भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक छंँटनी का प्रभाव
- 02 Dec 2022
- 9 min read
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक छंँटनी, आर्थिक मंदी, GDP, रोज़गार, रूस-यूक्रेन संघर्ष, कोविड-19। मेन्स के लिये:भारत पर वैश्विक छंँटनी का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कई अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंँटनी की घोषणा की है, जो पहले ही सितंबर और अक्तूबर 2022 में 60,000 को पार कर चुकी है।
- छंँटनी, नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के प्रदर्शन से असंबंधित कारणों से रोज़गार की अस्थायी या स्थायी समाप्ति है।
छंँटनी के कारण:
- लागत में कटौती:
- वैश्विक मंदी की चर्चा के साथ तकनीकी कंपनियाँ, जिन्हें आमतौर पर बड़े खर्च करने वाली के रूप में देखा जाता है, अब लागत में कटौती का सहारा ले रही हैं।
- लागत में कटौती छंँटनी के मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कंपनियाँ अपने खर्चों को कवर करने के लिये पर्याप्त लाभ नहीं कमा रही हैं या उन्हें ऋण चुकाने के लिये पर्याप्त अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता है।
- भारतीय स्टार्टअप्स को भी इस परेशानी का सामना मीडिया रिपोर्ट्स से करना पड़ा है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022 में मुख्य रूप से एडटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में स्टार्टअप्स द्वारा दस हज़ार से अधिक कर्मचारियों की छंँटनी की गई है।
- आर्थिक मंदी का डर:
- ये कंपनियाँ संभावित आर्थिक मंदी से आशंकित हैं, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने महामारी और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष को देखते हुए वर्ष 2022 तथा 2023 दोनों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) वृद्धि के पूर्वानुमान को निराशाजनक बताया है।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निर्भरता का कम होना:
- महामारी के दौरान, मांग में वृद्धि आई क्योंकि लोग लॉकडाउन में थे और वे इंटरनेट पर बहुत समय बिता रहे थे। समग्र खपत में वृद्धि देखी गई जिसके बाद कंपनियों ने बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने उत्पादन में वृद्धि की।
- मांगों को पूरा करने के लिये कई तकनीकी कंपनियों ने महामारी के बाद भी उछाल जारी रहने की उम्मीद में कंपनी में भर्ती की होड़ शुरू कर दी।
- हालाँकि जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी गई और लोगों ने अपने घरों से बाहर निकलना शुरू किया, खपत में कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप इन बड़ी टेक कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। मांग में अचानक उछाल के कारण इनमें से कुछ संसाधनों को उच्च लागत पर काम पर रखा गया था।
भारतीय व्यवसायों का भविष्य:
- भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनियाँ संगठित क्षेत्र में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से हैं और किसी भी वैश्विक आर्थिक प्रवृत्ति का उनके विकास संबंधी अनुमानों पर प्रभाव पड़ना तय है।
- क्योंकि वे निवेशकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं, प्रबंधन खर्च को कम करने और लाभ मार्जिन बनाए रखने की कोशिश करते समय कर्मचारियों के स्तर पर सावधानीपूर्वक विचार करता है।
- हालाँकि अभी तक इससे संबंधित कोई स्पष्ट रुझान नहीं है, फिर भी कुछ संकेत हैं जो बता सकते हैं कि अगले कुछ महीनों में क्या होने की आशा है?
- विप्रो को छोड़कर, सभी प्रमुख व्यवसायों के राजस्व और शुद्ध लाभ में वृद्धि हुई। सितंबर तिमाही के लिये, विप्रो का शुद्ध लाभ पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 9% कम रहा।
- शीर्ष दो फर्मों, TCS और इन्फोसिस प्रति 100 कर्मचारियों की संख्या, यह दर्शाती है कि ये दरें अभी भी उच्च हैं, जिसका अर्थ है कि प्रतिस्पर्धियों के कर्मचारियों को आकर्षित करने के लिये इस क्षेत्र के लिये पर्याप्त व्यवसाय है।
- भारतीय स्टार्ट-अप फ्रंट में छंँटनी की खबरें मुख्य रूप से एडटेक या एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फ्रंट में हैं।
छंँटनी का प्रभाव
- श्रमिकों के लिये नुकसान:
- छंँटनी मनोवैज्ञानिक रूप से और साथ ही वित्तीय रूप से प्रभावित श्रमिकों के साथ-साथ उनके परिवारों, समुदायों, सहयोगियों और अन्य व्यवसायों के लिये हानिकारक हो सकती है।
- संभावनाओं का नुकसान:
- जिन भारतीय श्रमिकों को नौकरी से निकाला गया है, उनकी चिंता बहुत बड़ी है। यदि वे 60 दिनों के भीतर एक नया नियोक्ता खोजने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अमेरिका छोड़ने और बाद में फिर से प्रवेश करने की संभावना का सामना करना पड़ता है।
- मामलों को बदतर बनाने के लिये, इन भारतीय श्रमिकों की घर वापसी की संभावनाएंँ भी कमज़ोर हैं।
- अधिकांश भारतीय आईटी कंपनियों ने नियुक्तियों को फ्रीज या धीमा कर दिया है क्योंकि अमेरिका में मंदी की आशंका और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति ने मांग को कम रखा है।
- ग्राहकों की संभाव्यता में कमी:
- जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों छंँटनी करती है तो इससे ग्राहकों में यह संदेश जाता है कि वह किसी प्रकार से संकटग्रस्त है।
- भावनात्मक संकट:
- यद्यपि जिस व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया जाता है,वह सबसे अधिक संकट में होता है लेकिन शेष कर्मचारी भी भावनात्मक रूप से भी पीड़ित होते हैं। भय के साथ काम करने वाले कर्मचारियों का उत्पादकता स्तर कम होने की संभावना होती है।
पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान भारत की स्थिति:
- पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान यद्यपि कंपनियों ने शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से छंँटनी की घोषणा की थी लेकिन वे सभी उन कर्मचारियों को निकालना चाहते थे जिनका प्रदर्शन स्तर काफी नीचे था।
- जो कंपनियाँ विशेष रूप से खराब दौर से गुज़र रही थीं उन्होंने बेंच स्ट्रेंथ (समूह के प्रतिभाशाली लोगों की संख्या) में कटौती की। इसके बाद यदि कोई व्यक्ति समूह में केवल एक महीने पुराना था (यानी, उनके पास कोई परियोजना नहीं थीा), तो उसे कुछ प्रशिक्षण कार्यों आदि के लिये साइन अप करने के लिये कहा जा सकता था।
- यदि किसी पेशेवर ने बेंच/समूह में तीन महीने से अधिक समय लगाया और एक भी परियोजना पूरी नहीं की थी, तो सिस्टम स्वयं उसे बाहर निकाल देता था।।
- 2008 की मंदी का परिणाम यह हुआ कि कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि को धीमा करना शुरू कर दिया।
- कैंपस से किये जाने वाले नियोजित परिवर्द्धन में कमी की गई अथवा नियोजन का प्रस्ताव तो दिया जाता था लेकिन चयनित व्यक्ति को कंपनी के साथ जुड़ने में 9-12 महीने का समय लगता था।
आगे की राह
- भारतीय स्टार्टअप अपने पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में तेज़ गति से आगे बढ़े हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि एक स्टार्टअप ने विकास के क्रम में आसमान छू लिया है तो उसके कर्मचारियों की नौकरियाँ भी सुरक्षित होंगी।
- स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कार्यक्रम व्यक्तियों को सुचारू रूप से सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ने में सक्षम बना सकते हैं।