नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पंचेश्वर बांध : वनों की क्षतिपूर्ति का संकट

  • 15 Feb 2018
  • 9 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी की गई ‘भारत वन स्‍थिति रिपोर्ट, 2017’ (India State of Forest Report-ISFR) में वन क्षेत्रों के संदर्भ में भारत की स्थिति का विवरण प्रस्तुत किया गया। इसके अनुसार, वन क्षेत्र के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष 10 देशों में से एक है। वनों पर मानवीय आबादी और मवेशियों की संख्‍या के बढ़ते दवाब के बावजूद भारत अपनी वन संपदा को संरक्षित रखने और उसमें निरंतर वृद्धि करने में सफल रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि देश को स्वच्छ पर्यावरण उपलब्ध कराने के लिये अधिक-से-अधिक वनावरण पर बल देने वाले उत्तराखंड के पास वर्तमान में और वन लगाने के लिये कोई भूमि नहीं बची है।
  • वर्तमान स्थिति यह है कि देश के तकरीबन पाँच राज्यों को सिंचाई एवं बिजली का लाभ प्रदान करने के लिये भारत-नेपाल सीमा पर प्रस्तावित पंचेश्वर बांध की सीमा में आने वाले पेड़ों की प्रतिपूर्ति हेतु उत्तराखंड को अन्य राज्यों में भूमि की तलाश करनी पड़ रही है। इसके लिये उत्तर प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक संपर्क किया जा रहा है।

वर्तमान स्थिति

  • उत्तराखंड और नेपाल के बीच शारदा नदी (नेपाल में इसे महाकाली के नाम से जाना जाता है) पर 40 हज़ार करोड़ की लागत वाली पंचेश्वर बांध परियोजना अभी प्रस्तावित स्थिति में है।
  • इस परियोजना के क्रियान्वयन से उत्तराखंड के तीन ज़िलों पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और चंपावत के तकरीबन 130 गाँवों के प्रभावित होने की आशंका है।
  • इस परियोजना के दायरे में आने वाली लगभग 9100 हेक्टेयर भूमि पर बड़ी संख्या में पेड़ लगे हुए हैं। स्पष्ट रूप से इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिये इन पेड़ों को काटा जाएगा जिससे राज्य में वन संसाधनों की स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
  • नियमानुसार इस परियोजना के लिये आवश्यक जितनी भूमि से पेड़ों को काटा जाएगा उतनी ही भूमि पर दूसरी जगह उतनी ही मात्रा उन्हें रोपित भी किया जाना चाहिये।
  • अक्सर ऐसी स्थिति में राज्यों को योजना के क्रियान्वयन के लिये दोगुनी भूमि देनी होती है, चूँकि पंचेश्वर बांध परियोजना एक अंतर्राष्ट्रीय परियोजना है, अत: इसके लिये क्षेत्रफल को उतना ही रखा गया है जितनी कि योजना में इस्तेमाल किया जाएगा।

कितने पेड़ों का कटान किया जाएगा?

  • इस संबंध में हाल ही में किये गए एक सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, पंचेश्वर बांध परियोजना में चारधाम मार्ग परियोजना से (इसमें तकरीबन 50 हज़ार से अधिक पेड़ कटने का अनुमान है) दोगुने पेड़ों को काटा जा सकता है।
  • स्पष्ट रूप से इतनी अधिक संख्या में यदि पेड़ काटे जाएंगे तो इन्हें लगाने के लिये काफी अधिक भूमि की आवश्यकता होगी। 
  • उत्तराखंड की वर्तमान स्थिति यह है कि इसका तकरीबन 71.05 प्रतिशत क्षेत्र वनाच्छादित है, ऐसे में इसके पास इतनी भूमि नहीं है कि यह इन पेड़ों की प्रतिपूर्ति के लिये प्रदेश के किसी भी ज़िले में भूमि उपलब्ध करा सके। 
  • यही कारण है कि इस कार्य हेतु प्रदेश के बाहर विकल्प तलाशे जा रहे हैं। अभी तक उत्तराखंड सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक राज्य से इस संदर्भ में बात की गई है, लेकिन कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका है।
  • पंचेश्वर बांध प्रभावित क्षेत्र में आरक्षित वनों सहित सभी प्रकार की भूमि के संबंध में सटीक निर्णय लेने के लिये माइक्रो सर्वे, सीमांकन एवं पेड़ों की पुन: गिनती की जाएगी। सर्वे, सीमांकन एवं पेड़ों की गिनती के लिये टीमों के गठन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।

