अवैध खनन पर सुप्रीम कोर्ट ने कसा शिकंजा | 03 Aug 2017

चर्चा में क्यों ?

  • हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि निहित स्वार्थ और व्यवस्था की खामियों ने देश के अनमोल प्राकृतिक संसाधनों की चोरी रोकने के लिये बनाई गई एक दशक पुरानी राष्ट्रीय खनिज नीति के उद्देश्यों को विफल कर दिया है।
  • विदित हो कि ओडिशा में अवैध खनन में शामिल कंपनियों को एक बड़ा झटका देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य में आवश्यक मंज़ूरी के बिना खनन करने वाले खनन पट्टाधारकों पर 100 फीसदी जुर्माना लगाया है।

क्या कहा न्यायालय ने ?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ओड़िशा में बिना पर्यावरण मंज़ूरी के परिचालन कर रही खनन कंपनियों को 2000-01 से अवैध रुप से निकाले गए लौह और मैगनीज अयस्क के मूल्य पर 100 प्रतिशत जुर्माना देना होगा।
  • न्यायमूर्ति एम. बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने इन वर्षों के दौरान हुई उन चूकों की पहचान के लिये शीर्ष अदालत के सेवानिवृत न्यायाधीश के मार्गदर्शन में एक विशेषज्ञ समिति बनाने का भी निर्देश दिया, जिनकी वजह से राज्य में अवैध खनन हुआ।
  • यह समिति अवैध खनन को रोकने के उपाय भी सुझाएगी। पीठ ने ऐसी गतिविधियों के फलस्वरुप पर्यावरण को पहुँचने वाले नुकसान पर चिंता भी प्रकट की और केंद्र से राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008 पर पुनर्विचार करने को कहा है।
  • पीठ ने कहा कि बिना पर्यावरण या वन मंज़ूरी के या दोनों तरह की मंज़ूरियों के बिना खुदाई कर निकाले गए खनिजों पर ‘खान एवं खनिज (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1957’ की धारा 21 (5) लागू होगी और अवैध या गैर कानूनी ढंग से निकाले गए खनिजों के दामों की शत-प्रतिशत क्षतिपूर्ति खनन लीजधारक करेंगे। 

राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008

  • गौरतलब है कि राष्ट्रीय खनिज नीति (1993) की समीक्षा के लिये योजना आयोग द्वारा गठित होदा समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार द्वारा एक नई राष्ट्रीय खनिज नीति, 2008 को मंज़ूरी दी गई थी। इस नीति के उद्देश्य हैं:

→ उत्खनन के लिये अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना।
→ खनन के दौरान होने वाले नुकसान को कम करना।
→ सर्वेक्षण एवं आकलन में जोखिम भरा निवेश आकर्षित करने के लिये पूंजी बाज़ार ढाँचे का विकास करना।
→ रियायतें देने के मामलों में पारदर्शिता बहाल करना।
→ जैव-विविधता जैसे मुद्दों का ध्यान रखने के लिये टिकाऊ विकास की रूपरेखा तैयार करना।

  • दरअसल, यह नीति लगभग एक दशक पुरानी है, जिसमें बदली हुई परिस्थितियों के अनुरूप सुधार किये जाने की आवश्यकता है।