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शासन व्यवस्था

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर महाभियोग

  • 20 Dec 2019
  • 12 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अमेरिका और भारत में महाभियोग की प्रक्रिया

मेन्स के लिये:

अमेरिका और भारत में महाभियोग की प्रक्रिया और इनका तुलनात्मक अध्ययन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विरुद्ध लाए गए महाभियोग (Impeachment) प्रस्ताव पर अमेरिकी संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा (House of Representative) में बुधवार को मतदान हुआ।

  • अमेरिकी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग के लिये निचले सदन में दो प्रस्ताव पेश किये गए थे। पहले में उन पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया जो 197 के मुकाबले 230 मतों से पास हुआ।
  • दूसरे प्रस्ताव में महाभियोग मसले पर संसद के कार्य में बाधा डालने का आरोप था जो कि 198 के मुकाबले 229 मतों से पास हुआ।
  • प्रतिनिधि सभा में डेमोक्रेटिक पार्टी के सभी चार भारतीय अमेरिकी सदस्‍यों ने ट्रंप पर महाभियोग चलाने के पक्ष में मतदान किया।
  • हालाँकि राष्ट्रपति ट्रंप की सरकार को कोई खतरा नहीं है क्‍योंकि महाभियोग की प्रक्रिया निचले सदन से पास होने के बावजूद सीनेट में इसका पारित होना मुश्किल है। सीनेट में सत्तारूढ़ रिपब्लिकंस पार्टी का बहुमत है। राष्ट्रपति ट्रंप को केवल एक ही स्थिति में हटाया जा सकता है, जब उनकी पार्टी के सांसद उनके विरुद्ध मतदान करें जिसकी आशंका नहीं है।
  • निचले सदन के बाद अब राष्ट्रपति को सत्ता से हटाने के लिये उच्च सदन यानी सीनेट में महाभियोग की प्रक्रिया चलेगी। अमेरिका के इतिहास में ऐसा तीसरी बार हैं जब किसी राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव लाया गया है।
  • वर्ष 1868 में एंड्रू जॉनसन और वर्ष 1998 में बिल क्लिंटन के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया शुरू हुई थी। हालाँकि दोनों ही बार राष्ट्रपति को सत्ता से हटाया नहीं जा सका था। वर्ष 1974 में राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन पर अपने एक विरोधी की जासूसी करने का आरोप लगा था। इसे वॉटरगेट स्कैंडल का नाम दिया गया था।

क्या है मुद्दा:

  • अमेरिकी राष्‍ट्रपति ट्रंप पर वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में संभावित प्रतिद्वंद्वी जो बिडेन समेत अन्‍य नेताओं की छवि खराब करने के लिये यूक्रेन के राष्‍ट्रपति ब्लादीमेर जेलेंसकी से गैरकानूनी रूप से सहायता मांगने का आरोप है। राष्ट्रपति ट्रंप पर सत्ता के दुरुपयोग के साथ-साथ कानून निर्माताओं को जाँच से रोकने का भी आरोप हैं।

अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया:

Donald-Trump

भारत और अमेरिका के संविधान की तुलना:

  • भारत और अमेरिका की सरकारों की कार्यप्रणालियाँ अर्थात् विधायिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका में एक विशिष्ट प्रकार का संबंध है।
  • भारत में जहाँ कार्यपालिका विधायिका का अंग होती है और न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र इससे अलग होता है,वहीं अमेरिका की सरकार की कार्यप्रणाली में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका का स्पष्ट विभाजन है अर्थात् कोई एक-दूसरे से प्रत्यक्ष संबंध नहीं रखते हैं।
  • इस प्रकार जहाँ भारत में शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत पूर्णतः लागू नहीं होता है, वहीं अमेरिका में यह पूर्णतः लागू होता है।

शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत (Theory of Separation of Power):

शक्ति के पृथक्करण का सिद्धांत इस विचार पर आधारित है कि निरंकुश शक्तियों के मिल जाने से व्यक्ति भ्रष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगते हैं।

पृष्ठभूमि:

  • इस सिद्धांत से संबंधित आधारभूत विचार नवीन नहीं है। राजनीतिशास्त्र के जनक अरस्तू ने सरकार को असेंबली, मजिस्ट्रेसी तथा जुडीशियरी नामक तीन विभागों में बाँटा था, जिनसे आधुनिक व्यवस्था का शासन तथा न्याय विभाग का पता चलता है।
  • 16वीं सदी के विचारक जीन बोंदा ने स्पष्ट कहा है कि राजा को कानून निर्माता तथा न्यायाधीश दोनों रूपों में एक साथ कार्य नहीं करना चाहिये। लाॅक द्वारा भी इसी प्रकार का विचार व्यक्त किया गया है।

माॅण्टेस्क्यू:

