भारत-जापान लॉजिस्टिक्स समझौता | 11 Sep 2020
प्रिलिम्स के लियेMLSA, LEMOA मेन्स के लियेMLSAs की भारत के लिये महत्ता |
चर्चा में क्यों?
भारत और जापान ने भारत के सशस्त्र बलों तथा जापान के आत्मरक्षा बलों के मध्य आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान (Mutual Logistics Support Arrangement- MLSA) के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये हैं। इस अनुबंध पर भारत के रक्षा सचिव और जापान के राजदूत ने हस्ताक्षर किये।
समझौते के प्रमुख बिंदु
- द्विपक्षीय प्रशिक्षण गतिविधियों, संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना के ऑपरेशन, मानवतावादी अंतर्राष्ट्रीय राहत और पारस्परिक रूप से सहमत अन्य गतिविधियों में संलग्न रहते हुए आपूर्ति और सेवाओं के परस्पर प्रावधान से दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच घनिष्ठ सहयोग के लिये एक सक्षम ढाँचे की स्थापना की जा सकेगी।
- यह अनुबंध भारत और जापान के सशस्त्र बलों के बीच अंतःसक्रियता बढ़ाने के साथ-साथ दोनों देशों के मध्य विशेष रणनीतिक और वैश्विक भागीदारी के तहत द्विपक्षीय रक्षा गतिविधियों में वृद्धि करेगा।
- अनुबंध में सम्मिलित आपूर्ति और सेवाओं में भोजन, पानी, परिवहन (एयरलिफ्ट भी सम्मिलित), पेट्रोलियम, कपड़े, संचार, चिकित्सा सेवाएँ, सुविधाओं और घटकों का उपयोग एवं मरम्मत तथा रखरखाव सेवाएँ आदि सम्मिलित हैं।
- यह समझौता 10 वर्ष तक लागू रहेगा। इसके पश्चात् 10 वर्ष की अवधि के लिये स्वचालित रूप से बढ़ा दिया जाएगा, अगर दोनों में से कोई पक्ष इसे समाप्त करने का निर्णय नहीं लेता है।
भारत के अन्य देशों के साथ लॉजिस्टिक्स समझौते
- भारत द्वारा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्राँस, ओमान और सिंगापुर के साथ इसी तरह के आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान के (MLSA) समझौते किये गए हैं।
- भारत वर्ष 2016 में अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) में शामिल हुआ, जो भारत को जिबूती, डिएगो गार्सिया, गुआम और सुबिक की खाड़ी में पहुँच प्रदान करता है।
- वर्ष 2018 में भारत ने फ्राँस के साथ भी इसी तरह का समझौता किया था। मेडागास्कर और जिबूती के निकट रीयूनियन द्वीप समूह में फ्रांसीसी नौसेना बेस स्थिति के कारण यह भारतीय नौसेना को दक्षिण-पश्चिमी हिन्द महासागर क्षेत्र में पहुँच प्रदान करता है।
- ऑस्ट्रेलिया के साथ MLSA भारत को दक्षिणी हिंद महासागर क्षेत्र के साथ-साथ पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपने युद्धपोतों की पहुँच बढ़ाने में मदद करेगा।
MLSAs की भारत के लिये महत्ता
- अगस्त 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य अड्डा बनाने के पश्चात् से ही चीन हिंद महासागर क्षेत्र में तीव्र विस्तार की रणनीति अपना रहा है। चीन की इस विस्तारवाद की रणनीति की पृष्ठभूमि में भारत के लिये इस प्रकार के समझौते महत्त्वपूर्ण हैं।
- चीन निश्चित रूप से अपनी पनडुब्बियों और युद्धपोतों के लिये पाकिस्तान में कराची और ग्वादर बंदरगाहों तक पहुँच रखता हैं। यह कंबोडिया, वानुअतु और अन्य देशों में सैन्य बेस बनाने के लिये भी प्रयास कर रहा है ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को और अधिक मज़बूत किया जा सके।
- भारत के करीब किसी भी समय हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन के छह से आठ युद्धपोत तैनात हैं। अपने नौसैनिक बलों का आधुनिकीकरण करते हुए चीन ने लंबी दूरी की परमाणु बैलिस्टिक मिसाइलों और एंटी-शिप क्रूज़ मिसाइलों से लेकर पनडुब्बियों तथा विमानवाहक पोतों तक पिछले छह वर्षों में 80 से अधिक युद्धपोतों का संचालन किया है।
आगे की राह
- समुद्री क्षेत्र में सहयोग दोनों देशों के लिये फोकस का एक प्रमुख क्षेत्र रहा है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) को बढ़ाने के लिये दोनों देशों ने भारतीय नौसेना और जापान मैरीटाइम सेल्फ-डिफेंस फोर्स (JMSDF) के बीच गहन सहयोग के लिये कार्यान्वयन व्यवस्था पर हस्ताक्षर किये हैं।
- विदेशी नौसेनाओं के साथ अधिक बातचीत और अभ्यास करने के कारण लॉजिस्टिक्स समझौतों का सर्वाधिक लाभ नौसेना को होता है। उच्च सागरों पर काम करते समय या मानवीय सहायता मिशन के दौरान ईंधन, भोजन और अन्य आवश्यकताओं का आदान-प्रदान किया जा सकता है।