अंतर्राष्ट्रीय संबंध
सामान्य मानसून और झमाझम बारिश
- 16 Apr 2018
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चर्चा में क्यों?
भारतीय मौसम विभाग (India Meteorological Department - IMD) द्वारा इस साल देश में सामान्य मानसून तथा औसत बारिश 97 फीसद तक रहने के आसार व्यक्त किये गए है। मौसम विभाग ने इस साल अच्छी बारिश होने की संभावना व्यक्त की है जो कि किसानों के लिये एक राहतभरी खबर है।
मौसम विभाग के अनुसार
- जून और सितंबर के बीच 89 सेमी. बारिश का लगभग 97% प्राप्त होने की संभावना है। पिछले साल, यह आँकड़ा 95% रहा था। मौसम विभाग द्वारा "कम वर्षा" होने की संभावना से इनकार किया गया है।
- 96 से 104% तक की बारिश का आँकड़ा सामान्य मानसून माना जाता है। वर्ष 2017 में, उत्तर पश्चिमी भारत में औसत मौसमी वर्षा 95%, मध्य भारत में 106%, दक्षिण प्रायद्वीप में 92% और उत्तर-पूर्व भारत में 89% रही थी।
- गौरतलब है कि इससे पहले साल 2016 में भी मानसून सामान्य रहा था, लेकिन साल 2014 और 2015 में मानसून कम होने की वजह से देश को सूखे की समस्या से जूझना पड़ा था।
- मानसून के विषय में अतिरिक्त विवरण, जैसे- मानसून कब तक संपूर्ण देश में फैलेगा अथवा जुलाई और अगस्त में बारिश की मात्रा कितनी होगी आदि के विषय में जून में जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
- आपको बता दें कि मौसम संबंधी पूर्वानुमान के लिये मेट विभाग एक सांख्यिकीय मॉडल (statistical model) का उपयोग करता है।
- एक अन्य मॉडल, जिसे गतिशील मॉडल (dynamical model) कहा जाता है, के तहत 99% बारिश होने की भविष्यवाणी की गई है।
- मानसून के दौरान कम बारिश के लिये ज़िम्मेदार अल-नीनो का असर इस साल जून में कमज़ोर रहने की उम्मीद है। अल-नीनो समुद्र के सतह के साथ ही भूमध्य प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ा देता है, वहीं पश्चिमी हिंद महासागर आईओडी सतह का तापमान गर्म हो जाता है लेकिन पूर्वी हिस्से की तुलना में यह ठंडा होता है।
- हालाँकि, एक अन्य पहलू, जिसे हिंद महासागर डीपोल (Indian Ocean Dipole) कहा जाता है, यदि "सकारात्मक" रहता है तो इससे मानसून को सहायता मिलती है, इस वर्ष इससे मानसून को कोई सहायता मिलने की अभी कोई संभावना नहीं है। हालाँकि इसके विषय में अधिक स्पष्ट जानकारी अगले महीने में प्राप्त होगी।
- इस महीने के शुरू में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाली निजी संस्था स्काईमेट ने कहा था कि 2018 में बारिश दीर्घ अवधि के औसत का 100 प्रतिशत रह सकती है। स्काईमेट ने यह भी कहा था कि देश में वृहद् पैमाने पर सूखा पडऩे की आशंका न के बराबर है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार
- रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का कहना है कि भले ये पूर्वानुमान शुरुआती हैं, लेकिन इनसे एक उत्साह का माहौल बनता है। हालाँकि बहुत सारी बातें मानसून के समय पर आने और देश भर में बारिश के समान वितरण जैसे महत्त्वपूर्ण पक्षों पर निर्भर करती है।
- क्रिसिल ने अनुसार, सामान्य मानसून के पूर्वानुमान के मद्देनजर वित्त वर्ष 2018-19 में कृषि की विकास दर 3 प्रतिशत रहेगी, जो पिछले वित्त वर्ष जैसी ही रहेगी।
- इस वित्त वर्ष में जहाँ तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की बात है तो अब अनुमान 6.6 प्रतिशत से बढ़ाकर 7.5 प्रतिशत कर दिया गया है।
एक सुखद खबर
- देश के कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था के लिये भी यह एक अच्छी खबर है। दक्षिण-पश्चिम मानसून के सामान्य रहने से कृषि क्षेत्र के उत्पादन में अच्छी वृद्घि हो सकती है।
- 2017-18 के लिये कृषि मंत्रालय ने 27.749 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान लगाया है। इससे पिछले साल 27.511 करोड़ टन का उत्पादन हुआ था।
- मानसून के सामान्य रहने से केवल कृषि विकास को ही बल नहीं मिलता है, बल्कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव बड़ा है।
- अच्छी बारिश होने से कृषि-रसायन, उर्वरक, बीज, सिंचाई उपकरण आदि उद्योगों के लिये भी कारोबारी संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। चीनी, खाद्य तेल, अन्य खाद्य उत्पाद, परिधान आदि उद्योगों का प्रदर्शन सीधे तौर पर मानसून से जुड़ा होता है।
मानसून क्या है?
