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जैव विविधता और पर्यावरण

अपर्याप्त प्रतिपूरक वनीकरण

  • 05 Oct 2020
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

प्रतिपूरक वनीकरण प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण

मेन्स के लिये:

भारत के पर्वतीय राज्यों में अपर्याप्त प्रतिपूरक वनीकरण

चर्चा में क्यों?

एक हालिया अध्ययन में हिमाचल प्रदेश के किन्नौर ज़िले में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के विकास के लिये किये गए वन व्यपवर्तन (Forest Diversion) के बदले प्रतिपूरक वनीकरण (Compensatory Afforestation) के तहत केवल 10% पौधे ही लगाए गए। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुछ भूखंडों में लगाये गए पौधों के विकसित होने की दर 3.6% के बराबर थी।

प्रमुख बिंदु:

  • अध्ययन: 
    • यह अध्ययन वर्ष 2012 से वर्ष 2016 के बीच हिमधारा इनवायरमेंट रिसर्च एंड एक्शन कलेक्टिव (Himdhara Environment Research and Action Collective) द्वारा किया गया है। 
    • यह अध्ययन सरकारी आँकड़ों एवं ज़मीनी अनुसंधान पर आधारित है।
  • अध्ययन आधारित आँकड़े:  
    • 31 मार्च, 2014 तक प्रतिपूरक वनीकरण के लिये सीमांकित किया गया कुल क्षेत्र गैर-वन गतिविधियों के लिये 984 हेक्टेयर वन भूमि के बदले में 1930 हेक्टेयर था जिसमें सड़क, पनबिजली परियोजनाएँ, ट्रांसमिशन लाइनें आदि भी शामिल हैं।
    • किन्नौर ज़िले में कुल परिवर्तित वन भूमि में 11598 पेड़ खड़े थे जो 21 पादप प्रजातियों से संबंधित थे। 
    • गिरे हुए अधिकांश पेड़ शंकुधारी थे जिनमें देवदार (3,612) और लुप्तप्राय चिलगोज़ा पाइंस (2743) शामिल थे।
  • वर्ष 2002 और वर्ष 2014 के बीच किन्नौर ज़िले की परियोजनाओं के लिये कैचमेंट एरिया ट्रीटमेंट (Catchment Area Treatment- CAT) प्लान कोष के तहत एकत्र किये गए 162.82 करोड़ रुपए में से 31 मार्च, 2014 तक केवल 36% निधि का खर्च किया गया था।
    • CAT प्लान कोष को पनबिजली परियोजनाओं के लिये शमन उपायों के रूप में चुना जाता है।
  • किन्नौर में 90% से अधिक वन व्यपवर्तन (Forest Diversion) जलविद्युत परियोजनाओं एवं पारेषण लाइनों के विकास के लिये होता है।
    • हिमाचल प्रदेश में देश की 10,000 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाओं की उच्चतम स्थापित क्षमता है और सतलज बेसिन में अवस्थित किन्नौर 53 जलविद्युत परियोजनाओं के साथ इस राज्य का जल विद्युत परियोजना केंद्र है।
  • प्रतिपूरक वनीकरण: प्रतिपूरक वनीकरण प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (Compensatory Afforestation Management and Planning Authority- CAMPA) के नियमों के अनुसार, वन भूमि के प्रत्येक हेक्टेयर के लिये, 'प्रतिपूरक वनीकरण' के लिये भूखंडों के रूप में 'निम्नीकृत' (Degraded) भूमि का दोगुना उपयोग किया जाता है।

प्रतिपूरक वनीकरण प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण

(Compensatory Afforestation Management and Planning Authority- CAMPA):

  • यह निगरानी, तकनीकी सहायता और प्रतिपूरक वनीकरण गतिविधियों के मूल्यांकन के लिये केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (National Advisory Council) के रूप में कार्य करता है।
  • प्रत्येक बार वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों जैसे- खनन या उद्योग के लिये परिवर्तित किया जाता है तो उपयोगकर्त्ता एजेंसी गैर-वन भूमि (या गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं है तो निम्नीकृत वन भूमि के दो गुना क्षेत्र) में वन लगाने के लिये भुगतान करती है।
  • नियमों के अनुसार, क्षतिपूरक वनीकरण कोष (CAF) का 90% धन राज्यों को दिया जाता है जबकि 10% धन केंद्र सरकार अपने पास रखती है।
    • इस धन का उपयोग CAT के लिये किया जाता है जिसके तहत वन प्रबंधन, वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन, संरक्षित क्षेत्रों से गाँवों का स्थानांतरण, मानव-वन्यजीव संघर्ष का प्रबंधन, प्रशिक्षण एवं जागरूकता सृजन, लकड़ी की बचत करने वाले उपकरणों की आपूर्ति एवं संबद्ध गतिविधियाँ शामिल हैं।

चुनौतियाँ:

  • वन विभाग द्वारा लक्ष्य पूरा न कर पाने का कारण है कि प्रतिपूरक वनीकरण के लिये कोई भूमि उपलब्ध नहीं है।
    • किन्नौर ज़िले का एक बड़ा हिस्सा चट्टानी एवं ठंडा रेगिस्तान है जहाँ कुछ भी नहीं उगता है।
    • किन्नौर ज़िले का लगभग 10% हिस्सा पहले से ही वनाच्छादित है और बाकी का उपयोग या तो कृषि के लिये किया जाता है या वहाँ घास के मैदान हैं।
  • वनीकरण के लिये चिन्हित किये गए कई भूखंड वास्तव में घास के मैदान हैं जो ग्रामीणों द्वारा मवेशियों को चराने के लिये उपयोग किये जाते हैं। 
    • कई उदाहरणों के रूप में ग्रामीणों ने वहाँ लगाए गए पौधों को उखाड़ दिया क्योंकि वे नहीं चाहते कि ये चरागाह जंगल में परिवर्तित हो जाए।
  • वनीकरण के लिये सामाजिक-आर्थिक ज़रूरतों पर विचार नहीं किया जाता है और साथ ही वनीकरण की निगरानी भी नहीं होती है।

आगे की राह:

  • प्रतिपूरक वनीकरण के लिये वन विभाग को किन्नौर ज़िले के बजाय अन्य ज़िलों में वृक्षारोपण करना चाहिये।
  • वनों की कटाई के दुष्प्रभावों को समझने के लिये पर्याप्त संसाधनों के साथ समय पर निगरानी करने की आवश्यकता है। 
  • प्रतिपूरक वनीकरण के लिये जन भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये जिससे नए पौधे और मौजूदा पेड़ों की बेहतर देखभाल एवं सुरक्षा हो सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

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