कश्मीर में हिमपात न होने के प्रभाव | 18 Jan 2024
प्रिलिम्स के लिये:कश्मीर में हिमपात न होने के प्रभाव, पश्चिमी विक्षोभ, जलवायु परिवर्तन, हिमालयी क्षेत्र, अल-नीनो मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण भू-भौतिकीय परिघटनाएँ, भौगोलिक विशेषताएँ और उनकी अवस्थिति, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सर्दियों के मौसम के दौरान कश्मीर में हिमपात की अनुपस्थिति न केवल क्षेत्र के, विशेषकर गुलमर्ग जैसे लोकप्रिय स्थलों के, पर्यटन उद्योग को प्रभावित कर रही है अपितु इसका स्थानीय पर्यावरण तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
कश्मीर में हिमपात न होने का क्या कारण है?
- जलवायु और मौसम पैटर्न:
- संपूर्ण जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख क्षेत्रों में इस सर्दी में वर्षा अथवा हिमपात की कमी देखी गई है, जिसके अनुसार दिसंबर 2023 में वर्षा में 80% की उल्लेखनीय कमी तथा जनवरी 2024 में अभी तक 100% (कोई वर्षा नहीं) की कमी दर्ज की गई है।
- इन क्षेत्रों में शीतकालीन वर्षा मुख्यतः हिमपात के रूप में होती है जो स्थानीय जलवायु के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- पश्चिमी विक्षोभ में कमी:
- बर्फबारी में कमी की समग्र प्रवृत्ति को पश्चिमी विक्षोभ की घटनाओं में कमी और तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि के लिये ज़िम्मेदार ठहराया गया है, जो संभवतः जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है।
- पश्चिमी विक्षोभ हिमालय क्षेत्र में शीतकालीन वर्षा का प्राथमिक स्रोत हैं।
- पश्चिमी विक्षोभ की घटनाओं की संख्या में कमी देखी जा रही है, जिससे सर्दियों के महीनों के दौरान कुल वर्षा कम हो रही है।
- पश्चिमी विक्षोभ पूर्व की ओर बढ़ने वाली विशाल वर्षा-वाहक पवन प्रणाली है जो अफगानिस्तान और ईरान से आगे शुरू होती है, जो भूमध्य सागर तथा यहाँ तक कि अटलांटिक महासागर तक नमी लाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन एवं अल नीनो की भूमिका:
- विभिन्न अध्ययनों से ज्ञात होता है कि कश्मीर में बर्फबारी में कमी के लिये जलवायु परिवर्तन को एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है।
- पूर्वी प्रशांत महासागर में वर्तमान अल-नीनो घटना को वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को प्रभावित करने और क्षेत्र में कम वर्षा में योगदान देने वाले एक अतिरिक्त कारक के रूप में सुझाया गया है।
- पिछले एक दशक में वर्ष 2022, 2018, 2015 में जम्मू और कश्मीर में सर्दियाँ अपेक्षाकृत शुष्क रही हैं तथा हिमपात में कमी आयी है।
कश्मीर में हिमपात न होने के क्या प्रभाव हैं?
- लघु एवं दीर्घकालिक प्रभाव:
- अल्पकालिक प्रभावों में वनाग्नि में वृद्धि, कृषि संबंधित अनावृष्टि और फसल उत्पादन में गिरावट शामिल है।
- दीर्घकालिक परिणामों में जलविद्युत/पनबिजली उत्पादन में कमी, हिमनद के पिघलने में वृद्धि और भूजल के कम पुनर्भरण के कारण पेयजल आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव शामिल हैं।
- शीतकालीन फसलों के लिये महत्त्वपूर्ण:
- पर्यटन पर प्रभाव:
- कश्मीर के प्रमुख शीतकालीन पर्यटन स्थल गुलमर्ग में अपर्याप्त बर्फबारी के कारण इस मौसम में पर्यटकों की संख्या में भारी गिरावट देखी जा रही है। वर्ष 2023 में पर्यटकों की पर्याप्त संख्या के बावजूद, अधिकारियों का अनुमान है कि पर्यटकों की संख्या में कम-से-कम 60% की कमी आएगी।
- बर्फ की कमी स्की रिसॉर्ट्स (Skiresort) और संबंधित व्यवसायों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. असामान्य जलवायवी घटनाओं में से अधिकांश अल-नीनो प्रभाव के परिणाम के तौर पर स्पष्ट की जाती है। क्या आप सहमत हैं? (2014) |