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शासन व्यवस्था

नरेगा की मांग में वृद्धि

  • 29 Jun 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना)।

मेन्स के लिये:

नरेगा की कार्यप्रणाली, इसकी चुनौतियाँ और आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

मई 2022 में 2.61 करोड़ परिवारों ने नरेगा (राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना) के तहत काम किया, जो पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में 17.39% अधिक है।

प्रमुख बिंदु:

  • अप्रैल में गिरावट के बाद नरेगा की मांग में तेज़ी आई थी। अप्रैल 2022 में 1.86 करोड़ परिवारों ने नरेगा का लाभ उठाया, जो पिछले वर्ष अप्रैल में दर्ज की गई संख्या से 12.27% कम है।
  • नरेगा का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या मई 2020 की तुलना में कम है, जब कोविड-19 की पहली लहर के दौरान लॉकडाउन के मद्देनज़र प्रवासी श्रमिकों के अपने गांँवों में लौटने के कारण मांग तेज़ी से बढ़कर 3.30 करोड़ हो गई।
    • लेकिन यह मई 2019 (महामारी पूर्व समय) में दर्ज 2.10 करोड़ के आंँकड़े से अधिक है।
  • राज्यों के संदर्भ में उत्तर प्रदेश में नरेगा का लाभ उठाने वाले परिवारों की संख्या में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, इसके बाद तमिलनाडु का स्थान है।
  • जबकि सबसे ज़्यादा गिरावट छत्तीसगढ़ में और उसके बाद झारखंड में दर्ज की गई।

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नरेगा (NREGS):

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), जिसे महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) के रूप में भी जाना जाता है, 25 अगस्त, 2005 को अधिनियमित कानून है।
  • यह वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी पर सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल श्रम करने के इच्छुक किसी भी ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों के लिये प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार के लिये कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
  • ग्रामीण विकास मंत्रालय (MRD) राज्य सरकारों के सहयोग से इस योजना के संपूर्ण कार्यान्वयन की निगरानी कर रहा है।
  • यह अधिनियम ग्रामीण भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों के लिये मुख्य रूप से अर्द्ध या अकुशल कामगारों के लिये तथा ग्रामीण लोगों की क्रय शक्ति में सुधार लाने के उद्देश्य से लाया गया था। यह देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटने का प्रयास करता है।
  • कानून के अनुसार निर्धारित कार्यबल का लगभग एक-तिहाई महिलाएंँ होनी चाहिये।
  • पंजीकृत व्यक्ति कार्य के लिये लिखित रूप में (कम-से-कम चौदह दिनों तक लगातार काम करने के लिये) आवेदन पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को प्रस्तुत कर सकता है।
  • रोज़गार 5 किमी. के दायरे में दिया जाएगा और यदि यह 5 किमी. से अधिक है, तो अतिरिक्त वेतन का भुगतान किया जाएगा।
  • नरेगा के तहत अधिसूचित किये गए अधिकांश कार्य कृषि और संबद्ध गतिविधियों से संबंधित हैं, इसके अलावा ये ग्रामीण स्वच्छता परियोजनाओं को सुविधा प्रदान करते हैं।
  • नरेगा एक मांग आधारित मज़दूरी रोज़गार कार्यक्रम है और केंद्र से राज्यों को संसाधन हस्तांतरण प्रत्येक राज्य में रोज़गार की मांग पर आधारित है।
  • यह मांग पर काम प्रदान करने में विफलता और किये गए काम के लिये मज़दूरी के भुगतान में देरी के मामलों में भत्ते व मुआवज़े दोनों प्रदान करके मज़दूरी रोज़गार के लिये कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
  • मई 2021 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी सॉफ्टवेयर (NMMS) एप लॉन्च किया, जो राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (NREGA) के कार्यों में "नागरिक निरीक्षण में सुधार तथा पारदर्शिता बढ़ाने" के लिये एक नया एप्लीकेशन है।

NREGS के परिणाम:

  • पिछले 15 वर्षों में इसने 31 अरब से अधिक व्यक्ति-दिवस रोज़गार का सृजन किया है।
  • पिछले 15 वर्षों में सरकार ने इस मांग-संचालित कार्यक्रम में 6.4 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
  • देश के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2006 से अब तक 30 मिलियन से अधिक जल संरक्षण से संबंधित संपत्ति विकसित की गई है।

चुनौतियाँ:

  • कम मज़दूरी दर: नरेगा मज़दूरी वर्तमान में लगभग 180 रुपए प्रतिदिन है जो बाज़ार दर से काफी नीचे है। लगभग एक दशक से एक ही तरह के काम के लिये औसत मज़दूरी दर की अनदेखी करते हुए मज़दूरी को केवल मुद्रास्फीति के लिये समायोजित किया गया है और अभी यह 23 राज्यों में न्यूनतम मज़दूरी दर से नीचे गिर गई है, जिससे भागीदारी में गिरावट आई है।
  • मज़दूरी के भुगतान में देरी: एक मुद्दा यह है कि इस योजना के तहत श्रमिकों को 15 दिनों के भीतर भुगतान किया जाना अनिवार्य है; इन लोगों को अक्सर भुगतान नहीं मिलता है। पिछले कुछ वित्तीय वर्षों में लगभग 10,000 करोड़ रुपए के बकाया वेतन की एक बड़ी शेष राशि का खुलासा हुआ है।
  • भ्रष्टाचार: इस योजना के साथ सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि अगर फंडिंग आवंटन बढ़ भी जाता है, तो भी सिस्टम से भ्रष्ट बिचौलियों को जड़ से खत्म करना बहुत मुश्किल है।
  • महत्त्वहीन कार्य: अधिकांश अधिकारी केवल अर्थहीन कार्य की पेशकश करते हैं जिसका देश में कृषि के बुनियादी ढांँचे में कोई योगदान नहीं है।

आगे की राह

  • विचार यह है कि इसे सालाना संशोधित किया जा सकता है तथा वेतनभोगी श्रमिकों को उनकी खपत की जरूरतों के आधार पर पर्याप्त रूप से मुआवज़ा दिया जा सकता है और यह एक बेहतर तरीका हो सकता है।
  • संसाधनों के कुशल प्रबंधन के माध्यम से भ्रष्टाचार से निपटने और देर से भुगतान के मुद्दे को कम करने हेतु प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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