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भारतीय राजव्यवस्था

द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग

  • 11 Mar 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये

प्रथम और द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग एवं उसकी सिफारिशें

मेन्स के लिये 

न्यायपालिका की स्वतंत्रता से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े की अगुवाई वाली सर्वोच्च न्यायालय की न्यायपीठ ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को स्पष्ट कर दिया है कि द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग द्वारा अधीनस्थ न्यायपालिका (Subordinate Judiciary) के लिये वेतन, पेंशन और भत्तों को लेकर की गई सिफारिशों को सक्रियता से लागू किया जाना चाहिये।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि एक आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर अधीनस्थ न्यायपालिका स्वतंत्र न्यायपालिका के अस्तित्व का आधार है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में समाज की हिस्सेदारी होती है और इसे किसी भी कीमत पर सुरक्षित किया जाना आवश्यक है।
  • वर्ष 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में राज्यों को निर्देश दिया कि वे अपने कर्मचारियों के लिये वेतन आयोग का गठन करें तो न्यायिक अधिकारियों के वेतन ढाँचे की अलग से समीक्षा की जाए।
  • वर्ष 1993 में अपने समीक्षात्मक निर्णय में न्यायालय ने कहा कि ‘न्यायिक सेवा रोज़गार के अर्थ में कोई सेवा नहीं है और न ही न्यायाधीश कोई कर्मचारी हैं।’
  • तब से यह मामला अधीनस्थ न्यायिक अधिकारियों की सेवा शर्तों में सुधार के लिये किये जा रहे निरंतर प्रयासों का आधार बन गया।

द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग

  • दूसरे राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग ने वेतन, पेंशन और भत्तों से संबंधित रिपोर्ट के मुख्य भाग को प्रस्तुत कर दिया है।
  • दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए आदेश का पालन करते हुए किया गया था।
  • विधि एवं न्‍याय मंत्रालय ने 16 नवंबर, 2017 को आयोग के गठन के संदर्भ में अधिसूचना जारी की थी और आयोग ने वर्ष 2018 में अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
  • उच्‍चतम न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायाधीश जस्टिस पी.वी. रेड्डी को द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।
  • इसके अलावा केरल उच्‍च न्‍यायालय के पूर्व न्‍यायाधीश जस्टिस आर. वसंत इस आयोग के सदस्‍य और दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायिक सेवा के ज़िला न्‍यायाधीश विनय कुमार गुप्‍ता आयोग के सदस्‍य सचिव हैं।
  • ध्यातव्य है कि प्रथम राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग का गठन 21 मार्च, 1996 को किया गया था।

द्वितीय राष्‍ट्रीय न्‍यायिक वेतन आयोग की सिफारिशें

  • वेतन

आयोग ने विभिन्न वैकल्पिक कार्य पद्धतियों पर विचार कर पे मैट्रिक्‍स (Pay Matrix) अपनाने की सिफारिश की जिसे वर्तमान वेतन के 2.81 के गुणक को लागू करके निकाला गया है, जो उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीशों के वेतन में वृद्धि के प्रतिशत के अनुरूप है। आयोग द्वारा निर्धारित संशोधित वेतन ढाँचे के अनुसार, जूनियर सिविल न्‍यायाधीश/प्रथम श्रेणी के मजिस्‍ट्रेट जिनका शुरूआती वेतन 27,700 रुपए है उन्‍हें अब 77,840 रुपए मिलेंगे। जबकि वरिष्‍ठ सिविल न्‍यायाधीश का वेतन 1,11,000 रुपए से और ज़िला न्‍यायाधीश का वेतन 1,44,840 रुपये से शुरू होगा। ज़िला न्‍यायाधीश का अधिकतम वेतन 2,24,100 रुपए होगा। संशोधित वेतन और पेंशन 1 जनवरी, 2016 से प्रभावी होगी। अंतरिम राहत का समायोजन करने के पश्चात् वित्तीय वर्ष 2020 के दौरान बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा।

  • पेंशन

प्रस्‍तावित संशोधित वेतनमानों के आधार पर पिछले वेतन के 50 प्रतिशत पर पेंशन की सिफारिश की गई। परिवार की पेंशन अंतिम वेतन का 30 प्रतिशत होगी। अतिरिक्‍त पेंशन 75 वर्ष की आयु पूरा करने पर शुरू होगी और विभिन्‍न चरणों पर प्रतिशत बढ़ेगा। वर्तमान में सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी और मृत्‍यु ग्रेच्युटी की वर्तमान सीमा 25 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी जब DA 50 प्रतिशत पर पहुँच जाएगा।

  • भत्ते

वर्तमान भत्तों को उपयुक्‍त तरीके से बढ़ाया जाएगा और कुछ नई बातों को शामिल किया गया है। चिकित्‍सा सुविधाओं में सुधार और अदायगी की प्रक्रिया सरल बनाने की सिफारिशें की गई हैं। पेंशनधारियों और पारि‍वारिक पेंशन लेने वालों को चिकित्‍सा सुविधाएँ दी जाएंगी। कुछ नए भत्ते जैसे बच्‍चों की शिक्षा से जुड़े भत्ते, होम ऑर्डरली भत्ते का प्रस्‍ताव रखा गया है।

स्रोत: द हिंदू

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