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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्लास्टिक प्रदूषण का बढ़ता संजाल

  • 21 Jun 2018
  • 11 min read

चर्चा में क्यों?

  • हमारे समुद्र तटों, जलमार्गों, वनों और यहाँ तक कि पहाड़ों पर भी पाए जाने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट की भारी मात्रा पर ध्यान केंद्रित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र ने 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के लिये “प्लास्टिक प्रदूषण को हराओ"(beat plastic pollution) विषय को चुना।
  • भारत में भी एकल उपयोग वाले प्लास्टिक अपशिष्ट की समस्या बढ़ती जा रही है जिसे देखते हुए  केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा द एनर्जी एंड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (TERI) के साथ मिलकर 'प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के अवसर और चुनौतियाँ' नामक एक चर्चा-पत्र जारी किया गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • यूरोपीय संघ ने पर्यावरण दिवस के अवसर को चम्मच, कॉटन बड्स और ड्रिंकिंग स्ट्रॉ जैसे एकल उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव के बारे में चर्चा के लिये चुना। जब संबंधित कानून पारित होगा तो अपशिष्ट को इकट्ठा करने और निस्तारित करने का दायित्व इन उत्पादों के निर्माताओं पर होगा।
  • इसके सदस्य देशों को 'उपयोग करो और फेंको' की संस्कृति को हतोत्साहित करने के लिये 2025 तक एकल उपयोग वाली प्लास्टिक पेय की बोतलों का 90 प्रतिशत इकट्ठा करने और निर्माताओं को टिकाऊ सामग्रियों में बदलने की भी आवश्यकता होगी।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये संगठित तंत्र का अभाव

  • TERI द्वारा जारी किये गए पत्र ने कुछ चौंकाने वाले तथ्यों का खुलासा किया है। भारत में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत लगभग 11 किलोग्राम है, जो 28 किलोग्राम के वैश्विक औसत से काफी कम है, लेकिन इसमें से केवल 60 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण हो पाता है।
  • चिंता का प्रमुख कारण प्रति दिन उत्पन्न 15,342 टन प्लास्टिक अपशिष्ट के निस्तारण के लिये एक संगठित तंत्र की कमी है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आँकड़ों के अनुसार, कुल ठोस कचरे में प्लास्टिक का योगदान 8 प्रतिशत होता है, इसमें सर्वाधिक योगदान दिल्ली का फिर कोलकाता और अहमदाबाद का है।
  • इसके अलावा, चर्चा-पत्र पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुमान का उद्धरण देता है, जिसमें 2022 तक भारत में 20 किग्रा. प्लास्टिक की वार्षिक प्रति व्यक्ति खपत का अनुमान लगाया गया है, जिसका समाधान न करना बड़े संकट को आमंत्रित करेगा।

TERI द्वारा दिये गए कुछ सुझाव

  • TERI के चर्चा-पत्र में कुछ वहनीय विकल्पों की सूची दी गई है, जिनकी खोज इसकी शोध और नीति दल ने इस मुद्दे को हल करने के लिये की है, हालाँकि कुछ परीक्षण अभी भी किये जा रहे हैं। 
  • पहला विकल्प है अल्पकालिक उपयोग वाले उत्पादों के लिये थोड़ा महँगे, बायो-आधारित और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक का उत्पादन करना जो स्टार्च, सेलुलोज़ और पॉलिलेक्टिक एसिड का कच्चे माल के रूप में उपयोग करता है।
  • दूसरा विकल्प जिसे चर्चा-पत्र में ‘व्यवहार्य और तकनीकी रूप से सुसंगत’ कहा गया है, वस्तुतः उन तकनीकों का उपयोग करके प्लास्टिक के पुनर्चक्रण से संबंधित है जिनके माध्यम से कच्चे माल की दूसरी आपूर्ति श्रृंखला का उत्पादन किया जा सकता है। अपशिष्ट पदानुक्रम के अनुसार, पुनर्चक्रण के माध्यम से द्वितीयक कच्चे माल की पुनर्प्राप्ति को पुन: उपयोग के बाद सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। 
  • शोध के तहत तीसरा विकल्प अपशिष्ट प्लास्टिक से ईंधन उत्पन्न करना है।
  • चौथा विकल्प  गैर-पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये अन्य उपयोगी अनुप्रयोगों को ढूँढना है। वर्तमान में इसको बिटुमिन के साथ मिलाकर सीमेंट भट्टियों में और सड़कों को बिछाने के लिये उपयोग किया जा रहा है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये कानूनी प्रावधान 

  • प्लास्टिक अपशिष्ट में हो रही वृद्धि के कारणों में कानूनों का उचित रूप से क्रियान्वयन न किया जाना एक प्रमुख कारण है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को पहली बार वर्ष 2011 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया था। 
  • इन नियमों में अपशिष्ट एकत्रित करने की ज़िम्मेदारी राज्य निगरानी समितियों की देखरेख में शहरी स्थानीय निकायों पर डाली गई।
  • साथ ही, इन नियमों में प्लास्टिक बैग की मोटाई के लिये एक मानक निर्धारित किया गया और खुदरा विक्रेताओं द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले बैग के लिये शुल्क वसूलना अनिवार्य कर दिया गया।
  • 2016 में ये नियम कई पहलुओं में अधिक कड़े हो गए। सबसे महत्त्वपूर्ण पहल विस्तारित उत्पादकों की ज़िम्मेदारी (ईपीआर) की शुरुआत थी जहाँ निर्माताओं को उनके द्वारा उत्पादित अपशिष्ट को इकट्ठा करने की आवश्यकता थी। उदाहरण के लिये, एक कोल्ड ड्रिंक निर्माता को पीईटी बोतल वापस लेनी होती। 
  • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि निर्माताओं और प्लास्टिक वाहक बैग या बहु-स्तरीय पैकेजिंग का आयात करने वालों से ईपीआर के हिस्से के रूप में शुल्कों का संग्रह अनिवार्य था। फलस्वरूप इससे स्थानीय प्राधिकरणों की वित्तीय स्थिति मज़बूत होती और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को बढ़ावा मिलता।
  • लेकिन 2018 में नियमों में कुछ फेरबदल देखे गए, जो इन्हें थोड़ा लचर बनाते हैं। इसलिये, धारा 9 (3) के तहत अधिसूचित नियमों में, 'गैर-पुनर्चक्रण योग्य एमएलपी' शब्द को 'एमएलपी' द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जो कि गैर-पुनर्चक्रण योग्य या गैर-ऊर्जा प्राप्ति योग्य है और जिसका कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं है। कैरी बैग की कीमतों से संबंधित धारा 15 को भी छोड़ दिया गया है।
  • इसके अतिरिक्त, एक विक्रेता को अब शहरी स्थानीय निकाय को शुल्क का भुगतान करने या इसमें पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं रही। इसकी बजाय, एक केंद्रीकृत पंजीकरण प्रणाली शुरू करने की योजना है जहाँ दो से अधिक राज्यों में काम करने वाले उत्पादकों को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ पंजीकरण कराना होगा।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये किये जा रहे नए प्रयास

  • कुछ राज्य कानूनों के अनुपालन में काफी सक्रिय रहे हैं। गोवा उनमें से एक है और हाल ही में महाराष्ट्र ने इसका पालन किया है, जिसने मार्च में कैरी बैग और एकल उपयोग प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया था।
  • TERI के शोध-पत्र के अनुसार इस दिशा में छोटे उद्यमियों को पुनर्चक्रण के लिये प्रोत्साहित करने और कुछ नवाचारी आर्थिक मॉडल तैयार किये जाने की आवश्यकता है। जैसे- कबाड़ीवाला निवासियों को समाचार पत्रों को अलग करने के लिये प्रोत्साहित करता है और बदले में नगर पालिका द्वारा तय की गई पूर्व निर्धारित कीमतों के अनुसार सूखे अपशिष्ट संग्रह केंद्रों द्वारा उसे भुगतान किया जाता है।
  • इस वर्ष 5 जून को प्लास्टिक अपशिष्ट  के प्रबंधन के लिये नई राहें खोलने का प्रयास किया गया, जिनमें उद्योग आधारित कंसोर्टियम स्थापित करना शामिल था जो प्लास्टिक कचरे का प्रबंधन करने के लिये आपूर्ति श्रृंखला बनाएगा।
  • कंसोर्टियम में आठ सदस्य आदित्य बिड़ला समूह, रेड एफएम, किडज़ानिया इंडिया - इमागीनेशन एड्यूटेनमेंट इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, डालमिया (भारत) सीमेंट लिमिटेड, यूफ्लेक्स लिमिटेड और डीएस ग्रुप ऑफ कंपनीज़ शामिल हैं; इसका उद्देश्य होगा 'अपशिष्ट-प्रमाणन भविष्य', और ऐसा करने के लिये यह अपशिष्ट प्रबंधन को स्थायी रूप से प्रबंधित करने हेतु आवश्यक संस्थागत और नीतिगत  हस्तक्षेपों की पहचान करेगा।

निष्कर्ष

हालाँकि कंसोर्टियम ने विभिन्न प्रकार के अपशिष्टों के लिये आपूर्ति श्रृंखला बनाने की कोशिश की है जो कि सभी हितधारकों के लिये एक व्यापारिक मामला है, यह देखा जाना बाकी है कि इस तरह के प्रयास लंबे समय तक कैसे जारी रहेंगे। जनता और सरकार की सक्रिय भागीदारी अपशिष्ट प्रबंधन के लिये अति आवश्यक है। लेकिन एक बात तो सुनिश्चित है कि यदि समाधान जल्दी से नहीं मिलते हैं तो भारत को प्लास्टिक अपशिष्ट के नीचे दफन होने की सबसे खराब स्थिति के लिये तैयार होना होगा।

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