दक्षिण एशिया में सूखे की जाँच हेतु एक नई प्रणाली का विकास | 07 Oct 2017
संदर्भ
हाल ही में आई.आई.टी. गांधीनगर के शोधकत्ताओं ने एक ऐसी प्रणाली को विकसित किया है, जिससे उचित समय में सूखे की जाँच करना संभव हो सकेगा। विदित हो कि इसकी सहायता से नीति-निर्माताओं को ज़िला स्तर पर जल का प्रबंधन करने में भी सहायता मिलेगी।
प्रमुख बिंदु
- इस प्रणाली को विकसित करने लिये शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 1980 से अप्रैल 2017 तक के उपलब्ध सूखे के सूचकांकों (draught indices) और वर्षण तथा तापमान के आँकड़ों का अध्ययन किया। विदित हो ये आँकड़े सम्पूर्ण दक्षिण एशियाई क्षेत्रों से एकत्रित किये गए थे। अब इन आँकड़ों को हर सप्ताह अपडेट किया जाएगा।
- दरअसल अब सूखे के अलावा, इन आँकड़ों का उपयोग दक्षिण एशिया में उष्ण और शीत लहरों की जाँच के लिये भी किया जा सकता है।
- ‘भारतीय मौसम विभाग’ (Indian Meteorology Department- IMD) मुख्यतः मानसून के दिनों में प्रतिदिन होने वाली वर्षा के ही आँकड़े उपलब्ध कराता है।
- वस्तुतः भारतीय मौसम विभाग की सूखा संबंधी सूचनाएँ केवल होने वाली वर्षा के आँकड़ों पर ही आधारित होती है तथा इनमें वायु के तापमान की कोई भूमिका नहीं होती है।
- आमतौर पर मानसून के बाद उच्च तापमान के कारण वाष्पीकरण में तो वृद्धि होती है लेकिन वाष्पोत्सर्जन में कमी आ जाती है, जिस कारण सूखे की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
- शोधकर्ताओं का उद्देश्य उच्च रिज़ोल्युशन क्षमता (5 किलोमीटर) वाले डाटासेट तैयार करना था, क्योंकि भारतीय मौसम विभाग और अन्य एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराए गये आँकड़ों की रिज़ोल्युशन क्षमता कम (25 किलोमीटर) होती है अर्थात् वे 25 किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्र को कवर करते हैं, जिससे सूखे के संबंध में सटीक जानकारियाँ प्राप्त नहीं हो पाती हैं।
- यह नई प्रणाली 5 किलोमीटर के छोटे क्षेत्र को भी कवर करेगी तथा सूखे के संबंध में सटीक जानकारियाँ उपलब्ध कराएगी।
- इसके लिये शोधकर्त्ताओं ने विश्व-भर में होने वाली वर्षा के CHIRPS (Climate Hazards group Infrared Precipitation with Station) आँकड़ों का उपयोग किया। ध्यातव्य है कि ये आँकड़े 5 किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करते हैं।
- हालाँकि, पूर्व के अध्ययनों में यह दर्शाया गया था कि एफ्रोडाइट (APHRODITE) डाटाबेस भारतीय मौसम विभाग के वर्षा आँकड़ों से नहीं मिलते हैं।
- आँकड़ों की सटीकता और वैद्यता ने वैज्ञानिकों को यह विश्वास दिलाया कि दक्षिण एशिया के किसी भी ज़िले और सब-बेसिन स्तर में सूखे के प्रभाव अथवा विस्तार की पहचान की जा सकती है।
- शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 2015 में जून से सितम्बर के दौरान सूखे की गंभीरता का पता लगाने के लिये सूखे के सूचकांकों का भी प्रयोग किया था। इन त्रुटिरहित आँकड़ों और सूखे के सूचकों ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। उल्लेखनीय है कि भारतीय मौसम विभाग के अलावा यह सूखे कि वास्तविक सूचना उपलब्ध कराने के लिए किया गया एक अतिरिक्त प्रयास है।
CHIRPS क्या है?
- CHIRPS 30 से अधिक वर्षों तक हुई वर्षा का एक अर्द्ध-वैश्विक डेटासेट है, जिसमें 50 डिग्री दक्षिण से लेकर 50 डिग्री उत्तरी अक्षांश तथा सभी देशान्तरों के वर्षा आँकड़ों का संग्रहण किया गया है।
- वर्ष 1981 से लेकर वर्तमान समय तक ‘प्रवृत्ति विश्लेषण और मौसमी सूखे’ (analysis and seasonal drought monitoring). की जाँच के लिये होने वाली भारी वर्षा की समयावधि का पता लगाने के लिये CHIRPS में 0.05 रिज़ोल्युशन क्षमता के ‘सेटेलाइट चित्रण’(satellite imagery) को सम्मिलित किया गया था।
- 12 फरवरी 2015 से इसका 2.0 संस्करण पूरा हो चुका है और अब यही सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध है।
एफ्रोडाइट (APHRODITE) क्या है?
- एफ्रोडाइट (Asian Precipitation - Highly-Resolved Observational Data Integration Towards Evaluation) दैनिक ग्रिडेड वाष्पोत्सर्जन (gridded precipitation) का एकमात्र ऐसा दीर्घकालिक महाद्वीपीय पैमाना है जिसमें एशिया में होने वाली दैनिक वर्षा के आँकड़े संगृहीत किये जाते हैं। एशिया में भी हिमालय, दक्षिण, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व के पर्वतीय क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जाता है।
- इसके वैध स्टेशनों की संख्या 5,000 से 12,000 के मध्य है, जिनसे वैश्विक टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम नेटवर्क के माध्यम से 2.3 से 4.5 गुना अधिक आँकड़ों को उपलब्ध कराया जाता है। इन आँकड़ों का उपयोग प्रतिदिन होने वाले वाष्पोत्सर्जन का आकलन करने के लिए किया जाता है।
भारतीय मौसम विभाग
- भारतीय मौसम विभाग की स्थापना 1875 में की गई थी।
- यह भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान विभाग की एक एजेंसी है जो मौसम, भूकंप और संबंधित घटनाओं के विषय में सूचना उपलब्ध कराती है।
- इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
- भारतीय मौसम विभाग भारत और अंटार्कटिका के सैकड़ों प्रेक्षण स्टेशनों का संचालन करता है।
- यह ‘विश्व मौसम संगठन’ के छह क्षेत्रीय विशेष मौसम विज्ञान केंद्रों (Regional Specialised Meteorological Centres) में से एक है।