इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट प्रबंध मानदंडों का महत्त्व | 12 Oct 2017
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्मार्टफोन, लैपटॉप तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों का निर्माण करने वाली 225 कंपनियों को इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट प्रबंध मानदंडों (electronic-waste procurement norms) का पालन न करने के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसी) द्वारा नोटिस जारी किया गया है।
इलेक्ट्रॉनिक-अपशिष्ट प्रबंध मानदंड क्या हैं?
- वर्ष 2016 में पर्यावरण, वन तथा जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा इन नियमों को अधिसूचित किया गया था।
- इसके तहत ई-कचरा नियमों में कंपैक्ट फ्लोरेसेंट लैम्प (सीएफएल) तथा मरकरी वाले अन्य लैम्प और ऐसे उपकरण शामिल किये गए थे।
- इन मानदंडों के तहत उत्पादकों को ई–कचरा इकट्ठा करना होगा और अधिकृत रूप से रिसाइक्लिंग करनी होगी।
- हालाँकि इस प्रकार के नियम वर्ष 2011 से ही लागू हैं, लेकिन वर्ष 2016 में इन मानदंडों को और मज़बूत बनाते हुए ई-कचरा इकट्ठा करने वाले श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य तथा कौशल विकास सुनिश्चित करने की भूमिका राज्य सरकारों को दे दी गई।
- साथ ही नियमों के उल्लंघन की स्थिति में दण्ड का भी प्रावधान किया गया और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पूरे देश में एकल प्राधिकार दिया गया।
- ई-कचरे में शामिल जहरीले तत्त्व तथा उनके निष्पादन के तौर-तरीकों से मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और तरह-तरह की बीमारियाँ होती हैं।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और उसके कार्य क्या हैं?
- केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अन्तर्गत सितम्बर, 1974 में किया गया था। इसके पश्चात् केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अन्तर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए। केन्द्रीय बोर्ड के निम्नलिखित कार्य हैं:
♦ भारत सरकार को जल एवं वायु प्रदूषण के निवारण एवं नियंत्रण तथा वायु गुणवत्ता में सुधार से संबंधित किसी भी विषय में परामर्श देना।
♦ जल तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम अथवा निवारण एवं नियंत्रण के लिये एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम की योजना तैयार कर तथा उसे निष्पादित कराना।
♦ राज्य बोर्डों की गतिविधियों का समन्वयन करना तथा उनके बीच उत्पन्न विवादों को सुलझाना।
♦ राज्य बोर्डों को तकनीकी सहायता व मार्गदर्शन उपलब्ध कराना, वायु प्रदूषण से संबंधित समस्याओं तथा उसके निवारण, नियंत्रण अथवा उपशमन के लिये अनुसंधान और उसके उत्तरदायी कारणों की खोज करना।
♦ जल तथा वायु प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण अथवा उपशमन के कार्यक्रमों में संलग्न व्यक्तियों के लिये प्रशिक्षण आयोजित करना तथा योजनाएँ तैयार करना।
♦ जल तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम अथवा नियंत्रण, निवारण पर एक विस्तृत जन-जागरूकता कार्यक्रम, मास मीडिया के माध्यम से आयोजित करना।
♦ जल-मल तथा व्यावसायिक बहिस्रावों के विसर्जन तथा शोधन के संबंध में नियमावली, आचार संहिता और दिशा-निर्देश तैयार करना।
♦ जल तथा वायु प्रदूषण तथा उनके निवारण तथा नियंत्रण से संबंधित मामलों में सूचना का प्रसार करना।
♦ संबंधित राज्य सरकारों के परामर्श से नदियों अथवा कुओं के लिये मानकों को निर्धारित करना तथा वायु गुणवत्ता के लिये मानक तैयार करना, निर्धारित करना, संशोधित करना अथवा रद्द करना।