गर्भावस्था में मधुमेह परीक्षण अनिवार्य | 06 Jun 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जर्नल ऑफ द एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडिया (Journal of the Association of Physicians of India) में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, प्रत्येक गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान अनिवार्य रूप से उच्च रक्त शर्करा (High Blood Glucose) की जाँच कराना आवश्यक है।

प्रमुख बिंदु

  • गर्भ के विकास के प्रारंभिक चरण में ही यदि इस तरह की बीमारियों का पता चल जाता है तो गर्भवती महिलाओं में इनकी रोकथाम तथा मधुमेह या अन्य गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases- NCD) से बचाव को सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • लेख का प्रमुख लक्ष्य भविष्य में गैर-संचारी रोग से पीड़ित संतानों में कमी लाना तथा नवजात शिशुओं के जन्म के दौरान उनके वज़न को 2.5-3.5 किलोग्राम (उपयुक्त वज़न) तक सुनिश्चित करना है।
  • महिलाओं में प्रारंभिक निदान के तहत रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जाना भी आवश्यक है।

इंट्रा-यूटेरिन अवधि (गर्भाशय काल)

Intra-Uterine period

  • गैर-संचारी रोगों की बढ़ती प्रवृत्ति के लिये कई कारक ज़िम्मेदार है जिनमें अंतर्गर्भाशयी (Intrauterine) प्रक्रिया अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है। इसके बावजूद अंतर्गर्भाशयी प्रोग्रामिंग की अवधारणा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि सामान्यतः जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों के लिये शरीर की संवेदनशीलता इंट्रा-यूटेराइन अवधि में संचालित हो जाती है।
  • भ्रूण में ग्लूकोस की अधिक मात्रा के स्थानांतरण के लिये माँ में उच्च शर्करा की आवश्यकता होती है। अतः उच्च मात्रा में इंसुलिन स्रावित करने के लिये भ्रूण अग्नाशय की कोशिकाओं को उत्तेजित करता है जिससे ग्लूकोस का स्तर बढ़कर स्थिर हो जाता है
  • जब मातृ ग्लूकोज का स्तर 110 mg/dl से अधिक होता है, तो एम्नियोटिक द्रव (Amniotic Fluid) में ग्लूकोज़ की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है।
  • 20 सप्ताह के बाद भ्रूण एम्नियोटिक द्रव का उपयोग करने लगता है, साथ ही इंसुलिन के उत्पादन को प्रेरित करने लगता है।

GDM

गर्भकालीन मधुमेह की भारत में स्थिति

  • भारत में अनुमानित 62 मिलियन लोग टाइप 2 मधुमेह (diabetes mellitus-DM) से ग्रस्त हैं, जिसकी संख्या वर्ष 2025 तक 79.4 मिलियन तक बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।

राष्ट्रीय दिशा-निर्देश

  • स्वास्थ्य मंत्रालय ने गर्भावस्था में हाइपरग्लाइकेमिया (Hyperglycaemia) के परीक्षण, निदान और प्रबंधन के लिये राष्ट्रीय दिशा-निर्देश विकसित किये हैं।
  • इनके अनुसार, पहली तिमाही के दौरान प्रारंभिक परीक्षण किया जाना चाहिये, यदि परीक्षण नकारात्मक रहता है तो 24-28 सप्ताह के बीच एक और परीक्षण किया जाना चाहिये।
  • उत्तर प्रदेश में इस कार्यक्रम को देश के अन्य हिस्सों से अलग अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। यहाँ उन्नत परीक्षण उपकरणों का उपयोग कर इसका क्रियान्वयन किया जा रहा है।
  • वर्तमान में सभी गर्भवती महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण दुनिया भर में एक मानक बन गया है।

स्रोत- द हिंदू