राजकोषीय घाटे में वृद्धि : अर्थव्यवस्था की संकटग्रस्त स्थिति | 10 Apr 2018
चर्चा में क्यों?
अप्रैल फरवरी 2017-18 के दौरान भारत के राजकोषीय घाटे में वृद्धि देखने को मिली। इस समयकाल में राजकोषीय घाटा बढ़कर 7.15 लाख करोड़ रुपए हो गया है। यह पूरे वित्त वर्ष 2017-18 के लिये तय 5.95 लाख करोड़ रुपए के संशोधित लक्ष्य के अनुमान का कुल 120.3 प्रतिशत है।
- इस संबंध में व्यक्त अनुमानों के अनुसार, राजकोषीय घाटा बढऩे की मुख्य वज़ह गैर कर राजस्व का अनुमान से कम रहना है। सरकार के पास इस समयावधि में 60 प्रतिशत राजस्व आया है, जबकि पिछले साल की समान अवधि में 62.4 प्रतिशत राजस्व आया था।
- सरकारी कंपनियों और बैंकों से आशा से कम लाभांश रहने के कारण (जितने लाभांश की इनसे प्राप्त होने की उम्मीद की जा रही थी) 2017-18 का लाभांश लक्ष्य घटाकर 1.06 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया, जो पहले 1.46 लाख करोड़ रुपए था।
पिछले साल की तुलना में
- अप्रैल-फरवरी 2016-17 में राजकोषीय घाटा पूरे साल के घाटे के बजटीय अनुमान का 113.4 प्रतिशत था। अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 के बीच केंद्र के कर राजस्व और विनिवेश से मिलने वाले राजस्व में उतनी वृद्धि नहीं हुई जितना कि कुल व्यय निर्धारित किया गया था।
- ऐसे में गैर कर राजस्व कम रहने पर वित्त वर्ष 2018 में राजकोषीय घाटा पुनरीक्षित लक्ष्य की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक हो सकता है।
- अप्रैल-फरवरी के दौरान कुल व्यय पुनरीक्षित अनुमान का 90 प्रतिशत रहा, जो पिछले साल की समान अवधि में 87 प्रतिशत था।
- पूंजीगत व्यय लक्ष्य का 109 प्रतिशत हो गया है, जो पिछले साल लक्ष्य का 77 प्रतिशत था।
- वित्त वर्ष 2017-18 के संशोधित अनुमान में सरकार ने विनिवेश लक्ष्य बढ़ाकर इसके एक लाख करोड़ रुपए रहने का लक्ष्य रखा है जो बजट अनुमान में 72,500 करोड़ रुपए था।
- चालू वित्त वर्ष में 11 महीनों के दौरान राज्यों को केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के रूप में 5.29 लाख करोड़ रुपए से अधिक हस्तांतरित किये गए। यह 2016-17 के मुकाबले 66,039 करोड़ रुपए अधिक है।
- इस अवधि में सरकार का कुल व्यय 19.99 लाख करोड़ रुपए से अधिक रहा है। यह 2017-18 के लिये संशोधित अनुमान का 90.14 प्रतिशत है।
- एक फरवरी को प्रस्तुत वित्त वर्ष 2018-19 के बजट में 2017-18 के लिये राजकोषीय घाटे का अनुमान 3.2 प्रतिशत से बढ़ाकर 3.5 प्रतिशत कर दिया गया। इसका कारण जीएसटी का क्रियान्वयन तथा स्पेक्ट्रम नीलामी टाला जाना था। वित्त वर्ष 2018-19 में राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
वर्तमान स्थिति क्या है?
- रिज़र्व बैंक और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने राजकोषीय घाटे को काबू में लाने के लिये सरकार की अहम मदद की है। इससे वर्ष 2017-18 के लिये सरकार का राजकोषीय घाटा 5.95 लाख करोड़ रुपए के संशोधित लक्ष्य से शायद थोड़ा कम हो गया है।
- यह फरवरी के अंत तक संशोधित लक्ष्य से 1.2 लाख करोड़ रुपए अधिक पहुँच गया था। केंद्रीय बैंक ने सरकारी खजाने में 100 अरब रुपए का अतिरिक्त अधिशेष जमा कराया, जबकि एफसीआई ने वित्त मंत्रालय द्वारा आवंटित 500 अरब रुपए लौटाए। इससे सरकार को राजकोषीय घाटे को काबू में लाने में थोड़ा मदद मिली।
- अप्रैल 2017 से फरवरी 2018 की अवधि के लिये राजकोषीय घाटा बेकाबू होकर 7.15 लाख करोड़ पहुँच गया था जो पूरे वर्ष के संशोधित अनुमान का 120 फीसदी था।
- हाल में किसी भी वित्त वर्ष में 11 महीने की अवधि में यह सर्वाधिक घाटे की स्थिति थी। वर्ष 2017-18 के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। अलबत्ता मार्च महीने के लिये प्रत्यक्ष कर संग्रह और विनिवेश की कुछ जानकारी के अलावा कोई आँकड़ा सार्वजनिक नहीं किया गया है।
- अप्रैल-मार्च के राजकोषीय घाटे के आँकड़े 31 मार्च को जनवरी-मार्च तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आँकड़ों के साथ जारी किये जाएंगे।
- अस्थायी आँकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष कर संग्रह 9.95 लाख करोड़ रुपए रहा। यह वित्त वर्ष 2016-17 की तुलना में 17.1 फीसदी अधिक है।भी इसमें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के फरवरी तक के आँकड़े ही शामिल किये गए हैं।
- वर्तमान में उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017-18 में विनिवेश से हुई कमाई एक लाख करोड़ रुपए के संशोधित अनुमान से थोड़ा अधिक रही है, जबकि सार्वजनिक उपक्रमों और बैंकों से मिलने वाले लाभांश के संशोधित अनुमान में उल्लेखनीय कटौती की गई है।
- मार्च में दो सरकारी उपक्रमों भारत डायनेमिक्स और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के आईपीओ आए थे, जबकि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और मोइल ने अपने शेयरों की पुनर्खरीद की थी।
क्या होता है राजकोषीय घाटा ?
- सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी। कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है।
- राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है। पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कार्यों पर होता है।
- राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंद्रीय बैंक (रिज़र्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिये छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के ज़रिये पूंजी बाज़ार से फंड जुटाया जाता है।