जैव विविधता और पर्यावरण
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
- 27 Sep 2019
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चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एक्शन सम्मेलन (UN Climate Action Summit) में महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते, 2015 के तहत निर्धारित वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने की प्रतिबद्धता को तत्परता के साथ लागू करने की अपील की है।
प्रमुख बिंदु
विश्व के प्रमुख जलवायु विज्ञान संगठनों ने संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट एक्शन सम्मेलन के लिये यूनाइटेड इन साइंस (United in Science) शीर्षक से एक रिपोर्ट ज़ारी की है, जिसमें जलवायु परिवर्तन से संबंधित विभिन्न विश्लेषण सम्मिलित किये गए हैं। इस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं-
- वर्ष 2015-2019 के बीच का औसत वैश्विक तापमान इससे पहले के किन्हीं अन्य पाँच वर्षों के औसत वैश्विक तापमान की तुलना में अधिक है।
- वर्ष 2015-2019 का औसत वैश्विक तापमान पूर्व औद्योगिक युग (1850-1900 AD) के औसत तापमान से 1.1°C और वर्ष 2011-2015 के औसत वैश्विक तापमान के स्तर से 0.2°C अधिक है।
- औसत वैश्विक तापमान के कारण वर्ष 2015-19 के बीच होने वाली ग्लेशियर की क्षति भी अन्य किन्हीं पाँच वर्षों की तुलना में अधिक है।
- रिपोर्ट यह भी इंगित करती है कि कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा में गिरावट के बजाय वर्ष 2018 में 2% की वृद्धि दर्ज की गई है और यह 37 बिलियन टन के शीर्ष रिकार्ड स्तर पर पहुँच गई है।
- जहाँ वर्ष 1997-2006 के मध्य औसत वैश्विक समुद्र तल में वृद्धि दर 3.04 मिमी. प्रतिवर्ष रही थी वहीं वर्ष 2007-16 के दौरान यह 4 मिमी. प्रतिवर्ष के स्तर पर पहुँच गई है।
- औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि के परिणामस्वरूप सागरीय अम्लीयता में भी 26% की वृद्धि हुई है।
जलवायु परिवर्तन से संबंधित अन्य चरम प्रभाव:
- फ्रांँस और जर्मनी में हीट वेव (Heat Wave) का भीषण प्रभाव।
- वर्तमान वर्ष के ग्रीष्मकाल के दौरान दक्षिणी यूरोप में दिल्ली जैसा प्रभाव।
- अमेज़न, मध्य अफ्रीका और साइबेरिया के वनों में अचानक लगी भीषण आग।
जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु उठाए गए कदम:
- पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते, 2015 के तहत विभिन्न देशों को कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने से संबंधित प्रतिबद्धता और उत्तरदायित्व सौंपे गए हैं।
- कई छोटे व मध्यम देश वर्ष 2050 तक अपनी अर्थव्यवस्था को ‘शुद्ध कार्बन तटस्थ’ (Net Carbon Neutral) बनाने की दिशा में अग्रसर हैं। हालाँकि अमेरिका, ब्राज़ील और कनाडा जैसे बड़े देश अपने उत्तरदायित्व से पीछे हट रहे हैं।
आगे की राह
वास्तविक अर्थव्यवस्था में परिवर्तनकारी क्रियाओं (Transformative Action) की संभावित अधिकतम प्रभाविता को सुनिश्चित करने के लिये वैश्विक स्तर पर निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है-
- वित्त (Finance): सार्वजनिक और निजी स्रोतों से वित्त इकट्ठा कर सभी प्राथमिक क्षेत्रों का डिकार्बोनाइज़ेशन (Decarbonization) करना चाहिये।
- ऊर्जा संक्रमण (Energy Transition): जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाई जानी चाहिये।
- प्रकृति आधारित समाधान (Nature Based Solution): प्रकृति आधारित समाधानों जैसे जैव-विविधता, कार्बन सिंक, वनीकरण को बढ़ावा देना आदि पर ज़ोर देना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त शमन रणनीति (Mitigation Strategy), युवाओं की सहभागिता (Youth Engagement) और लोगों की सहभागिता के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप बढ़ते भूमंडलीय तापन की तीव्रता को कम किया जाना चाहिये।
- वैश्विक स्तर पर जीवाश्म ईंधनों के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा पर ज़्यादा ज़ोर दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अधिकतम सुभेद्य देशों की सूची में आता है। अत: ऐसे समय में जब अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देश अपनी ज़िम्मेदारियों से पीछे हट रहे हैं तो भारत को यथास्थितिवादी रवैया न अपनाते हुए सामूहिक कार्रवाई के लिये आगे आना चाहिये।