बंदरगाह के समुद्री स्तर में वृद्धि | 11 Jul 2019
चर्चा में क्यों?
भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर स्थित डायमंड हार्बर बंदरगाह (Diamond Harbour Port) के निकट समुद्री जल स्तर में अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई है।
प्रमुख बिंदु
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, चार बंदरगाहों क्रमशः डायमंड हार्बर, कांडला, हल्दिया, तथा पोर्ट ब्लेयर के तटों पर समुद्री जल स्तर में वैश्विक औसत की तुलना में उच्चतर वृद्धि दर्ज की गई है।
- यद्यपि हालिया अध्ययनों में पिछले 40-50 वर्षों के दौरान भारत के समुद्री स्तर में 1.3 मिमी/वर्ष की वृद्धि का अनुमान व्यक्त किया गया है लेकिन डायमंड हार्बर के जल स्तर में प्रतिवर्ष 5.16 मिमी की वृद्धि हुई जो अनुमानित वृद्धि का लगभग पाँच गुना है।
- डायमंड हार्बर के समुद्री जल स्तर में औसत वृद्धि का आकलन वर्ष 1948 से 2005 की अवधि में दर्ज आँकड़ों के आधार पर किया गया है।
- डायमंड हार्बर के बाद क्रमशः गुजरात स्थित कांडला बंदरगाह के जल स्तर में वर्ष 1950 से 2005 के बीच प्रतिवर्ष 3.18 मिमी., पश्चिम बंगाल स्थित हल्दिया बंदरगाह पर वर्ष 1972 से 2005 के मध्य समुद्र स्तर में प्रतिवर्ष 2.89 मिमी. तथा पोर्ट ब्लेयर के तट पर वर्ष 1916-1964 के बीच प्रतिवर्ष 2.20 मिमी. की वृद्धि हुई।
- जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय समिति (International Panel on Climate Change) की पाँचवीं रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री जल स्तर में वृद्धि का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है। वैश्विक स्तर पर पिछली एक शताब्दी में औसतन 1.8 मिमी. की दर से समुद्री जल स्तर में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।
- चेन्नई और मुंबई के तटों पर जल स्तर में क्रमशः 0.33 मिमी. प्रतिवर्ष (वर्ष 1916-2005) और 0.74 मिमी (वर्ष 1878-2005) की वृद्धि दर्ज की गई जो कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर औसत वृद्धि की तुलना में काफी कम था।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, समुद्र के बढ़ते जल स्तर से तटीय क्षेत्रों में तूफानी लहर, सुनामी, बाढ़, ऊँची लहरों और निचले तटीय इलाकों में तटीय क्षरण की घटनाएँ बढ़ सकती हैं।
- विशेषज्ञों के अनुसार, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि पश्चिम बंगाल में अधिक है। ताज़े पानी और खारे पानी के मिश्रण के कारण ही सुंदरबन डेल्टा में विशेष रूप से तलछट का जमाव होता है।
- पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के विशेषज्ञों के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग के कारण केवल बर्फ और ग्लेशियर ही नहीं पिघलते बल्कि इससे महासागरों के जल का भी आंतरिक विस्तार होता है और इस प्रकार समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होती है।
- पृथ्वी मंत्रालय के अनुसार, भारी बारिश और दिनोंदिन तापमान में तीव्र वृद्धि के साथ ही ग्रीष्म लहरें और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विस्थापन आदि की घटनाएँ जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी हो सकती हैं।
महासागर विकास विभाग
(Department of Ocean Development- DOD)
- महासागर विकास विभाग की स्थापना जुलाई 1981 में प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री के नियंत्रण में मंत्रिमंडल सचिवालय के भाग के रूप में की गई थी और मार्च 1982 में यह एक अलग विभाग के रूप में अस्तित्व में आया।
- पूर्व में महासागर विकास विभाग देश में महासागर से जुडी विकासात्मक गतिविधियों के समन्वय और उन्हें बढ़ावा देने वाले नोडल मंत्रालय के रूप में कार्य करता था।
- फरवरी 2006 में सरकार ने विभाग को महासागर विकास मंत्रालय के रूप में अधिसूचित किया।
- इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने महासागर विकास मंत्रालय का पुर्नगठन किया और 12, जुलाई, 2006 को राष्ट्रपति की अधिसूचना के माध्यम से एक नए मंत्रालय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) की स्थापना की गई।
- इसके तहत भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department), भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology) और राष्ट्रीय मध्यम अवधि मौसम पूर्वानुमान केंद्र National Centre for Medium Range Weather Forecasting) को प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया। सरकार ने अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा आयोग (Space Commission and Atomic Energy Commission) की तर्ज़ पर पृथ्वी आयोग (Earth Commission) की स्थापना को भी अनुमोदन प्रदान कर दिया है।