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कार्बन-डाई-ऑक्साइड का बढ़ता स्तर

  • 03 May 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों?
विगत सप्ताह वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में हुई एकाएक वृद्धि, पुनः चिंता का विषय बन गई। वर्तमान में वायुमंडलीय कार्बन-डाई-ऑक्साइड का सांद्रण अपने उच्चतम स्तर(410 पीपीएम) पर पहुँच चुका है। महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि पिछले दो वर्षों में इसके स्तर में तीव्र वृद्धि हुई है जो कि इससे पूर्व कभी नहीं हुई थी। हालाँकि वायुमंडल में कार्बन-डाई- ऑक्साइड की वृद्धि दर में कई उतार-चढ़ाव भी देखे जा रहे हैं। विदित हो कि वर्ष 1959 की मध्यावधि के दौरान प्रति वर्ष इसके स्तर में मात्र 1 पीपीएम की ही वृद्धि हुई थी। 

प्रमुख बिंदु 

  • वर्ष 1959 से कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में निरंतर वृद्धि हुई है। जहाँ वर्ष 1959 में वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड का सांद्रण 315.97 पीपीएम था वहीं वर्ष 2015 में यह बढ़कर 400.83 पीपीएम हो गया। 
  • अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन के आँकड़ों के अनुसार, पाँच वर्षों के दौरान कार्बन डाई ऑक्साइड के सांद्रण में 2 पीपीएम की वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त पिछले दशक में कार्बन डाई ऑक्साइड की वृद्धि दर में अंतिम हिम युग से संक्रमण के दौरान पृथ्वी पर उपस्थित कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा 100 से 200 गुना अधिक था।
  • ध्यातव्य है कि कोयले के जलने, प्राकृतिक गैस और सीमेंट विनिर्माण से होने वाले उत्सर्जन से प्रति वर्ष 10 बिलियन मीट्रिक टन(37 बिलियन मीट्रिक टन कार्बन डाई ऑक्साइड के समान) कार्बन की उत्पत्ति होती है।
  • कार्बन डाई ऑक्साइड के सांद्रण में वृद्धि होने से वनस्पतियों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में उत्तरी गोलार्द्ध में निष्क्रिय वनस्पति वायु से कार्बन डाई ऑक्साइड को नहीं हटा पाती हैं। इसी प्रकार शक्तिशाली एल नीनो के कारण आए सूखे से भी कार्बन डाई ऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हो सकती है। 

कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ना पृथ्वी के लिये हानिकारक कैसे?

  • कार्बन डाई ऑक्साइड उन असंख्य गैसों में से एक है जो वायुमंडल में ऊष्मा को बनाए रखते हैं तथा हरित गृह प्रभाव उत्पन्न करतीं हैं। हालाँकि इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर अधिक सर्दी नहीं पड़ती है तथा जीवन सुरक्षित रहता है।
  • यदि इसी कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में तुलनात्मक रूप से अधिक वृद्धि हो जाती है तो वायुमंडल में अतिरिक्त ऊष्मा संचित होने लगती है। फलस्वरूप औसत वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी होने लगती है।
  • विदित हो कि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा जितनी अधिक होगी उतनी ही वायुमंडल में ऊष्मा को अवशोषित करने की क्षमता होगी।

निष्कर्ष
कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ता स्तर यह दर्शाता है कि यदि विश्व के सभी राष्ट्र कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में 1.5 ⁰ C तक की कमी लाते हैं तो निश्चित ही इसके स्तर में संतोषजनक कमी आएगी। पेरिस समझौते में यह प्रतिबद्धता जाहिर की गई थी। यह ज़रूरी है कि भविष्य की प्रगति को ध्यान में रखकर सभी राष्ट्र अपने-अपने उत्सर्जन स्तर में कमी लाएं।

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