वन रिपोर्ट के ताज़ा आकलन के अनुसार

  • वन रिपोर्ट के ताजा आकलन के अनुसार, देश के 15 राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों का 33% भू-भाग वनों से घिरा हुआ है। इनमें से 7 राज्‍यों और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे- मिज़ोरम, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, नगालैंड, मेघालय और मणिपुर का 75% से अधिक भू-भाग वनाच्‍छादित है।
  • जबकि त्रिपुरा, गोवा, सिक्‍किम, केरल, उत्‍तराखंड, दादरा नगर हवेली, छत्‍तीसगढ़ और असम का 33 से 75% के बीच का भू-भाग वनों से घिरा हुआ है।
  • देश का 40% वनाच्‍छादित क्षेत्र 10 हज़ार वर्ग किलोमीटर या इससे अधिक के 9 बड़े क्षेत्रों के रूप में मौजूद है।

भूकंपीय क्षेत्र 

  • भूगर्भवेत्ताओं द्वारा प्रदत्त अनुमानों के अनुसार, पंचेश्वर भूगर्भीय हलचलों की दृष्टि से ’जोन 4’ में शामिल है। बांध में पानी को रोके जाने से यहाँ लगभग 80 से 90 करोड़ घन लीटर पानी का अतिरिक्त दबाव बनेगा, जिसके कारण इस संवेदनशील क्षेत्र में अवस्थित चट्टानों के खिसकने एवं धंसने की घटनाओं में वृद्धि होने की संभावना है। स्पष्ट रूप से इससे बड़े स्तर पर भूकंपों के आने की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • भूकंपीय खतरों के अतिरिक्त यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से भी काफी अधिक संवेदनशील है। आपको बताते चलें कि यह बांध मध्य हिमालय के इको सिस्टम पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। 
  • इस बांध से नदियों के किनारे बसे 134 वर्ग किमी के क्षेत्र में आने वाले चौड़ी पत्ती के कई जंगलों के डूबने की संभावना ने इस बांध को एक बार फिर से चर्चा का विषय बना दिया है।

पंचेश्वर बांध परियोजना

  • भारत और नेपाल की सीमा पर शारदा नदी पर पंचेश्वर बांध का निर्माण किया जा रहा है। 
  • पंचेश्वर बांध की ऊँचाई 315 मी. है। इस बांध से तकरीबन 4800 मेगावॉट बिजली प्राप्त होने की संभावना है।
  • इस परियोजना की लागत 40 हज़ार करोड़ रुपए है।
  • इसके क्रियान्वयन हेतु उत्तराखंड में लगभग 9100 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किये जाने की संभावना है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • पंचेश्वर में महाकाली नदी के साथ चार अन्य नदियों- गौरीगंगा, धौली, सरयू और रामगंगा का संगम होता है। कुल 5040 मेगावॉट की यह परियोजना  दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है।
  • इस परियोजना पर दो चरणों में काम पूरा किया जाएगा। पहले चरण में 315 मीटर ऊँचा बांध पंचेश्वर में महाकाली और सरयू नदी के संगम से 2 किमी नीचे बनाया जाएगा, जबकि दूसरे चरण में 145 मीटर ऊंचाई वाला बांध इससे नीचे महाकाली की अग्रगामी शारदा नदी पर पूर्णागिरि में बनाया जाएगा।
  • पंचेश्वर बांध के निर्माण हेतु भारत सरकार और नेपाल सरकार द्वारा साझा बांध योजना के तहत कार्य किया जाएगा। 
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow