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समुद्री कछुओं की संख्या में वृद्धि

  • 23 Sep 2017
  • 8 min read

चर्चा में क्यों?

ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी पर अनेक पौधे और जीव विलुप्त होते जा रहे हैं।  चूँकि अधिकांश जीवों के संरक्षण हेतु पर्याप्त उपाय नहीं किये जा रहे हैं, इसलिये वे विलुप्ति की कगार पर  पहुँच रहे हैं।  दरअसल, उनके प्राकृतिक आवासों का नष्ट होना तथा जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों को जीवों की विलुप्ति के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता है।  विदित हो कि हाल ही में विश्व-भर के समुद्रों पर किये गए एक अध्ययन से यह पता चला है कि “समुद्री कछुए” (Sea Turtles) इस स्वीकार्य तथ्य का अपवाद हैं, क्योंकि इनकी संख्या में निरंतर वृद्धि दर्ज की जा रही है। 

प्रमुख बिंदु

  • एंटोनियोस माजारिस (Antonios Mazaris) नामक पर्यावरणविद् और अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने यह पाया कि अब विश्व-भर के समुद्री कछुओं की अधिकांश प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर नहीं हैं, यानी वे विलुप्ति से पुनः कम चिंताजनक अथवा संरक्षित प्रजाति की श्रेणी में आ गई हैं।  
  • यद्यपि कुछ कछुओं जैसे- पूर्वी और पश्चिमी प्रशांत में “लेदरबैक्स” की संख्या में अभी भी कमी आ रही है।  
  • ध्यातव्य है कि प्रकृति संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature-IUCN) द्वारा समुद्री कछुओं की सात में से छह प्रजातियों को संवेदनशील, संकटग्रस्त और गंभीर रूप से संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है। 
  • शोधकर्त्ताओं के मुताबिक, कुछ अन्य जोखिमपूर्ण प्रजातियों के विपरीत समुद्री कछुओं को प्रबंधित करना अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि उनके खतरे का आसानी से पता लगाया जा सकता है जैसे- उन्हें गलती से मछुआरों द्वारा जाल में पकड़ लिया जाता है अथवा अन्य लोगों द्वारा उन्हें मारकर सजावट के लिये उनका प्रयोग किया जाता है। 
  • वस्तुतः कछुओं के सूप के लिये उनका निर्यात भी किया जाता है जैसे- कोस्टारिका में कछुओं के सूप के लिये तक़रीबन सभी मादा हरे कछुओं का निर्यात कर दिया गया था। परन्तु कोस्टारिका में वर्ष 1950 से किये गए संरक्षण प्रयासों का इन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।   
  • समुद्री तटों के संरक्षण, मछलियों का नियमन और संरक्षित समुद्री क्षेत्रों की स्थापना ने कई स्थानों पर कछुओं का संरक्षण करने में सहायता की है।  
  • वस्तुतः यह जानने के लिये कि यह संरक्षण कार्यक्रम किस प्रकार कार्य कर रहा है, शोधकर्त्ताओं ने पाया कि संरक्षण कायक्रमों के दीर्घकालिक प्रभावों पर नज़र डालना अधिक उपयुक्त होगा।  चूँकि अधिकांश समुद्री कछुओं अपने लिये घोसलों का निर्माण तभी करते हैं जब इन्हें खाने की तलाश करनी हो।  इस कारण साल-दर-साल समुद्री तटों पर पाए जाने वाले घोसलों की संख्या में नाटकीय ढंग से बदलाव होता रहता है।  
  • वैज्ञानिक का मानना है कि पर्याप्त संरक्षण से कछुओं की छोटी सी आबादी के जीवित रहने की संभावनाओं में वृद्धि होगी। उदहारण के लिये हवाई के फ्रेंच फ्रिगेट शोल्स क्षेत्र में वर्ष 2003  में पाए जाने वाले 200  हरे समुद्री कछुओं की संख्या वर्ष 2012 में 2,000 हो गई थी। आई.यू.सी.एन द्वारा अब इस प्रजाति को ‘कम चिंताजनक’ ( least concern) प्रजाति की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। 
  • हालाँकि, समुद्री कछुओं पर अभी भी पर्याप्त अनुसंधान नहीं किया गया है।  अभी समुद्री कछुओं में से अधिकांश के लिये मादा नर अनुपात ज्ञात नहीं है, जोकि उनके प्रजनन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।  
  • हाल ही में ऑस्ट्रेलिया ने अपने संरक्षित समुद्री क्षेत्रों में कमी कर दी है।  अतः शोधकर्त्ताओं का मानना है कि इससे चपटी पीठ वाले कछुओं (flatback turtle) से संबंधित आँकड़ों के संग्रहण हेतु की जाने वाली पहल पर कार्य करना कठिन हो जाएगा।  
  • यद्यपि पिछले 70 वर्षों से संरक्षणविद् कछुओं का संरक्षण कर रहे हैं, लेकिन इसके समर्थन के लिये दीर्घकालिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। 

समुद्री कछुओं से संबंधित कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य 

  • ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले अधिकांश प्राचीन जीवों में से एक हैं। 
  • वर्तमान में समुद्री कछुओं की पाई जाने वाली सात प्रजातियाँ लगभग 110 मिलियन वर्ष पुरानी हैं।  
  • समुद्री कछुए का आवरण जल में तैरने के लिये सुगठित होता है।  अन्य कछुओं के समान समुद्री कछुए अपने आवरण में अपने पैरों और सिर को नहीं छुपा सकते हैं। 
  • इनका रंग पीला, हरा और काला हो सकता है जोकि उनकी प्रजातियों पर निर्भर करता है। 
  • समुद्री कछुओं का आहार उनकी उप-प्रजातियों पर निर्भर करता है, परन्तु वे अन्य कछुओं के समान कुछ सामान्य भोज्य जैसे जेलिफ़िश, केकड़े, झींगा, स्पंज, घोंघे और शैवाल अथवा खाते हैं।
  • इनकी संख्या का पता लगाना अपेक्षाकृत कठिन है, क्योंकि नर और किशोर समुद्री कछुए एक बार महासागर में पहुँचने के पश्चात् तट पर वापस नहीं लौटते, जिस कारण उन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है। 
  • ये विश्व-भर के सभी गर्म और समशीतोष्ण जल में पाए जाते हैं तथा अपने आवास-स्थल से भोज्य-स्थलों के बीच हज़ारों मीलों की दूरी तय करते हैं। 
  • रेत के तापमान में वृद्धि होने से इनकी प्रजनन दर में परिवर्तन होता है।  यदि रेत का तापमान 30⁰C से अधिक हो तो मादा कछुए का जन्म होता है।  
  • समुद्री कछुए अपना अधिकांश जीवन जल में बिताते हैं जहाँ उनके व्यवहार से संबंधित जानकारियाँ प्राप्त नहीं की जा सकती हैं।  कुछ समुद्री कछुए जैसे-सालमन अपने जन्म-स्थलों पर वापस लौट आते हैं।
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