  • माॅण्टेस्क्यू के पूर्व अनेक विद्वानों ने इस प्रकार के विचार प्रकट किये थे, किंतु विधिवत् और वैज्ञानिक रूप में इस सिद्धांत के प्रतिपादन का कार्य फ्राँसीसी विचारक माॅण्टेस्क्यू द्वारा ही किया गया। माॅण्टेस्क्यू लुई चौदहवें का समकालीन था इसलिये उसने राजा द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग के प्रभाव को भलीभाँति देखा।
  • माॅण्टेस्क्यू के अनुसार “प्रत्येक सरकार में तीन प्रकार की शक्तियाँ होती हैं – व्यवस्थापन संबंधी, शासन संबंधी तथा न्याय संबंधी। इसी आधार पर उसने वर्ष 1762 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘स्पिरिट ऑफ लॉज़’ (Spirit of Laws) में शासन संबंधी शक्ति के पृथक्करण के सिद्धांत का प्रतिपादन किया।

सिद्धांत का प्रभाव:

  • शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत का तत्कालीन राजनीति पर बहुत प्रभाव पड़ा। अमेरिकी संविधान निर्माता इस सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे और इसी कारण उन्होंने अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया था।
  • इसी प्रकार मैक्सिको, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, ऑस्ट्रिया आदि अनेक देशों के संविधान में भी इसको मान्यता प्रदान की गई है।

सिद्धांत के पक्ष में तर्क

  • निरंकुशता और अत्याचार से रक्षा।
  • विभिन्न योग्यताओं का उपयोग अर्थात् शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत को अपनाना इसलिये भी आवश्यक और उपयोगी है कि सरकार से संबंधित विभिन्न कार्यों को करने के लिये अलग-अलग प्रकार की योग्यताओं की आवश्यकता होती है।
  • कार्य विभाजन से बेहतर निष्पादन।
  • न्याय की निष्पक्षता।

सिद्धांत की आलोचना:

  • ऐतिहासिक दृष्टि से असंगत: मांटेस्क्यू के अनुसार, उसने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन इंग्लैंड की तत्कालीन शासन पद्धति के आधार पर किया है, लेकिन इंग्लैंड की शासन व्यवस्था कभी भी शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत पर आधारित नहीं रही है।
  • शक्तियों का पूर्ण पृथक्करण संभव नहीं: आलोचकों का कथन है कि सरकार एक आंगिक एकता है, उसी प्रकार की स्थिति शासन के अंगों की है। इसलिये शासन के अंगों का पूर्ण व कठोर पृथक्करण व्यवहार में संभव नहीं है।
  • अमेरिकी संघीय व्यवस्थापिका अर्थात् काॅन्ग्रेस कानूनों का निर्माण करने के साथ-साथ राष्ट्रपति द्वारा की गई नियुक्तियों और संधियों पर नियंत्रण रखती है तथा महाभियोग लगाने का न्यायिक कार्य भी कर सकती है। इसी प्रकार कार्यपालिका के प्रधान, राष्ट्रपति को कानूनों के संबंध में निषेध का अधिकार और न्याय क्षेत्र में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने एवं क्षमादान का अधिकार प्राप्त है।
  • शक्ति का पृथक्करण अवांछनीय भी है: शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत को अपनाना न केवल असंभव वरन् अवांछनीय भी है। व्यवस्थापिका कानून निर्माण का कार्य तथा कार्यपालिका प्रशासन का कार्य ठीक प्रकार से कर सके, इसके लिये दोनों अंगों के बीच पारस्परिक सहयोग अति आवश्यक है।

निष्कर्ष:

  • शक्ति के पृथक्करण का आशय यह है कि सरकार के तीन अंगों को एक-दूसरे के क्षेत्र में अनुचित हस्तक्षेप से बचते हुए अपनी सीमा में रहना चाहिये, और इस रूप में शक्तियों के विभाजन सिद्धांत को अपनाना न केवल उपयोगी बल्कि आवश्यक भी है।

भारत और अमेरिका में महाभियोग की प्रक्रिया की तुलना:

  • भारत में संविधान के अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के उल्लंघन के आधार पर प्रारंभ की जा सकती है वहीं अमेरिका में देशद्रोह, रिश्वत और दुराचार जैसे मामलों के आधार पर संसद के प्रतिनिधि सदन द्वारा राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जाती है।
  • भारत में महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ करने हेतु प्रस्ताव पर कम-से-कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर अनिवार्य हैं, वहीं अमेरिका में प्रतिनिधि सभा के 51% सदस्यों की सहमति पर महाभियोग की प्रक्रिया प्रारंभ की जा सकती है।
  • भारत में महाभियोग प्रस्ताव को पेश किये गए सदन के कुल सदस्यों के दो-तिहाई सदस्यों द्वारा पारित किये जाने पर इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है, जबकि अमेरिका में महाभियोग प्रस्ताव सदन में पारित होने के बाद एक ज्यूरी के पास भेजा जाता है जिसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है। इस ज्यूरी में राष्ट्रपति बचाव पक्ष के रूप में एक अधिवक्ता की नियुक्ति कर सकता है। इस ज्यूरी में प्रस्ताव पास होने के बाद उसे सीनेट में भेजा जाता है।
  • भारत में दूसरे सदन में भी प्रस्ताव को दो-तिहाई बहुमत से पारित होना आवश्यक है जबकि अमेरिका में प्रस्ताव को 67% सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना होता है।

स्रोत: द हिंदू

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