- यह अरबी शब्द मौसिम से निकला हुआ शब्द है, जिसका अर्थ होता है हवाओं का मिज़ाज। शीत ऋतु में हवाएँ उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहती हैं जिसे शीत ऋतु का मानसून कहा जाता है।
- उधर, ग्रीष्म ऋतु में हवाएँ इसके विपरीत दिशा में बहती हैं, जिसे दक्षिण-पश्चिम मानसून या गर्मी का मानसून कहा जाता है। चूँकि पूर्व के समय में इन हवाओं से व्यापारियों को नौकायन में सहायता मिलती थी, इसीलिये इन्हें व्यापारिक हवाएँ या ‘ट्रेड विंड’ भी कहा जाता है।
मानसून की शुरुआत कैसे होती है?
- ग्रीष्म ऋतु में जब हिन्द महासागर में सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर होता है, तो मानसून का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में समुद्र की सतह गरम होने लगती है और उसका तापमान 30 डिग्री तक पहुँच जाता है। जबकि इस दौरान धरती का तापमान 45-46 डिग्री तक पहुँच चुका होता है।
- ऐसी स्थिति में हिन्द महासागर के दक्षिणी हिस्से में मानसूनी हवाएँ सक्रिय हो जाती हैं। ये हवाएँ एक-दूसरे को आपस में काटते हुए विषुवत रेखा पार कर एशिया की तरफ बढ़ने लगती है। इसी दौरान समुद्र के ऊपर बादलों के बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
- विषुवत रेखा पार करके ये हवाएँ और बादल बारिश करते हुए बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का रुख करते हैं। इस दौरान देश के तमाम हिस्सों का तापमान समुद्र तल के तापमान से अधिक हो जाता है।
- ऐसी स्थिति में हवाएँ समुद्र से ज़मीन की ओर बहनी शुरू हो जाती हैं। ये हवाएँ समुद्र के जल के वाष्पन से उत्पन्न जल वाष्प को सोख लेती हैं और पृथ्वी पर आते ही ऊपर की ओर उठने लगती है और वर्षा करती हुई आगे बढ़ती हैं।
- बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में पहुँचने के बाद ये मानसूनी हवाएँ दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं। एक शाखा अरब सागर की तरफ से मुंबई, गुजरात एवं राजस्थान होते हुए आगे बढ़ती है तो दूसरी शाखा बंगाल की खाड़ी से पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वोत्तर होते हुए हिमालय से टकराकर गंगीय क्षेत्रों की ओर मुड़ जाती है और इस प्रकार जुलाई के पहले सप्ताह तक पूरे देश में झमाझम पानी बरसने लगता है।
मानसून का पूर्वानुमान कैसे लगाया जाता है?
- मानसून एक ऐसी अबूझ पहेली है जिसका अनुमान लगाना बेहद जटिल है। कारण यह है कि भारत में विभिन्न किस्म के जलवायु जोन और उप-जोन हैं। हमारे देश में 127 कृषि जलवायु उप-संभाग हैं और 36 संभाग हैं।
- मानसून विभाग द्वारा अप्रैल के मध्य में मानसून को लेकर दीर्घावधि पूर्वानुमान जारी किया जाता है। इसके बाद फिर मध्यम अवधि और लघु अवधि के पूर्वानुमान जारी किये जाते हैं।
- पिछले कुछ समय से ‘नाऊ कास्ट’ के माध्यम से मौसम विभाग ने अब कुछ घंटे पहले के मौसम की भविष्यवाणी करना आरंभ कर दिया है।
- अभी मध्यम अवधि की भविष्यवाणियाँ जो 15 दिन से एक महीने की होती हैं, 70-80 फीसदी तक सटीक निकलती हैं। हालाँकि, लघु अवधि की भविष्यवाणियाँ जो आगामी 24 घंटों के लिये होती हैं करीब 90 फीसदी तक सही होती हैं।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग
(India Meteorological Department - IMD
- IMD भारत सरकार के "पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय" (Ministry of Earth Sciences) के अधीन कार्यरत एक विभाग है।
- IMD एक प्रमुख एजेंसी है जो मौसम संबंधी अवलोकन एवं मौसम की भविष्यवाणी के साथ-साथ भूकम्प विज्ञान के लिये भी उत्तरदायी है।