिये अफगानिस्तान का महत्त्व:
- मध्य एशिया का प्रवेश द्वार: अफगानिस्तान मध्य एशियाई गणराज्यों (CAR) का प्रवेश द्वार है, जो प्राकृतिक संसाधनों और भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिये संभावित बाज़ारों में समृद्ध हैं।
- पाकिस्तान और चीन के प्रति संतुलन: एक स्थिर और मैत्रीपूर्ण अफगानिस्तान भारत को पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद, उग्रवाद और कट्टरपंथ के खतरों को रोकने में मदद कर सकता है।
- भारत की सॉफ्ट पावर सहायता में भागीदार: भारत ने अफगानिस्तान में विभिन्न परियोजनाओं, जैसे सड़कों, बाँधों, स्कूलों, अस्पतालों, संसद भवन आदि में $ 3 बिलियन से अधिक का निवेश किया है।
- भारत अफगानिस्तान को छात्रवृत्ति, प्रशिक्षण, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मानवीय सहायता भी प्रदान करता है।
- सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संबंध: दोनों देश बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म, सूफीवाद और मुगल साम्राज्य की एक सांस्कृतिक विरासत को साझा करते हैं। पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई समेत कई अफगान नेताओं ने भारत में पढ़ाई की है।
तालिबान के अधिग्रहण का भारत के हितों पर प्रभाव:
- सुरक्षा संबंधी खतरे:
- तालिबान को पाकिस्तान के जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे भारत विरोधी आतंकवादी समूहों के प्रतिनिधि और समर्थक के रूप में देखा जाता है।
- तालिबान चीन के समीप भी है, जो इस क्षेत्र में भारत का सामरिक प्रतिद्वंद्वी है।
- प्रभाव:
- भारत का तालिबान के साथ कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं था परंतु पिछली सरकार और उसके संस्थानों में भारी निवेश किया था।
- भारत ने अफगानिस्तान के माध्यम से मध्य एशियाई गणराज्यों तक अपनी पहुँच भी खो दी, जो इसकी कनेक्टिविटी और ऊर्जा परियोजनाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा था।
- व्यापार और विकास:
- तालिबान ने पाकिस्तान के माध्यम से कार्गो की आवाजाही बंद कर दी है एवं अफगानिस्तान में भारत की सहायता और परियोजनाओं के भविष्य पर अनिश्चितता पैदा कर दी है।
- भारत ने अफगानिस्तान में बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का योगदान दिया था।
- मानवीय संकट:
- हज़ारों अफगानी, जिन्होंने भारत के साथ काम किया है अथवा जिनका भारत के साथ पारिवारिक संबंध है, तालिबान द्वारा दमन के कारण शरण तथा सुरक्षा की मांग कर रहे हैं।
- भारत ने काबुल से अपने नागरिकों और अफगान सहयोगियों को वापस लाने के लिये ऑपरेशन देवी शक्ति नामक एक निकासी मिशन शुरू किया है।
स्थिति पर नियंत्रण के भारत के प्रयास:
- संतुलित दृष्टिकोण अपनाना: मानवाधिकारों, आतंकवाद और अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए अत्यधिक संरेखण अथवा टकराव से बचने के लिये भारत को अफगानिस्तान के साथ संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये।
- भारत व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी जैसे सामान्य हित के क्षेत्रों पर भी ध्यान दे सकता है।
- अफगान सुलह का समर्थन: भारत, अफगानिस्तान में एक समावेशी और प्रतिनिधि सरकार के प्रयासों का सक्रिय रूप से समर्थन कर सकता है। जिसमें एक समावेशी राजनीतिक प्रक्रिया की वकालत करना शामिल है, जो देश में सभी जातीय एवं धार्मिक समूहों के हितों को समायोजित करता है।
- क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ संबंध: भारत को अपने प्रयासों का समन्वय करने और अफगानिस्तान में स्थिरता के लिये एक सामूहिक दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु क्षेत्रीय खिलाड़ियों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों के साथ संबंध बनाना चाहिये।
- इसमें सामान्य मामलों को दूर करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये ईरान, रूस तथा मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग करना शामिल है।
- विकास सहायता पर ध्यान: बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ, शिक्षा एवं मानवीय सहायता प्रदान करके अफगानिस्तान के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- तालिबान के अधिग्रहण के बावजूद भारत उन विकास पहलों का समर्थन करना जारी रख सकता है जो प्रत्यक्ष रूप से अफगान लोगों को लाभान्वित करते हैं, जैसे कि बुनियादी ढाँचा विकास, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और क्षमता निर्माण।
- अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी को मज़बूत करना: भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र और दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (South Asian Association for Regional Cooperation- SAARC/सार्क) जैसे क्षेत्रीय संगठनों सहित अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के साथ मिलकर काम करना चाहिये, ताकि अफगानिस्तान में उभरती स्थिति को सामूहिक रूप से उजागर किया जा सके। सहयोगात्मक प्रयास देश में अधिक स्थिर तथा सुरक्षित वातावरण को आकार देने में मदद कर सकते हैं।