निर्वाचन आयोग के लिये स्वतंत्र कॉलेजियम | 19 May 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में एक याचिका दायर कर निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति के लिये एक स्वतंत्र कॉलेजियम के गठन की मांग की गई थी।
भारत निर्वाचन आयोग
पृष्ठभूमि:
- भारत निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है।
- संविधान का अनुच्छेद 324: यह चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये एक चुनाव आयोग की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
निर्वाचन आयोग की संरचना:
- निर्वाचन आयोग में मूलतः केवल एक चुनाव आयुक्त का प्रावधान था, लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम, 1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया है।
- आयोग में वर्तमान में एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त (Chief Election Commissioner- CEC) और दो निर्वाचन आयुक्त (Election Commissioners- EC) शामिल हैं।
- आयोग का सचिवालय नई दिल्ली में स्थित है।
प्रमुख बिंदु
नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली:
- संविधान के अनुसार, CEC और EC की नियुक्ति के लिये कोई निर्धारित प्रक्रिया नहीं है।
- लेन-देन के व्यापार नियम 1961 के तहत राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर CEC और EC की नियुक्ति करेगा।
- इसलिये CEC और EC की नियुक्ति करना राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्ति है।
- हालाँकि अनुच्छेद 324(5) के अनुसार, संसद के पास चुनाव आयोग की सेवा शर्तों और कार्यकाल को विनियमित करने की शक्ति है।
- चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यापार का लेन-देन) अधिनियम, 1991 CEC और अन्य चुनाव आयोगों की सेवा की शर्तों को निर्धारित करने और ECI द्वारा व्यापार के लेन-देन की प्रक्रिया प्रदान करने के लिये पारित किया गया था।
- आज तक संसद ने अनुच्छेद 324(5) के तहत कानून बनाए हैं, न कि अनुच्छेद 324(2) के तहत जिसमें संसद राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों को विनियमित करने के लिये एक चयन समिति की स्थापना कर सकती है।
- अनुच्छेद 324(2) में कहा गया है कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से CEC और EC की नियुक्ति तब तक करेगा जब तक कि संसद अधिनियम (Parliament Enacts), सेवा की शर्तों और कार्यकाल के लिये मानदंड तय करने वाला कानून नहीं बनाती।
स्वतंत्र कॉलेजियम की आवश्यकता:
- समितियों की सिफारिश:
- चुनाव आयोग में रिक्त पदों को भरने के लिये एक तटस्थ कॉलेजियम की सिफारिश वर्ष 1975 से कई विशेषज्ञ समितियों के आयोगों द्वारा की गई है।
- यह सिफारिश मार्च 2015 में विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट का भी हिस्सा थी।
- वर्ष 2009 में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी चौथी रिपोर्ट में CEC और EC के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली का सुझाव दिया।
- वर्ष 1990 में दिनेश गोस्वामी समिति (Dinesh Goswami Committee) ने चुनाव आयोग में नियुक्ति के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता जैसे तटस्थ अधिकारियों के साथ प्रभावी परामर्श की सिफारिश की।
- वर्ष 1975 में न्यायमूर्ति तारकुंडे समिति (Justice Tarkunde Committee) ने सिफारिश की कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर नियुक्त किया जाना चाहिये।
- राजनीतिक और कार्यकारी हस्तक्षेप से रोधन:
- चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में कार्यपालिका की अभिरुचि उस आधार का उल्लंघन करती है जिस पर इसे बनाया गया था, इस प्रकार आयोग को कार्यपालिका की एक शाखा बना दिया गया।
- अनुचित चुनाव प्रक्रिया:
- चुनाव आयोग न केवल स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये ज़िम्मेदार है, बल्कि यह सत्तारूढ़ सरकार और अन्य दलों सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच एक अर्द्ध न्यायिक कार्य भी करता है।
- ऐसी परिस्थितियों में कार्यकारिणी चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति में एकमात्र भागीदार नहीं हो सकती है क्योंकि यह सत्ताधारी पार्टी को किसी ऐसे व्यक्ति को चुनने के लिये स्वतंत्र विवेक (Unfettered Discretion) प्रदान करती है जिसकी उसके प्रति वफादारी सुनिश्चित है और इस तरह चयन प्रक्रिया में हेरफेर की संभावना बनी रहती है।
चुनौतियाँ:
- अन्य के लिये भी इसी तरह की मांग:
- अन्य संवैधानिक पदों के लिये ऐसी ही मांगें उठाई जा सकती हैं जहाँ कार्यपालिका के लिये महान्यायवादी (Attorney General) या नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller & Auditor-General) जैसी नियुक्तियाँ करना अनिवार्य है।
- केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के निदेशक और केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (Central Vigilance Commissioner- CVC) की नियुक्ति के लिये समितियों का गठन किया जाता है लेकिन ये संवैधानिक पद हैं। अभी तक संवैधानिक नियुक्तियों के लिये कोई समिति नहीं है।
- CEC और EC के बीच अंतर:
- CEC और EC के पदों के बीच अंतर होता है। दोनों पदों पर नियुक्तियाँ उनके द्वारा किये गए कार्य के अनुसार भिन्न हो सकती हैं।
- इसलिये नियुक्ति की प्रक्रिया में अंतर करना जो अभी भी तदर्थ आधार पर (किसी संवैधानिक कानून की अनुपस्थिति के कारण) की जाती है, एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन जाता है जिसे आयोग के स्वतंत्र कामकाज को सुनिश्चित करने के लिये ठीक से संबोधित करने की आवश्यकता है।
- न्यायिक अतिरेक:
- सर्वोच्च न्यायालय संविधान के प्रावधानों के आधार पर किसी भी कानून की व्याख्या करता है और संवैधानिक रूप से EC की नियुक्ति प्रक्रिया का निर्णय कार्यकारी डोमेन के अंतर्गत आता है।
- इस प्रकार इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय संभवतः शक्ति के सामंजस्यपूर्ण संतुलन को हिला सकता है।
आगे की राह
- नियुक्ति प्रक्रिया की वर्तमान प्रणाली की कमियों को दूर करने की आवश्यकता है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त सुरक्षा उपाय किये जाने चाहिये कि नैतिक और सक्षम लोग संबंधित पदों पर आसीन हों।
- भारत निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता के मुद्दे पर संसद में बहस और चर्चा की आवश्यकता है और इसके आधार पर आवश्यक कानून पारित कराया जाना चाहिये।