अवैध बाघ व्यापार | 22 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (World Wildlife Fund-WWF) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (International Union for Conservation of Nature) की साझेदारी में TRAFFIC द्वारा संकलित 'Skin and Bones Unresolved: An Analysis of Tiger Seizures from 2000-2018' शीर्षक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें वर्ष 2000 से वर्ष 2018 के बीच हुए बाघों और उनके अंगों के अवैध वैश्विक व्यापार की पुष्टि की गई है।
- यह वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क TRAFFIC द्वारा बाघ के व्यापार पर प्रकाशित रिपोर्ट की श्रृंखला का चौथा प्रसंस्करण है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु
- कुल मिलाकर वर्ष 2000 से वर्ष 2018 तक 32 देशों और क्षेत्रों में वैश्विक स्तर पर 2,359 बाघों के संबंध में अनुमान व्यक्त किये गए। इनमें से लगभग 95% की बरामदगी उन देशों में दर्ज की गई जिन्हें बाघों का निवास स्थान कहा जाता हैं।
- जीवित बाघों और उनके शवों (पूर्ण शरीर) के अलावा उनकी त्वचा, हड्डियों या पंजे जैसे विभिन्न रूपों में बाघ के अंगों को जब्त किया गया। जब्त किये गए सामानों में बाघों की त्वचा सबसे अधिक पाई गई।
- इस रिपोर्ट के अनुसार जब्त किये गए सामानों के आधार पर बाघों की संख्या का अनुमान लगाया गया।
- हर साल औसतन 60 जब्ती की गई, यानी हर साल लगभग 124 बाघों को जब्त किया गया।
- जब्ती की घटनाओं की सबसे अधिक संख्या वाले शीर्ष तीन देश भारत (कुल बरामदगी 463 या 40.5%), चीन (126 या 11.0%) तथा इंडोनेशिया (119 या 10.5%) हैं।
भारत के संदर्भ में
- हालाँकि बाघों की नवीनतम जनगणना में भारत की बाघों की आबादी 2,967 बताई गई है, तथापि ट्रैफिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2016 के WWF के अनुमान के अनुसार भारत में कुल 2,226 हैं। वैश्विक बाघ आबादी का 56% भारत में निवास करती है।
- भारत जब्ती की घटनाओं (463, या सभी बरामदगी का 40%) के साथ-साथ बाघों की जब्ती (626 या 26.5%) की सबसे अधिक संख्या वाला देश है।
- जब्त किये गए बाघ के अंगों के संदर्भ में भारत में बाघों की खाल/त्वचा (38%), हड्डियों (28%) और पंजे एवं दांत (42%) का हिस्सा सबसे अधिक था।
निष्कर्ष
बाघ जैसे पशु पारिस्थितिक तंत्र के स्वास्थ्य एवं विविधता में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, साथ ही बाघ भारत का राष्ट्रीय पशु भी है। इस संदर्भ में भारत सरकार ने वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की। वर्ष 1973 से अब तक बाघों की संख्या में अच्छी खासी वृद्धि हुई है तथा मौजूदा समय में बाघ भारत में अपनी पारिस्थितिक क्षमता के करीब पहुँच चुके हैं। जीवों की संख्या में वृद्धि स्वस्थ पारिस्थितिक तंत्र का संकेतक होता है। अतः भारत को ऐसे संघर्षों में कमी करने के लिये जीवों के आवास क्षेत्र में वृद्धि तथा बफर क्षेत्रों आदि के निर्माण जैसे कार्यों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।